श्रील प्रभुपाद के हिंदी में प्रवचन  »  760829SB-DELHI_Hindi.MP3
 
 
 
श्रीमद् भागवतम 5.5.1
दिल्ली, 29-अगस्त-1976
 
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शी रिशर्दे बुवाचा नायं देह देह भाजां निलोके कष्टान कामान अर हते बीर भुजां जे
तपो दिव्वं पुत्र का जेना शत्यं सुधे जस्माद ब्रह्म सोखं अनंतं
विशाब देव जो की महाराज भरत की पिता थे
महाराज भरत दिशकारादा
नाम से ये प्रिधिवी को भारत बर्श कहा जाता है
उनकी पिता विशाब देव
बगवान का वतार
वो अपना पुत्र को सब उपदेश दे रहे थे
रिटार करने का प्राइले
पहले
सब कोई रिटार करते थे
राजा होए
विशेश करते ब्रामन
छत्री बैशा
विशेश करते ब्रामन छत्री
रिटार करते थे
आजकाल जैसे है रिटार
कोई नहीं चाहते है
ये बैदिक सिस्टम नहीं है
बैदिक सिस्टम है
बर्णास्यम्त
जो चीज
हिंदु धर्म नाम से
चलता है
वो आजकाल हजपच हो गया
असल चीज है
बर्णास्यम्त
और
वो
बर्णास्यम्त धर्म का उद्देश क्या है
भगवद्भयम
विश्नु आराध्धते
बर्णास्यम चारवता
फुरुशेन परप्पुमा
विश्नु आराध्धते
ना अन्यत तत्तोस कारणम
ये होगा
वोल सिविलिजेशन
सब्वता
वैदिक सब्वता
उसका उद्देश है
विश्नु आराध्धन
विश्नु आराध्धते
बाके
मुश्किल है
कि
नते विदूस्ते
शार्थगति यह विश्नु
ये सब जानते ने
जो ख्यों शार्थगति
किधर होनी था
मामेवा
सररंगत
ये शार्थगति
बगवां देश्वर
सर्वधर्मान परित्तर्य
मामे कंग सररंग
ये शार्थगति है
तो
ये शास्त्र में
सब जगह में यही समझाया जिया है कि रीच दिगोल अप लाइट जीवन का उद्देश क्या ति बर्णासन धर्म जो है इसका भी उद्देश वही है
विश्नु आराधन के लिए सामाजिक विभाग ब्राम्मन, छत्रिय, भैश, सुद्र और पारमाथिक विभाग ब्रह्मचारी, ग्रियस्त, बानप्रस्त, सन्यास
यह इसका नाम है बर्णास्तम का
तो बर्णासन धर्म तो तूट जिया साओ
है, नाम से है, काम से नहीं है
इसलिए चैतर्ण महाप्रभु विश्नु आराधन के लिए
है तो उद्देश विश्नु आराधन
अब वो बर्णासन जो सिस्टेम वो तो तूट जिया है
वो फिर इस्टैबलिश करना बहुत मुश्किल है
इसलिए शास्त्र शिद्धान्त से चैतर्ण महाप्रभु
ये कीतन, संकीतन परवर्तन किया है
ये शास्त्र शिद्धान्त है
कलो दोशनिधे राजन ती अस्ती एको महान गुनो
कलिजुग में भागवत दादसकंद में
कलिजुग का विवरण है सब
पाँच अज़ार बर्श पहले शिमद भागवत दिखा गया था
उसमें भविष्यत में क्या क्या होगा कलिजुग में
सब बताया गया
तो उस प्रसंग में
परिखित महाराज को
सुगदेव गुश्चमी बताया
कि महाराज ये कलिजुग है
ये दोश की निधी
समुद्र
कहां तक इसको दोश
और निद्दोश
आप विश्लेशन करेंगे
