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ती भगवान का इधर आकारती
हमारा भक्त
बगवान कहते हैं हमारे बच्ट बनि जाओ
और दूसरे का नहीं
यह चमảiणा चाहिए
अगर कोई बोलता है
जो हम आवर आवर किसी भक्त है तो इसमें काम नहीं चलेगा नहीं
भगवान कहते मन मना भवो मद भक्त हमारा भक्त
ऐसे तो सब कोई किसी न किसी का चीज का भक्तों होता है
कोई अपना घर किरेशत का भक्तों होता है
कोई देश का भक्तों होता है
कोई समाज का भक्त होता है
कोई सराब का भक्त होता है
ऐसे भक्त होता है
किसना किसना किसी का चीज का भक्त होगा
होने बिना भक्त हुए जी नहीं सकता हूँ
क्योंकि उनका असल काम है भक्त होना
बागी भगवान को भूल करके
और सब जितने चीज है
तो माया
माया
दुगते हैं, तो माया उनको सुला रहता है, अच्छी भगवान तो क्यों भक्त हो गए, हमारा भक्त हो जाओ, और सद्देवता का भक्त हो जाओ, कांखंतं कर्मनां शिद्धी जजंति यह देवता, और हम लोग सब फ़स जाते हैं, कर्मनां शिद्धी, और दूसरे-दूसर
बहुत जल्दी शिद्धी हो जाते हैं, वो क्या चीज़ का शिद्धी होती है, भोतिक भोति, जैसे शास्मे बताया गया है, कि अगर तुम ये चीज़ चाते हो, तो इस देवता को वजन पाए, तुमको नहीं जाते, आज शास्मे विदी है, और मिल भी जाता है, तो कांख
यह भोतिक जगत का देवता है, भगवान जो है, वो भोतिक जगत का नहीं, जैसे संक्राचार जो बताया, नारायान परःथ, अब्बक्तियात, अब्बक्तियात अन्नसंबह्मव, नारायान जो है, अब्बक्त, जो महत्तत्व है, उनसे परे है, तो ये सब जानते हैं, मोह
उसी मोहित हो के वो रहने चाहता.
आगे बढ़ने को नहीं चाहता.
क्या भी भग्मान का काम है भग्मान बताते है !
घयदधा यह धन्मस्त्राग्लाणि भवति.
जब आजमी धन्म को छोड़ देता है धन्म का अर्थमता वो भगुज़भक्त है !
भगवान आपने में यही बताया, सर्वधर्मान परित्तज्य मामेकं सर्वधर्मान, ओई धर्म है, यह जो भगवान बताया, मामेव जप्रपद्धम, यही आसर धर्म है, और सर तात्कालिक, बोतिक धर्म है,
अब जैसे समझ दीजिए, अब यह शरीर है, जब तक यह शरीर है, हम लोग कहते हैं, हम हिंदू है, हम मुसल्मान है, हम क्रिस्ट्रन है, मैं यह धर्म को पाता हूँ,
और जहां शरीर छोड़ दिया हमने, तो भी हम समझ जाओगा कुछ हो गया, ऐसी कुछ गैरेंटी नहीं है, जो हमको मनुष्य शरीरी मिलेगा, अपना कर्म का अनुसार, हमको शरीर मिलेगा,
तो आज मैं हिंदू है, मुसल्मान है, क्रिस्ट्रन है, कर्ल अगर कर्म का अनुसार, हमको और कहीं जन्म मिल दिया, पोशु का जन्म हो गया, तो फिर आमारा तो सब धर्म हो गया, ख़तम, शरीर का सास्तार सब ख़तम है,
इसलिए आशर जो धर्म है, भगवान का चरण में प्रपद्धि, जो ऐसा भगवान बताते हैं, मामेव जब प्रपद्धन दे, उनको वो भक्ति कभी नस्क नहीं होती है,
इस जन्म में भक्ति का विषय में जितना साधन किया, की पूरा साधन कर लिया, तफिर तो हमको भगवान का पास चले जाना है,
कप्ता दिहंग पुनर जन्म नहीं थी, मामे थी, भगवान के पास चल जाते हैं, अगर पूरा सादम नहीं हुआ, कुछ बाकी रह जाते हैं, तो सुतिनां शिवतां के ही जोग भ्रस्त संजायता है, जो भक्ति जोग को से भ्रस्त हो जाता है, उसमें उसका कोई लुक्षान �
संपूर्ण नहीं कर सका, किसी कारण से, फिर माया का हाथ में गिर या, ऐसा हो सकता है, क्योंकि माया बहुत जबर्दस है,
सब समय हमको पढ़ा जाय कर देता है, तो हमको भी जबर्दस होने चाहिए, वो जबर्दस किस तरह से होंगे,
जदी हम लोग भगवान को चरण अच्छी तर से पकर के बाइट के रहेंगे, फिर माया कुछ नहीं कर सके। यही उपाया है।
