श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  चौपाई 273.2
 
 
काण्ड 1 - चौपाई 273.2 
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥2॥
 
अनुवाद
 
 यहाँ कद्दू के छोटे-छोटे कच्चे फल नहीं हैं, जो तर्जनी उंगली देखते ही मुरझा जाएँ। मैंने तो कुल्हाड़ी और धनुष-बाण देखकर ही गर्व से कुछ कहा था।
 
There are no small unripe fruits of pumpkin here, which die at the sight of the index finger. I had said something proudly only after seeing the axe and bow and arrow.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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