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तो ये education नहीं हुआ और वो अधेरे में रही गया है
तो वो इस प्रकार education का क्या लाव होता है
अगर वो नहीं जानता है के आगे जाके हमारा क्या द्याहांतर होगा
और द्याहांतर का अर्थ होता है जो 84 लाग जोनी है सर्व जोनी शुप
तो क्या द्याहांतर हमको होगा
उसका अगर नहीं जानता है तो फिर इसका education का क्या लाव होगा
अगर आज हमने बहुत भारी आदमी है
और द्याहांतर होके हम कुत्ता बन जाए
तो फिर आवाना यह भारी आदमी होने का क्या लाव होगा
और यह तो स्पष्ट बताते हैं, यह तथा देहांत्र भ्राप्ति, और यह कुछ बताते नहीं, यह तुम क्योंकि तुम मनुष्य है और जुन है, तुमको मनुष्य सरीरी मिले है, यह बात नहीं बताते हैं।
कुछ लोग तो मनते हैं कि मनुष्य आता आने के बाद...
यही तो मुश्किल हो गया, जो कुछ यह साधारान व्यक्ति बोर देता है, तो उसमें क्या रहा होगा।
ब्रह्म कुमारी का चलता है, वे लोग तुम्हारी तो एक एक आदमी हुआ, फिर कुछ होता है नहीं, वो आदमी हुआ।
तो वो बोर देना से हो गया।
ज्यगन्यगुण-वृत्तिष्व अधोगस्यन्दित्ंधThen...
वो कैसा हो जब आदमी हो गया तो, ऐसा वो हो गया हो. वो भगवान से बड़ा होगी है।
यह सब चलता है। यह सब धोकाबाजी, यह सब, चीचिंग, इसको तो सब बंख ने।
अन्राज अथान दूर कुणियो माना
एक स्टेंडर
जब
बगवान संग
प्रिस्किप्षन दे रहे हैं
किस तरह से रहो
किस तरह से काम करो
सुखी रहो रहे हैं
बगवान बताने है
सुरीद सरभूताना
सबके लिए है
मित्र है, सुरीद
वेल विशाएं
तो वेल विशाएं तो बात क्यों नहीं लिया जाते
बगवान तो ऐसे बोलने है
तो नहीं
श्रीद हिंदू नाम
भारतियाना
श्रीद सरभूताना
तो
जिस तरह से सब जीवात्मात्मा उपकार होई, सब जीवात्मा में तो मैं भी आता हूँ, उसमें हमारा भी उपकार हो जाएगा, तो उस बात को क्यों नहीं लिया जाएगा, और सब बात छोड़ देने से भी, जैसा आपने बता है,
यह तो immediately जो पहली सिख्षन नहीं है, भगवान, जब अज्जुन को भगवत दीता सिख्षन देने के शुरू किया, यही स्लोक को पहले बताया,
जो तुम यह ज्ञात्म बुद्धि से जो लड़ाई नहीं करोगे, यह तुम्हारे लिए उच्छित नहीं है,
असच्छाी ऐस्ँ उठस्तं प्रज्ञाव आधांत्य भाष्य से, बड़ा पणूलित का ऐसा तुम बातचित करते हो, है तो एक नंबर मूर्ख।
यहीं बताया, असच्छाननसु उतस्तं प्रज्ञावादान्सवास्य। मैंने तुम तो बात जैसे कर दो, तुम बहुत पंडित है।
यह एक नंबर बूर्ण। क्यों? असच्छाननसु, गतासुं अथक अगतासुं सुनानसं पंडित।
यह जो तुम शरीर का बेशा है, उन्हें अस्च्छना कर रहे हो, यह कोई पंडित का बात नहीं है।
तो मुर्ख है। पंडित का बात नहीं था, मुर्ख की बात है। तो तुम ऐसे बात करते हैं, तो मुर्ख।
ती ये जितने बाते धुनिया में हो रहे हैं
सामे सरी काहुंस है
हम इंडियान है
हम एमेरिकान है
हम हिंदु है
हम मुसल्मान है
हम फाकिस्थानी है
हम इंदेस्थानी है
साम सरी काहुंखे बात छोब है
तो नानु सो चंती पंडिका
तो इसकोई भी पंडि थाई नहीं, सब मुर्खा। देखिये, आप ठीक बोल रहे हैं।
और भी शास्त्र बोलते हैं, जस्षातु बुद्धि कुणपेति धातु के, यह जो शरीर है, कपुपित्त वायक्षण, एक थाईली।
