श्रील प्रभुपाद के हिंदी में प्रवचन  »  761015BG-CHANDIGARH_Hindi.MP3
 
 
 
श्रीमद् भगवद्-गीता 7.1
चंडीगढ़, 15-अक्टूबर-1976
 
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ये शुरू महियाशक्तमना प्रार्थ जोगं जिन्जन मदास्रया असंशयं समक्रंग्मां जता घ्र्ष्यसी तच्छिनो
आज दो रोज से हम लोग जो नास्तिक है अशूर है उनका विशय चच्छा
कर रहे थे कि अशत्तं अप्रतिष्ठं जगदाहु, अनिश्वरं, अशत्तं अप्रतिष्ठंति जगदाहु, अनिश्वरं
जो भगवान है नहीं, ये अशूर लोकाँ कहना है अशुर लोका कहते हैं जो भगवान है है
तो
अशुर का और एक परिचय है, भगबान खुद बताया है, कि जो अशुरी भावों मापन्या है, जो अशुर भाव से प्रभावित है, वो चार क्लास में उसको विवाजन किया जाता है,
जो लोग अशुर हैं, अशुर आप लोगों को समझा है, दो प्रकार का आदमी होते हैं, एक अशुर और एक देवता,
विश्व भक्त भवित देवा आशुर अस्तत विपर्ज, जो भगबान का भक्त होते हैं,
भगबान को मानते हैं, उसको देवता कहा जाता है, आप लोग देवता नाम सुने होगे,
जो देवता लोख है, ये सब इंद्र, चंद्र, बुरुन, भायू, बड़े बड़े सच देवत, ब्रह्मा जी, शीब जी,
ऐसे बड़े बड़े सब देवता है
तो
उन देवता उनको क्यों कहा जाता है
जब सब भगवान का सब
भक्त है
और भगवान का आज्या उनिशार
तो
काम करते हैं
भगवान
मालिक
और सब उनकी भृत में
यह चेहितन चेहिता मिर्दमे
बताया है
जो मालिक जो है वो कृष्ण है एकला ईश्वर कृष्ण आरशा भृत्त्व है भगवान कृष्ण मालिक है एकला ईश्वर कृष्ण
ईश्यर परम कृष्ण ये सास्र का विचार है चयंग भगवान कृष्ण कृष्ण सु भगवान सयंप ईश्यर परम कृष्ण और भगवान खुद भी बता रहे हैं भगवोर्धिता में
मत्तप्परतरं नान्यत किंति जस्ति धनन्यय। ये सब शास्त्र का निद्देश है। जो भगवान जिसका आपको मालूम नहीं हो सकता, भगवान खुद आ करके बता रहा हैं जो भगवान क्या जीज़ा।
ये भारत भून में भगवान, राम, चंद्र, भगवान, कृष्ण आ करके समझा रहा हैं जिसे भगवान निराकार नहीं है, और निराकार जो है उनकी शक्ति का परिचा है।
जैसे भगवान भगवत दिता में बताया है कि मया ततमिदं सब्बं अब्बक्तमूर्थी।
अब्बक्तमूर्थी, ये सब दुनिया अब्बक्तमूर्थी है, मस्तानि सर्वभूतानि नाहंतेशु अबस्तित्व।
इस सब विचार भगवत दिता में अच्छी तरह से समझाया किया है, तो भगवान है नहीं, ये मूर्खता है।
ये मूर्ख लोग, ओशूर लोग कहते हैं।
ये मूर्ख लोग, ओशूर लोग कहते हैं।
दुष्कार्यों में लगाते हैं. इसका नाम दुष्किति. और जिसको दिमाग ठीक है और अच्छे काम लिए दिमाग
लगाते हैं, उसका नाम शुकृति. वो भी अशूर और देवता, तो देवता लोग शुकृति और असुन लोग
दूस्कृति जो शुकृति होते हैं वो भगवान का पास पहुसते हैं चतुर्पिला भजंदेमां जनाचु शुकृति नवर्जो
