श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  चौपाई 21.4
 
 
काण्ड 1 - चौपाई 21.4 
नाम रूप गति अकथ कहानी। समुझत सुखद न परति बखानी॥
अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी। उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी॥4॥
 
अनुवाद
 
 नाम और रूप की गति की कथा (विशेषता की कथा) अवर्णनीय है। इसे समझना सुखद है, किन्तु इसका वर्णन नहीं किया जा सकता। नाम निर्गुण और सगुण के बीच एक सुंदर साक्षी है और दोनों का सच्चा ज्ञान देने वाला एक चतुर व्याख्याकार है।
 
The story of the movement of name and form (the story of speciality) is indescribable. It is pleasant to understand, but it cannot be described. Name is a beautiful witness between Nirguna and Saguna and is a clever interpreter who gives the true knowledge of both.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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