तो इस प्रतार सरल जब उपाया है, मुक्त होने का, जो भगवान, मामी वो जब माया से उत्तिन होने के लिए बड़े-बड़े ज्ञानी लोग चन्यास लेते हैं, गर्दो छोड़ देते हैं, बड़ा कठीन तपर्शा करते हैं, कोई हिमाले में जाते हैं, कोई जंगल में ज
और इधर भगवान बताते हैं, केवल हमारा चरण में कोई सरनागत हो जाये, तो उसी वक़त वो माया से उत्तिन होगी, उसी वक़त, देर नहीं लगती, एक सेकेड़,
बहुत सा आदमी हमको पूछता है, जो ये भगवत वक्ति लाब करने के लिए कितना दिन लगे, उन्हें एक सेकेड़ भी नहीं लगे, क्यों, असल काम तो है प्रपत्य, जदी कोई भगवान का सामने आता के, कहे दे, जो भगवान, इतना दिन तो मैं माया का दाश, दाश
मने, अपना इंद्रिय का दाश, कामादिनां, कतिधान, पालिता, दुर्णिदिष्ट, इंद्रिय जो है हमारा, अनेक विशाय, जो काम नहीं करना चाहिए, इंद्रिय बहुता अजि करो, इसलिए मैं तो इतना दिन इंद्रिय का दाश सा, कामादिनां, काम, ख्रोज, लो�
वो दाश हो करके हमको कुछ सुख नहीं मिला, अन्ना तो जिसका दाशत्त किया, वो भी सुखी नहीं हुआ, देखिए दुनिया का यही है, नियामा, आप लोग विचार करके देखिए, देखिए गांधी जी, कितना बड़ा महात्मा गांधी जी, कितना देश की सेवा किया, �
अब देखिए गांधी जी का ऐसे व्यक्ति, उनसे बढ़ करके कौन सेवा करसे, तो आम लोग का बात तो चोरी दी हो, इस दुनिया का जितना ही सेवा कीजिए, वो कभी सुखी नहीं होगे, कभी नहीं बोलेगा, देखो जी तुम बहुत काम किया, बहुत सेवा किया, अब
सुखी करने के लिए प्रजत्म किया, अब जो कौच हो गया, हम जायेंगे थोड़ा बिन्नामन में गई रहेंगे, सब बिज़े जाएंगे,
हरे, विद्धामान आप कैसे जाएगिये, ये काम बाकी जाएगिये, ये काम बाकी जाएगिये, ये काम बाकी जाएगिये, तो बाकी जाएगिये. इसलिए प्रपत्त जवात, जदी कोई ये बात तो समझ जाए,
तो हम तो काम प्रोध के लिए दुनिया के सब के सेवा की
परन्तो कोई सुखी नहीं हो
ना तो वो लोग सुखी हो ना तो माई सुखी
इस दिए भगवान आपका पास आए है आज से आपका दास मिल जाओ
मैं तो आपको दास है बुल गया हूं
बस इतना ही काम अगर हो गया तो मुख्य होगी, उसी बाद मुख्य होगी, अगर वो अपना दिल से, सच्चाई से बोलता है जो भगवार आज से मैं आपका दास होगी, आपको दास मैं है ही है, चिरंतन, बगि भूल करके दूसरे का दास हो गया, इसका नाम है मामी वजप्र
तेरी मॉमेंट, किसी समय में, जदि हम लोग एक दमे भगवार का चरण में अपना सीर जुका करके इतना ही कहे दे, कि भगवार इतना दिन तो दूसरे को खोब दास बनके रहा, उसके न जिसका दास बना था वो भी सुकी हुआ, और मैं जो दास हुआ था मैं भी नहीं सु
तो आपको दासत करेंगे, आप हमको ग्रहन दीजिए, वैसे इतना बोलने से वो मुक्त होगा, बहुत सरल है, अब प्रश्न होता है, जि इतना सरल चीज़ जब है, मुक्त होने के लिए, तो इसको आदमी क्यों नहीं लेता, जदि इतना ही सरल है, जो भगवार का चरण में
हमको जो खुशी हमसे करा लिया, तो फिर इसमें क्या मुश्किल, भगवार का दास होने से उसको क्या संबान का कुछ कमी होती आए, नहीं, देखिए हम लोग भगवार का दासत कर रहे हैं, सब दुनिया में गुम रहे हैं, यही शिखा रहे हैं, जि देखो जी आप भगव
हैं, आ ऐसी बात नहीं है, जो कोई मैधिक दिखाता है, कोई सोना बना देता है, कोई और कुछ कर देता है, नहीं, यह जब हम लोग का पास कुछ है, हम लोग खाली इतना ही करते हैं, देखो वो भगवार, कृष्णस्तु भगवान समाध, भगवान बताया हैं, जे शर्व
इतना ही हम लोग कहते हैं। यह जो भगवान का हम लोग दासत कर रहे हैं, क्या हम लोग का संबान कुछ कम हैं क्या?