चार प्रकार के बेक्ती जो शुकृति बान है चार प्रकार के बेक्ती कौन आर्त अर्थाति ग्यानी जिज्ञास हुआ
जो शुक्रिवान है, पुर्णवान है, वो दुखी होने से भगवान का पास पहुंचते हैं
जो भगवान, मैं दुखी हैं, आप कृपा करके कुछ उपाय कीजिए
जद्धपी ये सुद्ध भक्ती नहीं है, तथा भी उसको पुर्णवान कहा जाता है
जो दुखी होकर के भगवान का पास पहुंचते हैं, वो जद्धपी सुद्ध भक्त नहीं है
सुद्ध भक्त भगवान से कुछ मांगते हैं
अन्ना मिलाशिता सुन्नम ज्ञान कर्मा धनाबृतम आनु कुल्लेन कृष्णानु सिर्णम भक्ती भुत्तमा
उत्तम भक्त जो है, वो भगवान से कभी कुछ मांगते हैं
वो खाली भगवान को देने के लिए तयाँ
भगवान हम से सब कुछ ले ले
हमारा प्राण ई रत्तई धिया भाचा
हमारा प्राण में ले ले, हमारा धन भी ले ले
और हमारा वचन भी ले ले
और हमारा बुद्धी भी लें, ये सुद्ध वक्त का विचार है, जैसे पांडव लोग, भगवान सामने है, उनका मित्र, कृष्णा, उनको राज लूट गया, उनको परिवार, स्री को अफमान हुआ,
हमारा, बाकि आप लोग देखिए का महाबरत में, यब कभी भगवान से प्रात्वना नहीं की, ये भगवान, आप हमारा इतना मेरा मित्र है, और ये सब हो रहा है,
नहीं, कभी नहीं बोला, कभी नहीं, भगवान साथ साथ में है, बाकि भगवान से कभी प्रार्थना नहीं कीजिए, हमारा दुख मिठा दी, यह सुद्ध भक्त का विचार है, और जो लोग उस दर्जे में पहुंचने नहीं है, उसको कहा जाते हैं फुन्दमा, आगे जा कर
तब भी भगवान भजन कीजिए, अकाम शर्वकाम वाय, मोक्ष काम उदारधी, तीब्रेन भक्ति जोगेन जजेत परमंपुरूष, जद्धवि भगवान से मांगना उचेत नहीं है, ताकि साधारण व्यक्ति, जैसा खिरिष्टियन लोग भगवान से मांगते हैं, ओ ग�
भगवान को मांगने का कोई जरूरत नहीं है, भगवान जिसको जोड देना है वो सब देते हैं, यह को जो बहुनां विदधाति कामां, भगवान का अर्थ होता है जो सबके कामना पूर्ण करते हैं, तो जो खाने पीने का लिए भगवान को पास जाना यह खराब भी नहीं
इसलिए है जो भगवार मैं तो ये माया में फ़स दिया है आप क्रिपा करके फिर आपना सेवा में लगा ली
बाहर ओई नंदतनु जापतितं किंकरं माम बीशमे बबाम लो क्रीपया त्रवपाद पंक जस्थित धूली सदिशंग विचेंतय
कि चेतन महापुरु हमलों को सिखाया है जो भगवान से क्या से इस प्रार्थना करनी चाहिए
जो भगवान नंदतनु जापतितं भगवान जो विदर आये थे नंद महाराज का फुत्र हो करते बिन्नामन में ठाड़ते हैं
इसको भगवान का नंद नंदन बोलने से बड़ी खुशी होती है भगवान इसलिए चेतन महापुरु हमलों को सिखाया है अई नंदतनु जापतितं कृष्ण नहीं बताया बासु देवा उससे आओ भगवान खुशी होते है नंदतनु जापतितं की पया तब पाद पंक �
