श्रील प्रभुपाद के हिंदी में प्रवचन  »  740423LE-HYDERABAD_Hindi
 
 
 
हरि कथा
हैदराबाद, 23-अप्रैल-1974
 
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स्री कृष्ण चैतन्य प्रवुनित्तानंद्र स्री अद्देद्र गदाधार सिबाशादी घोल भक्तविन्द्र
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे
सज्जन बिंद माठाओं हिंदी में बोलने में ज्यादा अभ्यास नहीं है परन्तो थोड़ा बोलने का कोशिश कीजिए
कड़े हैं
परन्तो थोड़ा बोलने का कोशिश कीजिए
ये आपका मंदिर में उन्वान बया मंदिर में जब मैं आ रहा था
हमको बहुत आनन्द हुआ कि उन्वान जी का नाम है
उन्वान जी बज्जरांग जी हम लोग का गुरू है
बैश्णर संप्रदार
जदपी उन्वान जी मनुष्य समाज कभी नहीं थे
तथा भी क्योंकि भगवान रामचंद्र का एकाग्र सेवक
इसलिए बैश्णर परंपरा से उन्वान जी भी गुरू मानी जाती है
तो
उन्वान जी प्रशिद्ध क्यों हुआ
उन्वान जी प्रशिद्ध इसलिए हुआ
जो उनका पास शरीर का बल था
वो शरीर बल से भगवान रामचंद्र को सेवा था
तो भगवात सेवा
कृष्णकाँशासनेस
ये एक तरह से नहीं है
हर तरह से
भगवान भी आते हैं जब भगवान नाम चंद्र भी किया था और भगवान कृष्ण भी किया था और जो भगवान के अवतार निशिन्द्र पढ़ाव आदी दो काम परित्रानां शादुनां बिनाशाय चुद्रुष की तवार शाद शाद में चलता है
जैसे गोवर्मेंट है गोवर्मेंट दुष्टर को दमन करता है और शीष्टर को पालन करता है इसी प्रकार भगवान का भी यही नियम है
दुष्टर को दमन करना और शीष्टर को पालन करना परित्रानां शादुनां बिनाशाय चुदुष्टर की तवार
इसी प्रकार भगवान की सेवा करने के लिए
हुनवान जी का जरूरत है
और जुन का भी जरूरत है
कुछ दिन पहले
एक सज्जन
हम लोग को थोड़ा एटाक किया
जी ये जो अरे कृष्ण मुम्मेंट है
केवल बैट-बैट के कीर्तन करना
और आदमी को बेकार बना दे
बैश्णव होने से सब आदमी से बेकार हो जाए
तो मैं उसको एही जवाब दिया था
जि आप बैश्णव देखा नहीं
भारत बर्श में जो दो लड़ाई हुई है
राम रावन
राम रावन
और कुरुक्षेत्र
ये दोनों लड़ाई में
जो भीर है
हुनुमान जी
और अर्जोन
ये सब बेकार बैटने आला नहीं है
अगर रावन है
उसको धवन करने के लिए
सब बल उसका उपार प्रेवक किया जाए
तो बैश्णव भगवान के हुकुम से
जैसे भगवान चाहते है
बैश्णव के हरी किष्णा मंतर भी जब सकते है
और जरुरत होने से
रावन का ऐसे जो
दुद्धानत राखस है
उसका साथ लड़ाई भी कर सकते है
ये बैश्णव का विचार
सर्वप व्यापक
खली एक मुखी नहीं
हर तरह से
तो ये जो आपको व्यामशाला है
इसमें
शरीर का बल
किस तरह से प्रयोग होता है
जैसा आप लोग शिखाते हैं
साथ साथ ये भी शिखाईए
यो बल किस तरह से
प्रयोग करना चाहिए
बहुवान की सेवा
तब शार्थक होगा
ये अमारा शास्त्र का नियम है, भागबत में बताते हैं, अतपुंभी दिज़ा स्रेष्ठ बर्णास्रम विभागस्रम, बर्णारास्रम, ये विभाजन जरूर होना चाहिए, मनुष्य समाज में, ये ने ब्राह्मान, छत्री, बैश्य, सुबुद्ध्य, सबका जरूरत है,
मस्तक, इसको भी जरूरत है, हाथ का भी जरूरत है, पायर का भी जरूरत है, पेट का भी जरूरत है,
खाली, पेट ही पेट रहे गया, केबल मस्तक ही मस्तक रहे गया, तो काम नहीं चाहिए, सब चीज़ का जरूरत है,
समाज को ठीक ठीक दुरस्त रखने के लिए चार चीज़ का ज़रूरत है
इसलिए भगमान खुद बता रहे हैं चातुर्बन्नंग मया सृष्टम गुनकर्म विभाग असु
