श्री रामचरितमानस » काण्ड 1: बाल काण्ड » चौपाई 270.3 |
|
| | काण्ड 1 - चौपाई 270.3  | अति डरु उतरु देत नृपु नाहीं। कुटिल भूप हरषे मन माहीं॥
सुर मुनि नाग नगर नर नारी। सोचहिं सकल त्रास उर भारी॥3॥ | | अनुवाद | | राजा बहुत डर गया, इस कारण उसने कोई उत्तर नहीं दिया। यह देखकर दुष्ट राजा मन ही मन बहुत प्रसन्न हुआ। देवता, ऋषि, नाग और नगर के स्त्री-पुरुष सभी सोचने लगे, सबके मन में बड़ा भय है। | | The king was very scared, due to which he did not answer. Seeing this, the wicked king was very happy in his heart. Gods, sages, serpents and men and women of the city all started thinking, there is a lot of fear in everyone's heart. |
| ✨ ai-generated | |
|
|