श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  चौपाई 204.2
 
 
काण्ड 1 - चौपाई 204.2 
भए कुमार जबहिं सब भ्राता। दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता॥
गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल बिद्या सब आई॥2॥
 
अनुवाद
 
 जैसे ही सभी भाई किशोरावस्था में पहुँचे, गुरु, पिता और माता ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार किया। श्री रघुनाथजी (अपने भाइयों सहित) गुरु के घर विद्याध्ययन के लिए गए और थोड़े ही समय में उन्होंने सभी विषयों की शिक्षा प्राप्त कर ली।
 
As soon as all the brothers reached the age of adolescence, the Guru, father and mother performed the Yagyopaveet Sanskar for them. Shri Raghunathji (along with his brothers) went to the Guru's house to study and in a short time he learnt all the subjects.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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