श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  चौपाई 158.2
 
 
काण्ड 1 - चौपाई 158.2 
समय प्रतापभानु कर जानी। आपन अति असमय अनुमानी॥
गयउ न गृह मन बहुत गलानी। मिला न राजहि नृप अभिमानी॥2॥
 
अनुवाद
 
 प्रतापभानु के अच्छे समय को जानकर और अपने बुरे समय का अनुमान लगाकर वह बहुत लज्जित हुआ। इस कारण वह अपने अभिमान के कारण न तो घर गया और न ही राजा प्रतापभानु से मिला।
 
Knowing Pratapbhanu's good times and estimating his own bad times, he felt very ashamed. Due to this, he neither went home nor did he meet King Pratapbhanu due to his pride.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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