समझ दीजिए एक दोश का समुद्र
केवल दोश ही दोश
तो इसमें एक महान भून है
वो कलिजुग के लिए विशेश करके
केवल की
कलिजुग में
विशेश करके सब पतित है
पतित का कारण
पतित बोलने का कारण ही है
कि जो
जीवन का जो उद्धेश है
उभुइया
वो केवल
हिंदिय तत्पन करने के लिए
दिन महर परिश्वम कर रहे हैं बाकि जीवन का उद्देश की आयो नहीं जानते हैं ये कली जुग का विशेष लक्षन सबसेव सब जुग में यही बात है
कि भगवान को भुल जाते हैं और ये शरीर पालन करने के लिए दिन महर परिश्वम करते हैं
तो आज में ही अनेट हजार बरस पहले यही लक्षन विशवदेव अपने पुत्र को समझाया
बेटा ये जो शरीर है अयं शरीरा
ये जो शरीर है नी लोके मनस्या समाज में
शरीर सबी को मिलता है कुट्टा को भी मिलता है गधा को भी मिलता है
बागि ये जो मनस्या का शरीर मिला है नायं देह
ये जो शरीर है नायं देह देव भाजाँ नी लोके
मनस्या समाज में जिसको शरीर मिला है
कश्टान कामार न अरहते कामान अरहते विर्भुजान जी
ये शरीर को दिन भार खाली परिश्यम में लगा देना
और जीवन का उद्देश जो है विश्णु आराजन उसको भूल जा गाया
ये उचीर नहीं ये बहुत दिन पहले समझाया न आरहते
क्योंकि ये जो शरीर का साधन आहार निद्रा भय मैथोण
कुछ खाने को चाहिए कुछ सोने का जगा चाहिए आहार निद्रा
और भय से कुछ बग़स्था करनी चाहिए आहार निद्रा भय मैथोण
आश्ती पुरुष का समग तो
विश्व जो कहते हैं
कहते हैं यह शुवर भी करता है, इसमें कोई महादुरी नहीं है, बिर्भुजाओं, विशेष करते बताया बिर्भुजाओं, बिर का अत्वता है मैला, और मैला खाने वाला जो है, शुवर, वो भी दिन भर परिस्टम करते हैं इसी लिए ही, कहां खाने का चीज है, कहां शो
विरिशम्मक करने का ववस्ता है, आकाँ भयभीत से बचना है। इसके लिए नहीं है। यह तो जानवारी भी करता है। सुवर तक बता दिया, विर्भू तक। फिर किसलिये है? तपो दिव्यम। यह जो मनुष्य शरी है, तपस्य करने के लिए। इस बेदिक सिविलिजीश
सत्तं शुद्धे। यह जो हमारा सत्ता है, I am, सब कुछ जानते हैं, जो I exist, यह सत्ता, शुद्ध गर्ण की। क्या अशुद्ध है, क्या अजरूर अशुद्ध है, इसलिए अशुद्ध है कि तुमको मरने पड़ता है। भगवत गीता में भगवान साक्षात बताते हैं,
शरीरे, जीवात्मा जो है, वो शरीर धन्स हो जाने से वो मरता नहीं। नाहर्नते अंतवत्तु में देहा नित्तशोक्ता शरीरिन। यह जो अंतवत्त जो है, जो नष्ट बने वाला है, वो है शरीर।
और शरीर का अंदर में, जो की आत्मा है, वो नष्टव होना लगनी है। तो शुद्धेत शत्या, यह जो सत्या शुद्धी, शुद्य शत्या, स्पिरिच्याल, शुद्य शत्या का अर्थ होता है स्पिरिच्याल.
