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श्रीमाती कुंति वांडा अराण्डा अराण्डा
रहे हैं, जो आप जो हैं भगवान, अंतर्वही अवस्तितम दितर में भी है, वो बार में भी है, भगवान तो सर्वत्र है, इश्वर सर्वूतानाम जिद्देश अध्युनति स्थति भगव दिता में, भगवान कहते हैं,
जिद्देश भगवान सबका रिदाय में है, सर्वूतानाम, यह पसूर्पत्ति, कीत, पतंग, मनुष्य, दिवता, सब जगह में है, भगवान, अन्नान्तरस्थं परमानु चहां परस्थं, भगवान, यह जो विश्व ब्रह्मान्ड है, यह विश्व ब्रह्मान्ड का भीतर
और यह जो विश्व ब्रह्मान्ड परमानु से बनी हुई है, वो परमानु का भीतर हुई है, यह अन्ता
और वही की यह सूर्जगा तेज में भी है, और यह हवावें भी है, मठ्टे में भी है,
कि तो यह आप तेज मरुद्धम, पंच भूज्य है, इधर भूज्ञ है, कि भगवान सब जगह में उपस्थित रहते हुए भी उनको दर्शन नहीं होता, भीतर में भागता है, उसका उदाहरण दिया है,
जैसे कोई व्यक्ति, उनका,
फैमिली का कोई और व्यक्ति, वो नाद घर में कोई प्ले कर रहा है, और उसको सामने देखता है जो प्ले कर रहा है, बगी देखता नहीं हो,
वो ऐसा धंग से प्ले करते हैं, तो वो भूल गया, जो उसका भाई है, कि बाइन है, जो नाद है,
तो इसी प्रकार भगवान बाहर में और भितर में सद्वत्तन उपस्थित है।
बाकि जो माया से महित है वो देगी। यह कारण है।
इन्नों गुनों से रही पर उसको दिखता है।
तो यह गुन से रही तब हो सकेगा।
जो बगवान का चरण में प्रपत्ति होये।
सर्णागति
सर्णागति, नागति सम्पूर्ण जानों।
बेरी गुण जानों।
आपतो लक्ष्मी है, आपके दिलिए ही तुषाव है।
आपके किर्पा।
श्री भाग्यों में धन होता है
और पुरुष भाग्यों में
पुत्र होता है
ये लड़की है
ये छोटा लड़की
सब से
सब से शादीयो गई
बच्चा
सब के साधी व्याण सब हम्मल करके बस
आपका आशिर्वाद है
आपका आशिर्वाद है
आपका आशिर्वाद है।
तो भगवान सब कुछ दिया।
सब आपको सब कुछ हमारे सब बिल्कुल देखना है।
बाहर भीतर सब।
हाँ, सब करे से, परिपुरें।
सब तो इनको कहें कि हरे कृष्ण का काम काज करेंगे भगवान के।
कहां आप लोग अगर करें तो बहुत तुझ करने का है।
चज्जद आठरिती स्रेष्ठा।
भगवान की पासे आप लोग स्रेष्ठ हैं।
कम चरण हम आजकार तो जनी कोई स्रेष्ठ मांते हैं।
तो आप लोग कोई आठरण करें तो इतर व्यक्ति कत्त देव और इतर ही जना।
बड़ा काम का जल्दी है।
आपका मिल्ह है, फैत्री है, और आप लोग अगर उसमें कृष्ण कांशस्चनेस।
यह हमारा कृष्ण कांशस्चनेस, मुब्बेंट का एक पाठ है।
That is in my idea. I have not been able to still introduce it.
कि जो बड़ा-बड़ा सा फैत्री है, फैत्री तो बंद नहीं हो सकता है।
जद्दों भी यह साथने इसको उग्र कर्म करते हैं। उग्र कर्म.
उग्र कर्म का अर्थ होता है उग्र का तेज। इसका अग्नी होता है, नहीं?
कोई तेजी होता है और कम-कम तेजी होता है। कर्म तो करना चाहिए।
बिना कर्म से हमारा पेट नहीं चलेगा।
शरीर जत्रा फिति ना प्रशिद्धेत अभर्मना। भगवान खुद बद्धन जेतु मुद्ध।
अगर कर्म नहीं करोगे, तो तुम्हारा शरीर जत्रा भी नहीं चलेगा।
यह material world है। वो तो परिश्चम करनी पड़ेगा।
बाकि कोई कम परिश्चम में साधन जीविका से शंतोष है और कोई चाहते नहीं है। बड़ा गॉर्जस्ट है।
तो यह गॉर्जस्ट लाइक लिद करने के लिए उग्र करने।
और नहीं तो कहीं भी आप सच्चा उपादम कर लीजिए।
फिर्शी गोरक्षा बालिज्जन विश्व करने सभावने। फिर्शी।
माया पुर्चलो।
क्या नहीं। मैं तो तैयार की थी।
तो आप लोग अगर यह कृष्ण कांशास्ति मुव्मेद में जान करेंगे, तो यह बड़ा एग्जाम्प्र होगा।
बहुत संघर एग्जाम्प्र होगा। साधर्ण के लिए।
जज्जद आश्वे जीश्वेष्ट्र तत्त रिवयुत रेजना। सजद प्रमाणं कृष्णे। लोकस्त अनुवस्ते। भगवान करें।
वो जो प्रमाण करेंगे कि पृष्ण कांशास्ति बहुत ठीक है। तो वो आपको फैक्ट्री भी करेगा।
वो जो आगारण स्रमिक है, तो वो आप लोग कर सकते हैं। फैक्ट्री में भगवान भोजार लगा दें। उसका तरीका हम लोग बता दें।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