इसमें जो आतु बुद्धि करते हैं, सहेव गोखर, जानवान हैं, तो हाँ यू केन बिकम हैपी इन दी सोसाइटी अब गोखर हैं।
बड़े बड़े कुट्टा को बुला ले आओ, और बेटा भोको नहीं,
बड़ा शांति से इधर रहो। उसला रहेगा शांति से। है तो कुट्टा।
तो इसी प्रकार यह जो हमारा यूनेस्को शांति का प्रोग्राम सब चला रहा है तीज वरस से।
हुआ यह तो जो भोगने वाला। वो क्या शांति करें। उसका सभाव में ही नहीं है।
और भगवान शांति का प्रोग्राम बना बता रहे हैं कि भोगतारं जबुतवशां सर्व लोख महस्रम।
स्विदं सर्वभूतानां ग्यात्यां आम। शांति विच्छते।
जो भोगता मैं हूँ। हम बातवी हुआ। भगवान भोगता होगा।
कौन चीज़ सब बनाया। यह मकार्ण। हमारे युवा भोगीलाज सेट बनाया। तो उसका भोगता होगा नाम होगा।
हम होगा, हम गेस्ठ हो सकते हैं, तो इसी प्रकार भगवान सब बनाये हैं, तो भुक्त भुक्ता भगवान ही होगा, हम लोग क्यों भुक्ता होने के जाते हैं, ईशावास्यमिदं सर्वं।
भगवान की संपत्ती है, और आम भगवान की संपत्ती लेके चोर बनता है, तीन है यो सवुच्छत, फिर चोर कभई शांति में रह सकता है, या चोर जहाँ है, जिसका बिज़नेस है चोड़ी करना, वो कभई शांति में रह सकता है.
तो आपसे हमारा इनिवजन है कमसे नाम गुजरार्ट में तो इस विशय में खुब अच्छी तरह से चर्चा और आलंचना होनी चाहिए
और इदर उदर का बात करके आदमी सब विभगामी हो गया
एक बाती अगर समझ लें कि तथा देहां तरफ प्राक्ति इसी को अगर एक समझ लें
इसीलिए आपको बोल है आप इस विशय में उदिन बोला तो उसका जीवन सुधार होगा
एक बात कर सो जादानी फिर आस्तर सो
आई भी बात ठीक देहां तरफ प्रात्यार वो पोमा भगवान खुद देना है
देहि नस्मिंग था देहे कोव मान जोरुवनं जरा तथा देहां तरफ प्राक्ति
सब कोई समझ सकता है अगर कोई जवान बोलता है बुढ़्धा नहीं होगी
तो बात नहीं है वह होनी पड़ेगा प्रकृत्य किणमानान गुनय कर्मानी सर्वस्थित
की प्रकृति स्थोपी पुरूषा वो पड़ी जर्मर को पूर्व प्रकृति स्थोपी आ कारण कुणशंगाश्य और छोष्ट प्रकृति स्था
चाहिए
मैं अपने
इतना बड़ा भारी ज्ञान भारत वर्ष का है और ले रहा है
इसमें भारत वर्ष का कितना उज्जोग होना चाहिए
कि सारा दुनिया मूर्ख है जानता ही नहीं कुछ
कोई देहात्म बुद्धि, नेशनलिजिम उसी का वर्ष चर रहा है
युत्थी का उपर
और ध्यान तर प्राक्ति है उसको नहीं जाहा
आज समझलो हम ये नेशन में है, ये कौंप में है
और ध्यान तर प्राक्ति तो होगा
फिर ते इस ज़िवल में जो कुछ किया वह सब भजूल हो गया
कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर �
कर दो कर दो कर दो कर दो कर
कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो करदों हमारे समय है कि
कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर
दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो कर दो करبة ओपात के अवसर
मत्रियों के साथ मुलक ने यद लाइक पूरा कर रहे है जैनेरी भी बात कर रहे हैं।
दौलन में नियचना सिचा हैं और नियचतना खत्म साथ हो जाने ज fullness ने कारण रहते हैं।
ऐसा बुंद नजब भी है, मत्रीयों ने लगी होते हैं।
यार इसो 3 मुद מिस्व से अपवास करें और हमे उम्पर्वाउतेर बार ट्रांसेंडेंटूं पुरिवार में हो गए।
वह कृष्ण का खज़िंदना कम्भ है।