तो ये जो बयामसाला है ये बयामसाला छत्रिलोग के लिए
तो जैसा एक श्रेनी को ब्राम्मन बनाना चाहिए इसी प्रकार और एक श्रेनी को छत्रिलोग बनाना चाहिए
ये शास्त्र का नियम है और भगमान की भी इच्छा है
तो आप लोग ये जो छात्र धर्म बयामसाला शरीव को पुष्ट करना
जुरुरत होने से दुश्मन से लड़ाई करना छत्रि का काव है
जुद्धेच अप्पलायनम छत्री जो है वो लड़ाई का सामने हो जाते है भग नहीं जाते है
उसका नाम छत्री शरीर में बल है तेज है ओजस है तभी तो यह हो सकता है
यह भी शिखाना चाहिए जुरुरत है परन्तु चाहे ब्राह्मान होए चाहे छत्री होए चाहे बश्य होए चाहे शुद्र होए
इसमें कोई दोश नहीं आए सबको भगवान की सेवा में लगाना चाहिए तभी परप्रक्षा
अतप्पुंग भी दिजश्रेष्ठ यह भागवात की बचन है शुद्र के शुद्र गुश्या में बड़े-बड़े ब्राह्मन परन्नित का सभावे
नई मिशारन्य एक बहुत भारी सभावे थे एक हजार बरस तक चला था तो वो सभावे शुद्र गुश्या में यह सिद्धान्त दिया
कि ए ब्राह्मन दिजश्रेष्ठ आप लोग सब बड़े-बड़े ब्राह्मन इधर बैठ हुए हैं कि शास्त्र का जो सिद्धान्त है यही है क्या अतपुंग भी दिजश्रेष्ठ बरनास्रम विभाग शुद्र
समाज में मनुष्य समाज में बरनास्रम जरूर होना चाहिए.
नहीं तु वह एनिमेल सोसाइटी है, वह पोशु का समाज हैं.
तो पोशु का समाज में कभी आदमी शुखी नहीं हो सकता.
मनुष्य का समाज होना चाहिए.
तो मनुषे का समाज में यह चार चीज जरूर होना चाहिए
चार नहीं आठ
बर्न और आश्चम
चार बर्न और चार आश्चम
ब्रामन, छत्री, वैश्व, सुद्र
यह चार बर्न
और ब्रह्मचारी, ग्रिहस्त, बानप्रस्त, सन्याश
ब्रात साइंटिफिक है
इसको अगर हम लोग छोड़ देते हैं
फिर यह पशु समाज हो जाता है
बर्न आश्चम धर्म पालन नहीं करने से
कोई बात में आगे नहीं बर ज़केगा
इसलिए सब शास्त्र में
बर्न आश्चम का विचार
बहुत जरूरत है
उसमें
बहुत उसमें
जरूरी है ये सब बताया है
कि
बर्न आश्चम विभाग
इदर भी बतात
अतपंभी धिज़ स्रेष्ट
बर्न आश्चम विभागश
विभागश
विभागश का उर्थ होता है विभाजन
चार बन्न चार आश्च
और एक जग�र विश्णु पुराण में
यही बर्न आश्चम का विचार
बताया है
भागवत में भी बजाया है
तो बर्न आश्चम बहुत ही आबस्टर होता है
तो
बर्न आश्चम विभागश है
अपना अपना
काम करो
ग्रामन का काम करो
छत्रि का काम करो, वैश्व का काम करो, सुध्र का काम करो, बर्मचारी, ग्रियस्त, भानफ्रिस्त, बाकि उद्देश क्या है, अतप्मुं विदिजस्तिश्य, बर्णास्रम, विभागस्य, सानुष्ठितस्य, धर्मस्य,
अपना अपना जो prescribed duty है, कर्तव्य है, उसको साधन करो, किस लिए है, सानु स्थितस्य धर्मस्य संशिद्धी, संशिद्धी, that perfection, सिद्धि लाब करने के लिए, सब चीज़ का एक संशिद्धी होती है,
वो संशिद्धी नहीं होता, केवल परिश्रम होता, सिद्धि होनी चाहिए, कोई भी काम कर जाती है, बिजनेस आप कर रहे हैं, उसमें प्राफिट होनी चाहिए, प्राफिट नहीं है, केवल गदा कैसे, परिश्रम करने से क्या फल हो, तो इसी प्रकार, यह जो बर्नास्यम �
तो वो व्यायाम कीजिए, नियम से कीजिए, सरीर को बलबान बनाए, यह भी जरूरत है,
बाकि वो बल जो है, प्रयोग कीजिए, भगबान की संतूष लिए, और कुछ बात में,
हमारा सर्विर में बहुत बल है, एक गुंडा बन गया, दुश्य को सतया, परेशान के, यह बात है,