कहीं भी जाते हैं, सब आप लोग संबान करते हैं, तो भगवान का दास होने से दुनिया का संबान कुछ कम नहीं होता है।
दुनिया का साम्मान बढ़ जाता है कवर, इदश जैसा हम लोग समझते हैं कि किसी का दास हो जाया तो वो तो मालिक हो गया और हम तो दास हो गया तो हमारा साम्मान तो कम हो जायेगा, नहीं, भगवान तो दास हो जायेगा आपको साम्मान कोब बढ़ जायेगा, और बढ़े
वो होने क्यों नहीं जाए। होने क्यों नहीं। कीछलिये कहते हैं, जो भगबान का दाश्यिता नहीं होता।
भगबान खुद ही बता आओ, नमां दृष्कित, नमूहाँ प्रपद्ध्न। नराध्माँ।
देखिए बड़ा उत्तम पदवी कौन भगवान का दाश होने को नहीं चाता उसको साफ वज्ञाय बताया बोलता है एक तो दुष्कृति नहीं नमान दुष्कृति नहीं
दुष्कृति का अर्थ होता है
सब समय केवल पाप ताम समता
उसका नाम है दुष्कृति
कृति कटी का अर्थ होता है
बड़ा मदजवार
बड़ा बुद्धिमार
बाकि साब बुद्धी
किस तरह से पाप करना है
उसी मिला दबां
तो ये जो व्यक्ति है ना मांग दुष्कितना प्रपद्धनते भगवान तो बोल दे जो हमारा चलन में प्रपद्धनते करो उसी भगत मुक्त हो जाओ माया तुमको छोड़ देगा बाकि ये नहीं करें क्यों उसका कारण है जो सब समय पाप पाउंचा दुष्कितना और क�
लम्मा चावड़ा किया है उतना व्यक्षान आप लोग का सुनने का समय भी है नहीं और हमारे भी समय नहीं है बाकि जहां तक है सललता से आप लोग समझ दीजिए जो दुष्कितना का अर्थ होता है जो सब समय पाप काम में लिप्त बैठ और एक मूरा होता है मूरा का अर
जधा कि बुद्धी कम होती वो दिनमार परिश्रम करता है धोबी का कपड़ा अपना पीक में लाग देता है चल चल भी नहीं सकता इतना कपड़ा लेता है बाकि उनको मिलता किया नहां एक मुठी घास तो गधा की इतनी बुद्धी आइने जो घास तो कहीं जाया मिल जाय
इतना परिश्रम क्यों करता है? यह बुद्धियों की आई है। वो समझता है भोधी धोबी आमको खाने को देता है। एक मुट्टी घार, यह आमको धोबी देता है। अतये जितना दो टन कप्रा हमारा ओपर जो लाज देता है, यह आमको बहन करना चाहिए। इसका नाम है ग
बाकि दूसरे के लिए, वो जैसा धोबी। वो खाता है दो रोटी, बस। ऐसी बात नहीं है कि दो लाख रुपयाज हमने कमाया है, तो हम आज सोना का रोटी बना की खायें।
आज क्यों आमको रिश्चम करते हैं। आज थोड़ा बहुत ग्रहस्ती के लिए आमको जो कुछ मिल जाता है उसी में संतोष है करते, बाकी समय भगवान की चार्चा क्यों नहीं है। यही बुद्धी नहीं उनको लेता है। उनको समय है। यह देखिए समय रहे है, इदर ह
की कथा सुनने के लिए समय है। इसको शास्त्र में कहा है मुड़ा। जो असर्व चीज है, मनुष्य जीवन का जो काम है, जो अपने को समझना, वगवान को समझना, वगवान से हमारा संपर्क क्या है, यह सब चीज समझना, अथात ब्रह्म जिज्ञासा, यह मनुष्य जी
को मिलता है, बैठ दो रोजी। मुढ़ा। नमान् प्रबद्धंते दुष्कित््य ना मुढ़ा। और कौन है, नमान् दुष्कित्य ना मुढ़ा, प्रपद्धंते नराधमां और नराधम, नराधम का कार्थ होता है, नर कार्थ होता है मनुष्य, वह सबसे नीच, जो है
कि मनुष्य जीवन है, भगबद-भजन करने के लिए है, ताकि उसको हम छोड़ दिया,
और साब काम में बदा, और साब काम में खो हुस्ता है। और भगबद भक्ति करने के