से ये जो भव समुद्र है जो material world भवतिक जगर इसको भव समुद्र बल जाता है भव कार्थ होता है जन्म लोगती एक दफ़े मरो और एक दफ़े फिर जन्म लोग और वो एक किसीन का जन्म नहीं अनेक प्रकार चुराशिलाग जोनी ये सब भ्रमन करने पड़ता है इसलि
भव समुद्र नजाने क्या जन्म हो जाएगा इसको समझना चाहिए मनुष्य जिवन इसलिए है जो ये भव समुद्र में देहांतर प्राप्ति एक शरीर छोड़ करके एक शरीर लेने पड़ता है अब उसमें हमको तैयार होना चाहिए जो किस प्रकार शरीर आगे हमको मिल
जदी आप तैयार होने को चाहते हैं तो निष्चित कर लिए कर लीजिए किदे आप जाने चाहते हैं जदी आप शर्वलोक आजी अच्छा अच्छा जहगे है
शर्वलोक, जनलोक, महलोक, सत्यलोक ये चतुद्धस भूबन है और नीचे भी है तल, अतल, पाताल, नीतल, तलातल, रसातल इस प्रकार है साथ
भूब, भूब, ओम, आप लोग जो गायत्री जबते हैं ओम, भूब, भूब, शातर्थ, सवितु, भरन्नम, भर्गदेव तो त्रि जवर उच्छे लोग में जाने चाहते हैं तब जाने सकते हैं
जो जानती देव वृता देवां तो देवतर लोग का उपश्चन कीजिए अब ऐसा है रूपलेन चर्प करके जो चंदरोग में जाएंगे ये संभव नहीं है
आपको तैयार होने पड़ेगा जब आप चंदरोग में जाने को चाहते हैं उसका साधन शास्ने विदी है कर्मकांडिय विचार से आप चंदरोग में जा सकते हैं
और उदर जाने से आपको देव बर्श वर्ष यानि हमलों को छमाइना उनका एक दिन इस प्रकार दस हजार बर्श परमायों उदर मिल सकता है
और भोग इदर से हजारों गुण जादा ये सब मिल सकता है इसलिए बोला जाता है सद्वलोग जनलोग महलोग तपलोग ब्रह्मलोग
जदी आप उच्छे लोग में जाने को चाहते हैं तो उस प्रकार प्रस्थुत होईए उदर आप जा सकते हैं
जानती देव वर्ता देव आंद पित्री जानती पित्री व्रता
पित्री रोग में आप जाने चाहते हैं साथ्य पुन्णादी कर्मकांडो विचार करके
और ज़री आप इदरी रहने चाहते हैं कि हमारा देश है यह भारत वर्ष है कि यह इंग्लेंड है
आजकार नेशनलिजम खुब चलता है
पिज़े भी रह सकते हैं
जानती भूति जादू तानी
और जदी आप चाते हैं
जो हमारा पास चले आएंगे
मत जाजिनो पी जानती माँ
तो भगो जफ्त हो जाएगे
फिर भगवान का पास चले जाएंगे
तो आपको विचार है
कहां जाना है
तथा देहां तरप प्रात्ती
इसके लिए तैयार होना चाहिए
जानती देव ब्रता देमाण
ये मनिश्व जीवन का ये कर्तब्भा है
ऐसा खाली पशु का ऐसा जीवन जापन करना
और भगवान भगवान को जाए नहीं
खाओ अपने लोग मजा करो
ये पशु जीवन है
ये उचित नहीं है
इसलिए जो भगवान को समझने के लिए
प्रजतन नहीं करते हैं
उसको असूर कहा गया है
असूर
और असूर लोग चाति भाजन
जैसा हम बोल रहा था
कि एक तो था है दुश्कृतिन
जो पापी
केबल पाप का जिकट जहाँ है
दुश्कृतिन और एक
मूर्हा है
मूर्हा का अर्थ होता है
जे गधा
कुछ समझता है नहीं
भगवान है नहीं कैसे बोलोगे
जद भी आप मूर्हा, गधा नहीं है