बिकांद प्रार्थू है कि वे राष्ट्रेपण संखिर्मों को एक ब्राध काम दंगे हैं।
तालि वे जरूरा सचर करें कोई अवधाना से उपना अस्तवार बनाते हैं।
नहीं फिर उदीषट्व इस स्रान को पोछने कारण करने हैं।
इस चली जाता है कि विभी में आपकाश करते हैं, जिसलिए उपयोग्री से बताएं।
यह अच्छा बार यह है कि अर्जुना का कृष्ण के साथ गौत को पता लेते हैं।
और उसी उपयोग ही कम से चोड़ रहे,
उदि� çevस्थोस्त सत्र नहीं लाठती,
इस विदस्तन को वापनते हुए अधिक्ष नयम करती है
और बातवं में विटन भी कमेंगे।
वेदिक भरच करते बातों में, उनकी सामत्रिति पराध्यक।
तो अगर वह प्रश्चन प्रश्चन प्रश्चन प्रश्चन प्रश्चन प्रश्चन प्रश्चन प्रश्चन प्रश्चन प्रश्चन प्रश्चन प्रश्चन प्रश्चन प्रश्चन प्रश्चन प्रश्चन प्रश्चन प्रश्चन प्रश्चन प्रश्चन प्रश्चन प
वे ज्यादा Leist assemble रहे और तब हुआ था, यादा पराज़िबिन बास, कहा रहे और तयार फोर इस्ताव का राजरिक होने के लिए .
उर्धं अच्छनति शत्वृष्ट्वः चा, प्रश्च देवा रेखा आध्यगुण अच्छनति अध्यगुण अच्छनती
उर्धनगच्छंति शत्यक्षा मद्देतिष्ठंति राजि शाब। जगन्य गुणवित्ति अधरवच्छंति राजि.
How he can check, If he is जगन्य गुणवित्ति, तो he is going downward?
How his present position will check him? That is not possible.
So our little endeavor is that we have got such a vast knowledge, treasure, house of knowledge.
And instead of distributing this, if we remain in the darkness, then what is the benefit?
What is the benefit? शैतन महाबुर्व का एमिशन है। भारत भुमिते मनुष्य जन्म हिल जा जन्म सार्थ करी करो करो बुखारी।
क्योंकि सारा दुनिया है। डार्थनेस।
उर्ध्वन वच्छन देश प्रस्था मनुष्य जन्म सार्थ करी करो बुखारी।
मद्देदेश्ठन दिराजसा जगन्न गुणवत्तिस्था अलोवच्छन दिदामस्तान।
Those situated in the mode of goodness gradually go upward to the higher planets.
Those in the mode of passion live on earthly planets.
And those in the mode of ignorance go down to the hellish worlds.
In this world, the results of actions in the three modes of nature are more explicitly set forth.
There is an upper planetary system
consisting of the heavenly planets where everyone is highly elevated.
According to the degree of development of the mode of goodness,
the living entity can be transferred to various planets in this system.
The highest planet is Satya Loka or Dronaloka
where the prime person of this universe, Lord Brahma resides.
We have seen already that we can hardly calculate the wondrous condition of life in Dronaloka.
But the highest condition of life, the mode of goodness, can bring us to this.
The mode of passion is mixed.
It is in the middle,
between the modes of goodness and ignorance.
A person is not always pure.
But even if he should be purely in the mode of passion,
he will simply remain on this earth as a king or a rich man.
