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काण्ड 1 - चौपाई 203.2  |
चूड़ाकरन कीन्ह गुरु जाई। बिप्रन्ह पुनि दछिना बहु पाई॥
परम मनोहर चरित अपारा। करत फिरत चारिउ सुकुमारा॥2॥ |
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अनुवाद |
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फिर गुरुजी ने जाकर चूड़ाकर्म संस्कार करवाया। ब्राह्मणों को फिर से बहुत-सी दक्षिणा मिली। चारों सुंदर राजकुमार बड़े ही मनमोहक और अद्भुत कर्म करते हुए इधर-उधर घूमने लगे। |
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Then Guruji went and performed the Chudakarma ceremony. The Brahmins again received a lot of Dakshina. The four handsome princes wandered around performing very charming and wonderful acts. |
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