श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  चौपाई 252.1
 
 
काण्ड 1 - चौपाई 252.1 
कहहु काहि यहु लाभु न भावा। काहुँ न संकर चाप चढ़ावा॥
रहउ चढ़ाउब तोरब भाई। तिलु भरि भूमि न सके छड़ाई॥1॥
 
अनुवाद
 
 बताओ, यह लाभ किसे पसंद नहीं, पर शंकरजी का धनुष तो किसी ने नहीं चढ़ाया। अरे भाई! चढ़ाना और तोड़ना तो दूर, कोई एक इंच ज़मीन भी नहीं छुड़ा सका।
 
Tell me, who does not like this benefit, but no one has offered the bow of Shankarji. Oh brother! Forget about offering and breaking it, no one could free even an inch of land.
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.