तो भगवार है नहीं, यह आप नहीं देख सकते हैं, थोड़ा विचार करना पड़ेगा, अब देखिये, आप अपना शरीर से ही विचार कर सकते हैं, यह जो आपका शरीर है, यह हमारा शरीर है, हम बहुत उस्तादी करते हैं,
जब तक हम जीवित हैं, यह हमारा कोई बाल ऐसा पकड़ने तो हम बहुत गुश्चा हो जाते हैं, और यही शरीर रहेगा, और जो भगवार का आंसः है, जीवात्मा, यह शरीर छोड़ जाएगा, तो यही शरीर में कोई जूता भी लगा है, तो कोई कुछ बोलेगा नहीं,
इसी प्रकार यह जो गुड़ा रूप शरीर है, कॉस्टिक मैनिफिस्टेशन, इसलिए भी परमात्मा है, इसलिए इसका इज्जत है, इसलिए छित टाइम पर सुर्जे बुले होता है, छित टाइम पर शरीर है, और भगवार खुद बोल रहे हैं,
मया अध्यक्षे नापरकिती स्वयत्रि सचराचराण, इधरवान की आज्यास, तो जैसा मैं यह शरीर में मोज़ता है, इसलिए शरीर छित छित काम सेते हैं,
और इससे आगे भरिए, आफिस में जाइए, गौर्वर्मेंट जाइए, मिनिस्टर साहब है, प्रेसिजेंट साहब है, इससे गौर्वर्मेंट ठीक सर रहा है,
आफिस में जाईए, मैनेजिंग डिरेक्टर है, दवी आफिस ठीक से सब चल रहा है, कहीं भी जाईए, एक कर्ता, एक देखने बाला, एक मालिक जरूर होता है, तो इतना बड़ा भारी जो ब्रह्मण्ड है, इसे कोई है नहीं, जगदाहु अनिश्चरम, कितना बड़ा मूर
नहीं, तो साधरंग एक कर्ता होता है, वे कहीं भी जाईए, एक कर्ता होता है, एक देखने बाला होता है, एक हुकुम देने बाला होता है, तो ये सब विचार नहीं करते हैं, ये राक्षस लोग बोलते हैं जो भगवान हैं,
इसलिए कहते हैं मुडा, और गुड्धा क्यों रहते हैं, गुष्पितिन नराधमा, जो खेल पाप कार्ज करते करते हैं, जिन मनुष्य जीवन जो मिला है, उसमें अधम रह जाता है, उससे उन्नती नहीं हो सकते है, पाप कार्ज करने से वो मनुष्य जीवन, मनुष्य होते
हमारा उचीत नहीं है, आज सब हरी एक वेट्री से मिलंगर वो बोलता कि हमको तो रोटी चाहिए, कपरा चाहिए, भगवान से हमारा क्या मतलब है, ठीक है रोटी चाहिए, कपरा चाहिए, और ऐसे तो जानवार्द होते हो, वो वे तो हमको कपरा ही नहीं चाहिए, केवल रो
जल्के। लूप के दुरे रोटी के लिए इक पुरिश्च्छम करता है। ये तो सुवर है।
कां जिसे सुवर पुरिश्च्छम करता है, दिन बाद। कहां भूर है, कहाँ भूर है।
तो मनुष्या अगर ऐसी करें, तो कहां रोटी है, कहां रोटी है, इसलिए केबल परिश्चम करें, और कुछ ज़रूरत नहीं है, यह तो सुवर कुकर भी काम करता है, ऐसा सब चलता है, भगवान को नहीं, जो चाते हैं, भगवान का विशय, जो समझने को नहीं चाते हैं, �
या, और जिस जिवन में भगवान से संपर्क तो है या है, तो यह ज़िल का जौरमेण का. जौरमेण है, जो जेल में रहता है, उससे भी संपर्क है,
और जेल का बहाई जो है, उससे भी संपर्क है, गौर्मेण का संपर्क छुद्ड नहीं सकता है.