यह जो सत्या है यह शुद्ध नहीं है अशुद्ध है क्योंकि त्रिजुन्न प्रकीते क्रिमालानि गुणई कर्मानी सर्वत है
यह शरीर जात्रा निर्वाह होता है प्रकीते प्रकीती गुणय शतर रोजतवा गुन इसका वर्च चलता है
जिसको सतुगुण है उसको अच्छा सरीर मिलता है
ब्राह्मन का सरीर मिलता है देवता का सरीर मिलता है
रजु गुण है चत्रिर का सरीर मिलता है
इसी प्रतार सब सतुगुण रखे
कारणन् गुणसंग अस्षा सदसत जन्म ज्योणिशु
ये जो उचा नीच शरीर सम मिलता है उसका क्या कारण है कारणन गुणसंगस ये जो अपर्खिती का गुण है
शतगुण राजगुण तमगुण जिसका साथ मैं शंग करूँगा उसी प्रकार शरीर हमको मिलेगा कर्मना दैयो नेत्रेना जन्तर देह उपपत्ती
तो विभिन्न प्रकार जो शरीर हमलोग मिलता है इसका क्या कारण है कारणन गुणसंगस ये जो प्रकिति का गुण हमलोग शंग करते हैं
जैसा एक रोग होता है, इंफेक्शर्स, आप जान करके और अजान करके कोई रोग का भीजान को अगर संशक्र करेंगे,
तू रोग से आपको भोगने पड़ेगा। इसी प्रकार कारण और कुणशांग अस्छा। जैसे जैसे गुन से हम संग करेंगे,
उसी प्रकार हमको सरीज मिलेगा। तो सरीज, चाहे ब्राह्मन का सरीज मिले, और चाहे देवका का सरीज मिले,
और चो कुट्टा का शरीर मिले और नीच शरीर मिले अंत बक्तुई में देहा ये सब अंत होने वाला है
और भगवत दीता में शायंग भगवान पहली बता रहे है तथा देहा अंतरप प्राप्ती
देही नश्मिन् जथा देही कहूं मानो जोइ बनन ज़रा तथा देहा अंतरप प्राप्ती
देहांतर होगा अब किस प्रकार देहांतर होगा आदे जाके कि हमको क्या शरीर मिलेगा ये सब हम लोग नहीं जानते
जद्धपुरी शास्त्र में सब कुछ बताया गया है
जो जैसा तुम शरीर चाते हो ऐसा मिल जाएगा
उस प्रकार शादन करो
जानती देव बृता देवान पितरीन जानती पितरीन बृता
भूते जा जानती भूतानी मज्जा जिनोपी जानती माम
जदी उच्छलोग में जाने चाते हो
सर्गलोग जनलोग महलोग तपलोग अनेक सभी उच्छलोग है
उदर भी जा सकते हो जानती देव बृता देवान
पितरीन लोग जा सकते हो पितरीन जानती पितरीन बृता
भूते जा जानती भूतानी और यदि इधर ही रहने चाहते हो वो भी हो सकेगा और भगवान का पर जाने चाहते हो
तो भगवान भजन कर लो चब चीज खुला हुआ है जैसा हम लोग चाहते हैं जते छशी तथा खुरू भगवान और जुनको बताया
कि तुमको शरम बता दिया है अब तुम इसको सोच करके भीवचन करके जैसा चाहते हो ऐसा करो
तो सब हमारा ही हाथ में है हम देवलोग में जा सकता हूँ फित्रलोग में जा सकता हूँ
इदर भी रह सकता हूँ और जदी चाहे हम तो भगवान का पास जा सकता हूँ
यह सब चीज शास्ने बताया है किस तरह जा सकेंगे
तो वही चेत विशाब देख बता रहा है कि यह जो मनुष्य शरीर मिला है यह जंशन है
तुम जैसे चाते हो आगे जाखर के मिलेगा क्योंकि देहांतर तुम्हारा तो हो गई
तथा देहांतर प्राप्ति धीर अस्तर्थनमियति जो बुद्धिमान है धीर है
वो बहुत जल्दी समझ जाता है जहां देहांतर होता है
जब महा मूर्ख होता है वो देहांतर क्या समझता ही नहीं
आजकाल रही एडुकेशन है महा मूर्ख होता है बड़े-बड़े साथ इनिभार्सिटी प्रफेसर
