श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  चौपाई 20.2
 
 
काण्ड 1 - चौपाई 20.2 
कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके। राम लखन सम प्रिय तुलसी के॥
बरनत बरन प्रीति बिलगाती। ब्रह्म जीव सम सहज सँघाती॥2॥
 
अनुवाद
 
 ये कहने, सुनने और स्मरण करने में बहुत अच्छे (सुंदर और मधुर) हैं। तुलसीदासजी को ये श्री राम और लक्ष्मण के समान प्रिय हैं। इनका (र और म का) अलग-अलग वर्णन करने से प्रेम टूट जाता है (अर्थात् बीज मंत्र की दृष्टि से इनके उच्चारण, अर्थ और फल में अंतर है), परन्तु ये जीव और ब्रह्म के समान हैं और स्वभाव से एक साथ रहते हैं (सदैव एक ही रूप और एक ही स्वाद वाले होते हैं)।
 
These are very good (beautiful and sweet) to say, hear and remember. Tulsidas loves them as much as Shri Ram and Lakshman. Describing them (R and M) separately breaks the love (i.e. from the point of view of Beej Mantra, there is a difference in their pronunciation, meaning and result), but they are like the living beings and Brahma and live together by nature (always have the same form and same taste).
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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