श्री रामचरितमानस » काण्ड 1: बाल काण्ड » चौपाई 203.3 |
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| | काण्ड 1 - चौपाई 203.3  | मन क्रम बचन अगोचर जोई। दसरथ अजिर बिचर प्रभु सोई॥
भोजन करत बोल जब राजा। नहिं आवत तजि बाल समाजा॥3॥ | | अनुवाद | | जो मन, वचन और कर्म से अदृश्य है, वह दशरथजी के आँगन में विचरण कर रहा है। भोजन के समय जब राजा उसे बुलाते हैं, तब भी वह अपने बाल सखाओं का साथ छोड़कर नहीं आता। | | The one who is invisible in thought, word and deed, is roaming in the courtyard of Dashrathji. When the king calls him at mealtime, he does not leave the company of his childhood friends and come. |
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