महामहा मूर्ख सब द्रहानतर समस्केर हैं वो लोग कहते है सामी जी ये सरीद जब मिट जाता है सब मिट गया
बड़े बड़े लीडर लोग बड़े बड़े सब प्रफेसर एजुकेशनेस वो द्रहानतर किया है नहीं समस्केर है
और भगवान स्वयंग बता रहे हैं, और उदाहरण में दे रहे हैं, कि हो मार जोध्वन में जड़ा, जथा, एक बालक है, उसको ज़वान होने ही परेगा, देखांतर, वो बालक शरीर नहीं रहेगा, उसको जुबक का शरीर मिलेगा, अगर बालक, अगर कहते हैं, नहीं, हम
होने पड़ेगा, और अगर जुबक कोई कहते हैं, अम बुढ्धा नहीं होगे, तो बोलने से क्या होगा, होने
पड़ेगा, तथा दिहान तर प्राप्ति, तुम बोलने से क्या होगा, अम, दिहान तर नहीं होगे, मैं
तेज देह हम सब सेश कर देंगे, बोलने से नहीं होगा, प्रकि देख किरमारानी, जुनें करमानी सर्वस्था, अहंकार विमुरात्मा करता हम इति मन्नत, जबर्दस्ती बोलने से क्या, छुट जाएगा, नहीं, ये संभव नहीं, तो ये सब आजकाल एजुकेशन दिया जा
शास्त्र में जो से बताया जिया है, उसको मानते ही नहीं, तो क्या किया जा, अहं, इतना मूर्खो गिया शास्त्र, और भगवान खुद बता दे, जशास्त्र विधीमुथ सिद्ध्य बत्तते कामकारत, ना शिद्धिन्शा वापनती, जो शास्त्र सिद्धानता है, उसको
और न सुखंग सुध भी नहीं मिलेगा, और परागती का तो बात ही छोड़ दिये, यह सब चर्ड़ा है, इसलिए हम लोग थोड़ा प्रजत्न कर रहे हैं,
कि यह कृष्ण कॉंशास्टनेस मोवमेंट में, जो अमारा शास्त्र में जिस प्रकार लिखा है, उसको ग्रहन किया जाए, जीवन को सुधारा जाए,
और आगे जाके हमारा उद्देश जीवन का उद्देश क्या है, उसको सफल किया जाए, तो यह सब निशब्देव आज नहीं, बहुत दिन पहले एही चीज़, एही बताया जाता है,
कि देहांतर प्राप्ति, और यह कोश्चेंज देहांतर क्यों होई, देहांतर इसलिए होता है कि सत्या सुधी नहीं है,
जैक्षा कोई आदमी बीमार हो जाये, तो उसको दुख भोगने परेगा, इन सास्थ्यों से बताते हैं, जहां आपने भौतिक शरीर ग्रहन किया, आपको दुख भोगने परेगा,
दुख अनेक प्रकार होता है, कुछ ना कुछ आपको दुख होगा, नहीं पड़ेगा, क्योंकि असन्नपी क्रेश दे आशदे हो, जद्दपी ये शरीर सब दिन के लिए नहीं है, जब तक ये शरीर रहेगा, क्रेश दो, दुख देगा,
तो आओ, हमलोग सबको यही प्रजत्न करते हैं, तो दुख निवित्य, किस तरह से दुख निवित्य है, तो दुख निवित्य क्याशी जाए, वो जानते ही नहीं हमलो,
इसलिए भगवान साथ-साथ बताते हैं
जो तुम्हारा जो असल दूख है
जन्म मित्तु जराब्यादी
तुम तात्कालिक सामयिर जो दुखों निद्वित्ति करते हो
वो तो शरीर जो सुख मिला है
वो शरीर का साथ-साथ वो समिर जाए
फिर तुमका और एक सरी लेने पड़ेगा
अपना कर्म का अमिशार
और उसका दुख भोगने पड़ेगा
तो जदी दुख से
तात्तंतिक दुखों निद्वित्ति
जदी चाते हो
तो ये सत्ता का सुध्ध करो
उसके लिए तपसा
तपो दिव्यं पुत्र का जेना
शुद्धेत सत्या
सत्ता सुध्धि करो
आव वो सत्ता सुध्धि करने का
मौका किसमें मिलता है
अयंग धेहा
नी धेहा
नी लोकी
नायं धेहा धेहा भाजांग
नी लोकी
कष्टान कामाना रद्विते
इस शरीर को
नस्ट कर सकते हो
यही शरीर में