But because there are mixtures, one can also go down.
People on this earth in the mode of passion or ignorance
cannot forcibly approach the higher planets by machine.
In the mode of passion, there is also a chance of becoming mad in the next life.
The lowest quality, the mode of ignorance,
is described here as abominable.
The result of developing ignorance is very, very risky.
It is the lowest quality in material nature.
Beneath the human level, there are 8 million species of life,
birds, beasts, reptiles, trees, etc.
And according to the development of the mode of ignorance,
people are brought down to these abominable conditions.
The word tamasara is very significant here.
Tamasara indicates those who stay continually in the mode of ignorance
without rising to a higher mode.
Their future is very dark.
There is opportunity for man in the modes of ignorance and passion
to be elevated to the mode of goodness,
and that system is called Kṛṣṇa consciousness.
But one who does not take advantage of this opportunity
certainly will continue in the lower modes.
वागवति रिष्चे नस्ट प्रायेशु अभद्रेशु नित्तं भागवत सेवय
भगवति उत्तम श्लोक
भगवति उत्तम श्लोके
भगवति भगवति नस्थ की
ततो रजस्तमो भावा कामलो भाद रश्च जे
चेत एतई अनाविध्यम स्थितं सत्य प्रशीद जे
तो आदमी को सतुगुण में ले आना चाहिए
यह एजुगेशु है
वो तमगुण में रही है तो क्या एजुगेशु है
जगन्न गुनवित तिष्ट अधोव चेंदिवाव
देहांत प्रात्तित है और किस तरह से देहांत प्रात्ति हो नहीं है उसको शिखाना चाहिए
उस विजय में शिखा कहा जाता है वो एजुगेशन कहा है
हे
नहीं है, यह तो साइन्स है, रिलीजन अभी बहुत दूर में है, यह तो द्यानतर पर जैसा एक इंफेक्शन क्या कोई बीमारी है, समझ सकते हैं, स्मार्ट पॉक, तो तुम कोई स्मार्ट पॉक सोना ही है, यह साइन्स है,
कारण गुणशंग है, तो स्मार्ट पॉक डिजीज को इंफेक्ट है, अब तुमको स्मार्ट पॉक भोगने पड़ेगा, इसमें रिलीजन का बात क्या,
रिलीजन तो, वह जब आदमी होगा तभी उसको रिलीजन है, धर्मन तो शाक्षांत भगवत प्रनिल, जो भगवान से संपर्क होगा,
तभी रिलीजन है, नहीं तो रिलीजन क्या, मनमाफिक रिलीजन होता है। धर्मन तो शाक्षांत भगवत प्रनिल।
मन मां फिक लौ होता है, ने, लौ तो गौर्मेंट देता है, इसी प्रकार रिलीजन का अत्थ होता है, जो भगवान जो बता देते हैं, उसका नाम है रिलीजन, इसलिए भगवान बता है, सर्वधर्मान परित्तर्य मामे, इसी रिलीजन है, और वाटेबर यू आप मैनुफै
तो ये रिलीजन देता कौन, इसको भी बताया, ये भगवान बोले, सर्रेंडर करो, तो भगवान बोलता है, हमको सर्रेंडर करता नहीं, कौन, दुष्कृतिन, नराधमा, मूर्हा, माया, पुरितक्याना, आशुरी भावमा
तो फिर तो सब हो गया, खतम, नहीं, बहुनां जन्मनामन्ति ज्ञानवान मांग प्रबद्धति, अनेक जन्म ऐसा है, गुमते फिरते, जब बास्तवियो ज्ञानवान होता है, तब होती है, क्योंकि वो समझ देते हैं, बाशु दीव और सर्विनीति समाहत्मान, तो जन्
तो उनको शिखाना चाहिए, ये जन्मवानां से जन्मतों को मिला है, अग ये तुम ज्ञान लो, इस पर से भगवानों प्रबद्धति करो, इस तरह से, जिवन को सबन पाए, अने तो क्या है, हतवरी छोगले का ज्ञान ले की क्या है, हरी गृष्ण, जाया हूँ.
प्रबद्धति करो.
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