लिए, भगबान को समझने के लिए हमारा काइम हो है। इसलिए
नाराधम जो मनिश्य सरीद उसको मिला है उसको आगे कहा जाता है कृपण
ये तद विदित्याजप्रयातीशा ब्राह्मन ये तद अविदित्याजप्रयातीशा कृपण
जो मनिश्य सरीद जो हमको मिला इसको उपजोग उपजोग तो भाव से इसको प्याव दरका
इसमें जो फल लाब होता है, अर्थलाब होता है, भगवान को प्राप्त हो सकता है, उसको होना चाहिए, बैकि उन्हें
करता है, इसलिए कहते है नराधम. और एक क्लास है, उसको पता जिया है, माया अपडितः ज्ञाना, कोई कह सकते हैं,
देखिये आप सब ये कहते हैं अम्तो बड़े बड़े सब विद्वान को देखते हैं
कि वो भगवान को नहीं मानता अपने कोई भगवान मानता है
तो ये क्या बात है वो तो बड़े विद्वान है
तो भगवान उसको बताते है जो विद्वान तो है
बाकि उसको ज्ञान जो असल जो ज्ञान विज्ञा लाब करते जो ज्ञान होता है वो माया छिल गिया
माया अपरित जैसे आपको पास कोई valuable कोई किमती चीज है हीरा है
आप समझेवे बढ़ते हैं कि हमारा घर में हीरा है और उसको ताला लगा कि हम आये हैं
निश्चित है हम, निश्चिन्त है
बाकि घर में आगर जाते हैं देखते हैं जो हीरा कोई चोरी करके ले गिया है
इसी प्रकार ये तथाकती जो विद्वान सब होते हैं
बाकि भगवान को नहीं समझता है उसको विद्वान नहीं कहा जाता है
विद्या का अर्थवता आखिर में जाता के जो भगवान को संजाया, वो विद्वान है।
बहुनाम जन्मनाम अंते ज्ञानवान मांद प्रपद्धते।
यह जो प्रपत्ति, यह कौन कर सकता है?
अनेक जन्म को तपस्चा करते हैं, जब पूर्ण ज्ञान उसको लाब होता है, तभी भगवान में प्रपत्ति कर सकता है।
वासु देव सबमेति समात्मा सुदुल्लम।
तो यह जो तधाकतित ज्ञान है, MAP, HD सब होते हैं, बगे भगवान को नहीं समझते।
भगवान को उड़ा दे निकली है।
बड़े-बड़े सब विद्वान, भगवात गीता का ओपर टिप्पनी लिखते हैं, उसका विचार है जो कृष्ण को उड़ा दे।
बस हम कृष्ण है, हम भगवान है।
इसलिए कहते है अपरितः ज्ञाना, माया, उसका जो ज्ञान है, वो छिन लिया, ये सब दक्तियों हैं।
तो ये सब क्यों होता है जो महापाप करते हैं,
और मुढ़ा होते हैं, नराधम होते हैं,
और माया के दारा ज्ञान जाये, उसको चिन लिया जाता है, ये सब क्यों होता है,
तो भगवान उसको भी ज़वाब देते हैं, आशुरी भाव मास्तिता,
क्योंकि वो आशुरी भाव को उक्रहन क्या है? आशुरी भाव क्या है? जो एतिजी । भगवान को नहीं माना। भगवान क्या है? सब हम
लोग भगवान हैं । यह रस्ता रस्ता है ऐसे भगवान घुम रहा है । कहां वो मन्दीर में जाते हो भगवान को
नूर नहीं, ये सब बोलते हैं, बड़े-बड़े सामी सब बोलते हैं, आसुरी, ये इसका नाम है आसुरी भाव, दो भाव है, आसुरी भाव और देवों भाव, आसुरी देवों एवत, तो जो भगवान का भक्त
होते हैं वो देवता है देव भार अजसे भगवान का भक्त नहीं है तो भगवान को नहीं मानते वो
आसूर ही तो दूही प्रकारका आदमे होता है दिनिया में देव आसूर एवचु बिश्नू भक्त भवेद देव
आशुरी तद्विपर्य, जो भगवान को भक्त नहीं होते हैं, उसको अशुर का आज है, तो ये अशुर भाव होने से, वो पापतामनी करते हैं, दिन बर भिथा परिश्चम करते हैं,