वो शरीर को
ये शुवर कुट्ट का ऐसे
लगा करके केवल भोजन
और स्री संभाग और
आहार अनिद्धा भाय में चुम्मे
और उसके लिए दिम भार
तकलीब करना यह उचीद
नहीं है यह
विशब देव का उपदेश
जब मिला है हमको कुछ
खाने को चाहिए
यह तो जड़ी बात है और सोने
का भी जाजा चाहिए
और इंद्रिय है उसको
भी थोड़ा भोग चाहिए
और
वैसे भी किस तरह से निवित्रि
होए यह जड़ूरी है
बाकि इसी के लिए
केवल जीवन है
यह महामूर्खता है
जीवन का और कुछ
उद्देश्व है
वो उद्देश्व क्या है
तपस्या
दिव्बम दिव्ब चीज
लाब करने के लिए तपस्या
इसलिए
समाज का विभाजन है
जो ब्राह्मन, खत्रिय, भैश्य, सुद्र
जो ब्राह्मन लोग जो है
वो अपना जीवन में
तपस्या किस तरह से करने मुझे तार
दिखाता है
समाज दमा तितिख्ठा
आर्जव ग्यानं विज्ञानं
मास्तिकं ब्रह्म कर्म सभावल
ब्राह्मन आईडियल लाइफ
वो दिखाते हैं
दिखाकर सिताते हैं इसलिए ब्राह्मन
सिच्छल्खाय गुरू है
शास्में बताये गया है
और छत्री
ब्राह्मन से उपदेश ले करके
प्रजात जिस तरह से
जीवन जापन करने से
उसको उपकार होगा
ये छत्रे का काम है
और बैश्य का काम है
खाने का चीज सबको
मिले
उसको बंदबस करें
कृषी गोरक्षा बानिज्जम
बैश्य कर्म सभावजम
खाने का चीज मिल जाएगा
कृषी कार्ज करने से
अन्नपायदा करने से
भगवान खुद भी बताते हैं
अन्नाद भवन्ति भूतानी
खुब अन्नपायदा करो
खुब नहीं
जितना जुबरत है
अन्नाद भवन्ति भूतानी
पज्जन्यात अन्न संभव
और अन्न तभी संभव होगा
जब थीक थीक
बर्सात होगा
पज्जन्यात अन्न संभव
जज्यात भवन्ति पज्जन्या
पज्जन्या और जदी जग्ञ करेगे आप तो जथा समय आपको बृष्टी मिलेगी और जिसमें जमीन में आप अच्छी तारे से
बड़ा सहज से अन्न पाइदा कर सकेंगे जग्ञात भवन्ति पज्जन्या पज्जन्यात अन्न सम्भव
ये सब शास्ने विदी है शरल भाव से आपने खाने के चीज मिला और अनन से रहा और बाकी समय जहांको मिला
तपो दिव्बम तपशाकरों ये सिविलिजिशन है ये सब्वता है और ये सब्वता नहीं है जि केवल सुवर का ऐसे
दिन भर काहां गू है गू हां देख जी देख जी देख जी
इसे सब्वता के लिए मिलना है fallat mechanical
नाए मदेह देखो भाजाँग निलोपि कस्टान और उसके लिए दिन भाई परिच्छम करना है
लाउ रुपया, लाउ रुपया, लाउ रुपया
इदं अद्धा मया लग्धम इदं प्राप्षी पुनद्धनम
ये जो आशुरिक सिविलिजिशन है
अब तो इतना रुपया मिल गया है
अब इतना और चाहिए
इतना बैंक बैलेंस होना चाहिए
इसी तरह से शारा जीवन सुवात ऐसे परिश्चम करके
केवल खाने सोने और संभोक करने के लिए
ये जो सब्बता है ये उचीद नहीं है
कम सकाम मनिश्च जीवन में ये उचीद नहीं है
तपसा करनी चाहिए
तपो दिव्बम
और कलिजुंग में वो तपसा बड़ा सरल
ये आपको जो बता रहा है
जे कलिजुंग में तो दोश दोशी है
परन्त एक शुविता है
वो क्या है
केटना देवकृष्णस्व
मुक्तसांगा परंवधि
केवल
बगवान कृष्ण का नाम कीतन करने से
वो मुक्तसांग हो जाता है
ये जो दोश है
कलो दोश निधी
ये दोस्थ से छुट्टी मिल जाती था, निद्दोस हो जाती
ये चेतन महापुर्ब ता है, चेत धर्पन मा जनम
दोस्थ सब कहा है, ये सब रिदर्यमें ही है