जो कुछ कीजिए, उसको संशिद्धी, सिद्धी लाव करने के लिए चाहिए, हरी तोषन, भगबान के लिए, हरी तोषन, भगबान को संतूष करने चाहिए,
ती कृष्ण कॉन्शस्नेस मुवम्बेंट जो है, यह बहुमुकी है, सब चीज़ से भगबान की सेबा की जा सकती है,
प्रानई रथई धिया बाचा, स्रे आचननन सदा, यह उद्देश है, प्रान से होए, धन से होए, बुद्धी से होए, बचन से होए,
हर तरह से भगबान की सेवा है, तो हम चाहते हैं, जो हम लोग भी यह बर्नास्रम स्कूल खोलने को चाहता है, येरोप में है,
यह चार बर्नास्रम, जैसा engineering के स्कूल होता है, college होता है, medical के स्कूल होता है, college होता है,
और our branch, department of knowledge,
इसी प्रकार, ब्राह्म्भन का भी school, college होना चाहिए, किस तरह से ब्राह्म्भन होता है,
इसी प्रकार, ख़त्रिय का भी होना चाहिए, किस तरह से ख़त्रिय होता है, इसी प्रकार, वैश्य का भी होना चाहिए,
इस जास जन्म से नहीं होता, quality, गुन से होता है, गुनों का अन्मप विभाग होता है, गुन होना चाहिए और काम ही होना चाहिए,
जैसे है डाक्टर सामा, डाक्टर ही पास कर लिया है, और डाक्टर का काम नहीं किया, वो पान वाला का काम किया, और कुछ काम किया, तो उसको डाक्टर थोड़ा ही कोई कहेगा, नहीं, डाक्टर का गुन भी होना चाहिए,
और जागता के काम भी होना चाहिए
इसी परकार
जैसे खत्रियों को
शरीर को
बल शाधन करता है
वो गुन है
और गुन का बात
खत्रियों का काम भी होने चाहिए
तब वो संपूर्ण होता है
और वो काम
जदी भगवान की शेवा में लग गया
तब वो संशिद्धी, संशिद्धी हरितोवुसं, सेशे कर्मनी निजुक्त, संशिद्धी लबते नरा,
तो संशिद्धी लाब करने के लिए बर्णाश्वम विभाग विवाजन का उनुसार, जिस तरह से प्रवित्ति होए, उसमें एक्सपार्टमन करके,
बड़ा, कहने, सब काम करने में दक्ख होने, दक्ख होकर करके, और वो काम भगवान की सिमा में लगाया जाये,
तो उसका नाम है संशिद्धी, क्यूंकि मनुस्र जीवन जो है, इस सिद्धी लाब करने के लिए है,
और जो पशु जीवन है, खाओ पियो, बच्चा पाइदाब करो, और मर जाओ, वो पशु जीवन है,
और मनुष्य जीवन जो है वो सिद्धी लाव करने के लिए
क्या सिद्धी है सिद्धी संसिद्धी लवते नरातम अभर्चा जेन असर्वमिदं ततम
वो जो भगवान है उनको संतोष करके संसिद्धी लाव करना है
हमारा ही उन्रोज है आप लोग बयाम सालक हो जो था शरीर को बल शादन कीजिए
सास साथ में भगवत की तन भी कीजिए उसमें आपको कोई लुक्षान नहीं हो
उसमें आपको भगवान का संपर्क बना रहा है और भगवान का संपर्क बना रहा ने से ही
सब काम की सिद्धी होती है
तो
मैं चाहता हूँ ये लड़कन लोगो
जैसे आप लोग
शरीर पुष्टी के लिए
शादन शिकाते हैं
साथ साथ में
उसको हरे कृष्ण
मंत्रव उचारम कराईगी
मार्च कीजिए
तो उसमें भी
हरे कृष्ण नान जपकी
हरे कृष्ण हरे कृष्ण
लेफ्ट राइज
वो भी चाहिए
हरे कृष्ण ना सोच
चेत दापनो चित्त सबस्माए
वो
शाब रहेगा
उसमें ये जो
भोति गंद चीज है
उत नहीं आएगा
तो सब काम किशिद्धी उसी में हो गया है
तो हमारा इन रिक्वेस्ट है
कि आप लोग
शरीर शादम कर साथ साथ
ये हरे कृष्ण महामंतर
नाम को जपा कीजिए
Thank you very much
हरे कृष्ण
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
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