श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  चौपाई 137.1
 
 
काण्ड 1 - चौपाई 137.1 
परम स्वतंत्र न सिर पर कोई। भावइ मनहि करहु तुम्ह सोई॥
भलेहि मंद मंदेहि भल करहू। बिसमय हरष न हियँ कछु धरहू॥1॥
 
अनुवाद
 
 आप अत्यंत स्वतंत्र हैं, आपसे ऊपर कोई नहीं है, इसलिए जो आपको अच्छा लगता है, आप करते हैं। आप अच्छे को बुरे में और बुरे को अच्छे में बदल देते हैं। आप अपने मन में किसी प्रकार की खुशी या उदासी नहीं लाते।
 
You are extremely independent, there is no one above you, hence you do whatever pleases you (freely). You turn good into bad and bad into good. You do not bring any happiness or sadness in your heart.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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