मनुष्य जीवन का क्या काम है, वो नहीं जानते हैं, और तथा करते हैं जो ज्ञान उनको मिला है, ABCD, वो साब उसका फल जो है, वो माया छिल लेती है, बस, उसको इनिवर्सिट ने M.A.B.A. पास करने से कुछ फल नहीं है,
क्योंकि आसल जो उनको बुद्धी, वो माया छिल लेती है, आश्री भावमा, तो फिर क्या उपार, कोई बगब, ऐसी बेक्षी तो हम लोग देखना है, दिनिया में बड़ी हुए है, फिर भगवत भजन करेगा कौन, नहीं, उसको भी जवाब भगवन देता है,
क्या बोलते हैं, चतु विदा भजन तेम, जना शुक्रिति नावजन, आर्थ जिज्ञासु अर्थार्थी ग्यानी चभरतर सवाव,
कहते हैं, चार प्रकार के जो बेक्षी है, जो पाप नहीं करते, पुर्ण करते, शुक्रिति हैं, तो वो दुश्कृति हुआ,
शुक्रिति, अच्छा काम करते हैं, इसलिए सास्त्र में सब को उपदेश देता है, जो अच्छा काम करो, फुन्न काम करो, जग करो, दान करो,
तपश्या करो, गंगा स्नान करो, तीफ जात्रा जाओ, जूटना बलो, अंशा निदर अदर खाओ नहीं, सात्ति भोजन करो, ये सब सास्त्र, इसका मानना है शुक्रिति, जो बुड़ा काम नहीं करते, जैसे जैसे सास्त्र में बताते हैं, उसी प्रकार जो चलते फिरते ह
का विशाह हमारा समझ में आया है, और जदि हम लोग सास्त्र का विधी जो है इसको नहीं मानते है, मन माफिक करेंगे, जो खुशी खाएंगे, जो खुशी करेंगे, त्रिराये जाए के भगवान का संपर्क नहीं बनेगा, और भगवान का संपर्क नहीं बनने से वो ही च�
कभी राखर, कभी ब्रह्मा, और कभी मल्का की, ये साथ जन्म, मित्तु, जराव्याधी, इसमें फज दियाने पड़े. इसलिए सास ने बताया है पुन्ण कार्ज करो, अच्छा काम करो, अच्छा काम करने से चित्त शुद्धी, और चित्त शुद्धी हने से फिर भगवान क
तो करिजुर में मनुष्य इतना पतित है कि ये सास्न का विधि हमुशार जो अच्छी काम है वो नहीं कर सकते हैं
मंद्यास मंद मत रहे, उनकी बुद्धी सब मंद हो गया, और मद भी मंद हो गया, मंद्यास मंद मत रहे
मंद भाग्या, और भाग्यू भी खराब है, कोई अगर चाहता भी है कि हम भगवान का भजन करें तो कहीं फज जाता है
कोई राखभर्ष बोल देता है जो हम भगबान है, उसमें फज जाता है, मंद भाग्या, तो ये कलिजुर का ये सब असुविदाय है
इसलिए कली जुग में शास्त्र विधान दिया है जो इस देवता मनुष्य अत्तंत प्रतीत है
ये सब साधन भजन कुर्ण नहीं कह सकेंगे इसको एक ही चीज दिया जाए
क्या चीज हरे नाम हरे नाम हरे नाम यो कीवलं कलो ना सीव ना सीव ना सीव गतिरन्य था
कली जुग में वो जो जगदान तपक्रिया ये सब हो नहीं सकेगा
वो सब आदमी सब बिगड़े है इसलिए तीन दव्रे कालो कलो ना सीव ना सीव ना सीव गतिरन्य था
और जो सब गतिविधी सब है शास्त्र में जगकरो दान करो तपस्य करो ये सब हो नहीं सकेगा
आदमी इतना पतिथ होगे, फिर क्या क्या जाए, हरे नाम हरे नाम हरे नाम एवं केवलं, केवल सर समायन, हरे कृष्ण हरे कृष्ण पृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे नाम हरे नाम लाम लाम है,
इसको जब देखिए इसका फल हो रहा है, यह जो पास चात्र देशी है, सबरक्य है, हमारे साथ है, देखिए एक हरी नाम करने के लिए, और जैसे जैसे हम बताते हैं, उसको सिर्फ पालन करते हैं, देखिए कैसा यू लोग आगे बढ़ते हैं, यह कले युग्गा, एक मात्र
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