श्री रामचरितमानस » काण्ड 1: बाल काण्ड » चौपाई 198.4 |
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| | काण्ड 1 - चौपाई 198.4  | हृदयँ अनुग्रह इंदु प्रकासा। सूचत किरन मनोहर हासा॥
कबहुँ उछंग कबहुँ बर पलना। मातु दुलारइ कहि प्रिय ललना॥4॥ | | अनुवाद | | उसके हृदय में दया का चन्द्रमा चमकता है। उसकी हृदय-मोहक मुस्कान उसी (दया के चन्द्रमा) की किरणों का संकेत देती है। कभी उसे गोद में लेकर, कभी सुंदर पालने में लिटाकर, माँ उसे लाड़-प्यार से 'प्यारी ललना!' कहती है। | | The moon of kindness shines in her heart. Her heart-captivating smile indicates the rays of that (moon of kindness). Sometimes by taking her in her lap and sometimes by laying her in a nice cradle, the mother pampers her saying 'Dear Lalana!' |
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