कि मैं कि आप को सर्व है तो आज नगत आए और यह पैसा है जय होता है विशय संपर्थ उंदैशन
सेट भीम पड़क फॉर जी सेल में आता है तैरे भी लो तो क्या कारण है पाप काम किया है
चोड़ी किया है, और कुछ किया, और कुछ किया, उनको भूर में भर्ची किया जाता है, इसलिए बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत
बहुत बहुत बहुत बहुत
जो अनादे भदिन्मुग जीत कृष्ण भुले गेला, अताये कृष्ण वेद पुरान करिया, यही जो भदिन्मुग जीत, ततो पुरुच चेत साओ, माया सुखायो भरमत वर्तु विमोरा, पुरिलाद महाराज भगवान से, निशिंगन देवशिन बताया था, जो महाराज
क्योंकि, जब आप पुरदान भर करता हो, तो हम सुखी हो जाते हैं, तो तुमको मानू होता है कुछ दुखी है, हाँ, जरूर दुखी है, क्यों,
ना सोचे ततो भिमुको चेत सा, माया सुखायो भरमत वर्तु विमोरा, मैं इसके दुखी होगे जो मुढ़ा है, जो आपको मानते हैं नहीं, अच्छा सा दुखी है, इन लोग के लिए मैं दुखी है, जिसको किस तरह से सिखाया जाए, जो सुखी होए, तो वैश्णा, व
हमने भगवान के कुछ प्राप्ता भी नहीं करते हैं, वह शुद्ध वैश्णा है, परंतु वर दुख दुखी, दुनिया में जो मोर ख़लो, ये भगवान को भूल करके दुख उठा रहा है, दिन भार सुवर का ऐसा परिश्चम करते हैं, जो रोटी खाने के लिए, और �
परिश्चम करने के लिए, गधा, जैसा, आजकार सब रिक्षो भी ठेलता है, और ठेला भी ठेलता है, इतना परिश्चम करता है दो रोटी के लिए, फिर भी उनको उत्तेजित किया जाता है, जो और परिश्चम करो, और परिश्चम करो, वो घुरा का काम करता है, गध्ध
जीवन रही है। मनुष्य जीवन होगा कि आरांसे जो भगवान खाने को दिया है। भगवान बहूत χाने को दिया है। भगवान खाने का कम नहीं है। कंकि वो स्थास्त्र में कहते हैं। एको जब वहु नाम विदजाती कामा। नित्या नित्या नाम चेतनस्चेतना नाम।
न हन्यते हन्यमाने शरीरे
भगवान कभी मरता नहीं
जीवी कभी मरता नहीं
जबकी अंतर क्या है
जो भगवान का शरीर पलटता नहीं
हमारा शरीर पलटता
इसलिए
हमालों होता है
जीवी मरता है, ने
भगवान इसलिए शिखाते है
नहन्नते हन्माने सरीरे
ऐसे न समझो
कि जो सरीर उसका नस्ट हो गया
तो मरया ने
वो तो भगवान का अन्सर है
ममे ईमाँ से जीव हो जाए
जो भगवान का क्वालिटी है
जीता या एक क्वालिटी है
जो सोना
एक सोना, इतना बदल सोना
वो क्वालिटी एक ही है
यह नहीं है
जो सोना का तुकड़ा होने से लोहा हो गया
तिसी प्रकार
ममी वांग से जीव भूता
जो भगवान का क्वालिटी है
वो जीव आत्मा भी है
छुद्र हिसाब से है
यह आप लोग समझ सकते हैं
बैकि माया का आवरण से
यह जो भूती का आवरण है
खितियाप तेजमरुद्बाउ
और मनबुर्दी अहंकार से
जो जो आवरित हो गया है
शुक्राशरी और
स्थूर शरी से
वो जो आवरित हो गया है
वो उसका नाम है भवरो
उससे चुक्री होनी चाहिए
इसलिए भगवान आते हैं
उद्देश है
तुमारा जो चीत सरीर है
जो जैसा हमारा सच्चित आनंद विद्ध
तुमारा भी ऐसी सरीर
वो है
तुम केव इदर अतना तकलीब उठाते हो
तुम हमारे पास हो
तुम तो हमारा पुत्र है
जैसा एक धनी आदमी है
उसका पुत्र पागल हो गया
तो बाप तो चाहते है