सब जितना दोस्थ हमारा है, डाटी थिंग्स, वो सब हमारा रिदर्यमें है
ते ये जो हरिकीतन है ये तैतन महापुरू समझा है जो हरिकीतन करने से पहली जो बात है चेत दत्पनमाजनम ये जो चित्ता है चित्त शुद्धी हो जाए
ये जो आम समझते है कि मैं ये हिंदु है ये मुसल्मान है माई इंडियन है माई अमिरिकान है ये सब क्या चीज़ है ये सब उपादी है
असल जो है हम अहं ब्रह्माश्णी ये असल परिज़य है ब्रह्म भूत प्रशन ना अत्मा ना सोच थी ना काँच थी
सब शास्ते ने बताया ही है
बड़ा सदल भाज है
तो इसके लिए परिश्टम करना चाहिए
और उसके लिए
थोड़ी सी तपस्था करना चाहिए
अब देखिए इसका प्रमान सरूप
ये जो यूरोप एमेरिका में
सब ग्रहं कर रहा है
उसके लिए कुछ तपस्था कर रहा है
क्या तपस्था? चार चीज़
नो इलिसिट सेक्स
नो मीटी चीज़
नो इंटॉक्सिकेशन
नो गैम्डि
चार चीज़
जैसा हम ये चोके में बैठु हुए है
इसको चार पैया है
इसी प्रकार
पाप में जीवन जा है
उसको चार पैया एही है
कि
इलिसिट सेक्स
और मानसादी भक्षन
और
जुवा खेलना
और नसा भाग करना
बैस
इकली जुग में एही चीज़ फैला हुआ है
सारा दुनिया में
तो उसको छोड़ना तरह मुश्किल है
बाकी
तपशा
छोड़ने में हमारा तकलीब होगा
पकि तपा का अर्थ होता है
जो भलंटरेली
थोड़ा तकलीब सहन कर लेगा
उसका नाम है तपशा
तपशा ये नहीं है
मैं जैवता के रहे गया
और टेबिल चैन में बैठ करके
सिग्दे फुकते फुकते तपशा हो जाएगा
तपशा के लिए
थोड़ा तकलीब उठाना है
तो
ये जो बालक लोग है
ये जो तपशा कर रहे है
कि
चाची छोड़ देना
ये क्या मरिया है
ये बच्पन से
वो बहुत
जब शिशु रहता है
उनका माता पिता उसको शिखाता है
पाउडर
वो
मीत पाउडर
उसको पानी में घोल करके
उसको जबरदस्ती चम्चा से खिलाएगा
शिखायेगा
ये देश है
तो बेचरी का दोश नहीं है
शुरू से शिखाये गया
मानसादी भक्षान
पिता माता सराप पिता है
बच्चा बैठे है, उसको सोडा
वाटर लेवनेट देता है
वो भी सिखे अभी सराप नहीं पीछागेगा
तो पिता माता सोडा वाटर पिये
बगी वो शिकता है
सॉफ्ट ड्रिंकिंग
उसको बलो जाता है सॉफ्ट ड्रिंकिंग
बाकि नहीं तप्षा नहीं करें। बाकि तप्षा करनी चाहिए। बिना तप्षा, काम सपल नहीं। पहले तो बड़े-बड़े रिशी लोग, मुनी लोग, राजा लोग, सब घर छोड़ करके, जंगल में जा करके, हजारों बार तप्षा करते तो वो तो कली जुग में सम्
जरूर करनी चाहिए, यही हमारा कृष्ण कांशासनेस मुव्मेंट सारा दुनिया में प्रचार कर रहे हैं, और वोई चीज भारत बच्च कता ही है, आप लोग भी ग्रहन कीजिए, यह आशुरिक जीवन जापन करने से कोई लाव नहीं है, इदम अद्धम या लद्धम इद
जाब होते होते एक दिन जम्रा जाएगा, जात मार के सब छीन छान ले करते हैं, जाओ कुट्टा बनो, यह होता है, तथा देहां तरप प्राप्ती, जैसा कर्म करेंगे ऐसे शरीर मिलेगा, वो प्रकिती, प्रकिते क्रियमानानी, गुनी कर्मानी सरवस्था, वो तो प्रक
बनो, कुट्टा का तुमको मनुष्य जिवन दिया गिया था, उसको तुम व्यवहार नहीं किया, कुट्टा का ऐसे काम किया है।
 
 
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