जी पागल को किस तरह से आराम
ठीक किया जाए
घर में आके आराम से रहे
और हमारा तो संपत्ती बहुत है
वो अपना खाये पीए मजा करे
ये बेकू ऐसा पागल हो गया
क्या क्या जाए रस्ता में घुमता है
नंगा हो करके
और हने एक प्रकार दुख उठाते हैं
तो पिता उसलिए बड़ा
परिशान रहता है
इसी प्रकार भगवान भी परिशान है
ये जो हम लोग पागल हो करके
इदर आकटे शुकि होने चाते हैं
इसलिए भगवान आकटे
आकटे समझाते हैं
जदा जदा ही धन्मत्ष गलानी
भवत भी बारत उप भुत्थानम अधर्मत्ष
तदात्मानम सिजाम्यहं
पृत्रानाय शादुना
पृत्रानाय शादुना
इसलिए भगवान आते हैं
जो देवता है वो दर्शन करते हैं
उनकी इच्छा है कि भगवान का एक दर्शन होई
यह सभी इच्छा करते हैं
जद्दबी भक्तों जो हैं
जो भगवान कहें जो हमको दर्शन दीजिए
पुकुप नहीं करते हैं
बाकि इच्छा तो ज़रूर्ड होती है
जदी भगवान का एक दर्शन हो
इसलिए भगवान आते हैं
बिनास आया उसे दुष्किता
वो भगवान की इतना सक्तिया है
किसी को चाहे उसी बगद बिनास कर सकते हैं
बाकि भक्ति भी आते हैं
परित्राणाएं और साधुनाएं भिनाशायें तो दूस की ताम जाता है, तो भगवान जो अशुर है, उसको कहते हैं, जो, देखो जी, ये ठीक नहीं है, भगवान है, हम हैं, हम आदि, आम आदि भी दीमाना, अहं सर्वश्य प्रभवत, मत्त सर्वं प्रभवतते, इति मत्
उनको शिखाते हैं भगवान, नहीं, मैं हूँ, देखो, ये है, मैं भगवान, ये है, प्रेमान्यन छुरीत भक्ति मिलो चनेना, दर्शन करो, और फिर, सर्वधन्मान परित्तर्य, ये जो आशुरिक धन्म तुम शिकार किया है, और जन्म जन्मान तर केबल दुख उठात
कितना दुख उठाओगे, ये सब सोचो, सोच करके, सर्वधन्मान परित्तर्य, ये सब तुम जो प्लैन बनना है, ये सब में कुछ काम होगा नहीं, मामीतं सरनंग जो, अहं त्वा सर्वपाप इब्बा मक्खो इस्तामि, मैं तुमको जितना पाप क्या है, भोगना है, इ
भगवान क्या चीज़ है, उसको समझाने के लिए, ये सात्मा उद्ध्याय में भगवान बताते हैं कि
मैं या असक्त मना प्राथ जोगन जिन्जन मदास्वय, असंग साम समझ द्रंग में, असंग साम, ये तो अचूर होते हैं, कुछ का बात तो छड़ दिये, जो जित ग्यास्त वर ग्या, वो आर्थ तो अर्थार्थी जादा गिरस्त लोग होते हैं, क्योंकि गिरस्त आस्रम
हैं, अजवी नहीं है, अजवो नहीं है, है ये, और चाहिए, और चाहिए, उसका नाम है, और्थार्थिक, और आर्था तो होती है, धन कम हो गया, तो दुखिये होते हैं, ये काम नहीं चलता है, ये काम नहीं चलता है, तो आर्था आर्था जी, ये ज्रोस्थ लोग हैं, �
ग्यनी जिज्ञाशु, वो तो भगवान क्या चीज़ है, उसको समझने चाहते हैं, बड़े-बड़े साफ दार्शनिक विचारत हैं, उलो, वो नहीं है, भगवान का इतना उड़ा नहीं देते, नास्ति जो है, उड़ा देते हैं, भगवान है नहीं, वो तो महापापी हो ग
पर परता है, भगवान उन्हां क्या चीज़ है, एवं प्रोफेसर आयब्स के वो शिकार क्या था, जितना आदे भगा हैं, हम देखा हैं जो भगवान जिरूर है, ये बना विज्ञानिक हैं,
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
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