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भगवान कैसे है, भगवान का रूप कैसे, गून कैसे है, लीला,
गून, रूप, लीला, पुरिकर, वैशिष्ट, पाँच चेल भगवान, पहले रूप, नाम, नाम रूप, तो भगवान को समझने के लिए शास्त्र में यही विधी बताया है कि भगवान का नाम लीजिए,
नाम चिंता मनि कृष्ण, चेटन्य रशविग्रह, भगवान का नाम, चेतन बस्त, नाम चेटन्य, रशविग्रह,
मित्त, मुक्त, सुध्ध, अभिन्नत्यार नाम नामे,
भगवान का नाम, जैसे भगवान चेतन बस्त, सत्यदानन्द विग्रह,
इसी प्रकार भगवान नाम भी चेतन बस्त, सत्यदानन्द विग्रह,
that is the difference, यही भगवान और हमलोग से इतना ही फरग,
भौतिक नाम,
नाम जो है, जैसा आपको प्याश, आप, आप थर्ष्टी, प्याशी है, आपको जल चाहिए, तो जदी जल, जल, जल, जल करेंगे, तो आपको प्याश नहीं गुते, क्यों, ये जो नाम है भौतिक, और जल जो बस्तु है, वो अलग है, डुएलिटी,
इस, the material world is called dual, क्योंकि एक चीज़, एक चीज़ से आओर एक चीज़, फरव, इधर नाम और नामी एक चीज़ नहीं है,
परन्तो जो परव्यों है, अध्याति जगव, spiritual world,
उधर में नाम नामी से फरख नहीं है, इसको ही समझ देते हैं,
चिंतामन, all spiritual,
पूर्ण, सुध्ध, जैसे भगवान पूर्ण है,
पूर्ण, सुध्ध, सुध्ध, सुध्ध,
पुर्णा में वाबृशिष्यते, इसी प्रकार नाम भी पुर्ण है, और सुद्ध है,
non-contaminated by the material modes, पुर्णा, सुद्ध, ब्रह्म वस्तुत्र।
इसलिए सब्द ब्रह्म कहा जाता है, और एकृष्णा मंत्रजा है, ये सब्द ब्रह्म है,
पुर्णा, सुद्ध, नित्य, इधर का जो नाम है, अभी हमारा नाम Mr. Satan, सच,
तो वो नाम बदल जाएगा, जहां शरीर बदल गया, और इस शरीर में ही बदल जाता है,
क्योंकि नित्य नाम नहीं है, बगबान का जो नाम है,
पुर्णा, सुद्ध,
नित्य, मुक्ता, मुक्ता means ब्रह्म बस्तु, कहने एक भोतिक जगत का कोई बस्तु नहीं है, इसका राम बस्तु, क्यों, अभिन्नत्याद नाम नामिना, क्योंकि उधर में नाम और नामी फरग नहीं है, अभिन्नत्याद, दिसेम थी, उदारण शरुप देखिए,
ये जो यूरोपियन, अमेरिकन, जो नवजो आंसर, ये इस मुव्मेंड में जोगदान किये हुए हैं, इनको तो एक मात्रे आधार है, क्योंकि इसको पहले कुछ समस्कार नहीं था, हिंदू समस्कार नहीं था,
ये कोई ब्रामन, चत्री, भैश्य, शुद्र का, जैसा हमारा भर्णास्त्वन धर्म है, उदर वो सब कुछ नहीं है, तो ये सब होते हुए भी, नाम का आधार से कितना सुन्दर और सुद्ध हो रहा है, आप लोग देख सकते हैं, नाम का यहाँ,
ये लोग कहा, और कुछ इसमें मैदिक नहीं है, ये सुद्ध भाव से अपराज हिन हो करके, कोई अपराज नहीं कर करके, भगवान का नाम कीतन कर रहे हैं, और जैसा चेतन महापुरू बताया है,
चेत दर्पनमार्जनम, नाम,
भगवान, श्री चेतन महापुरूबो,
कहते है चेत दर्पनमार्जनम, भव महादावागनि निपापनम,
श्रेय कैरव चंद्रिका अवितरनम, विद्यावधु जीवनम,
आनन्दां बुदि बर्धनम, प्रतिपदं पूर्णं आश्याधनम,
परंग विजयति श्री कृष्ण संकीतनम।
यह चेतन महापुरूबो कहना है कि कली जुग में विशेष करके सब जुग में यह नाम और नामी अभिन्न।
कली जुग के नाम, तुर्षिदाशी बताया है नाम का आधार से सब सिद्धी मिलती है।
और चेतन महापुरूबो भी बताया है यहां होईते सर्व सिद्धी होईवे तमार।
यह शिंपली चान्ड केवल बगवत नाम कीर्तन कीजिए।
अपराद का विचार है, नाम कीर्तन करने के लिए तीन अवस्थाय होते हैं।
एक तो अपराद जुक्त नाम होता है और एक नामाभास होता है और एक सुद्ध नाम होता है।
नामाभास से वो मुक्त हो जाते हैं और सुद्ध नाम से कृष्ण प्रेम होता है।
और अपराद जुक्त नाम से दुनिया का सुग्दो होता है।
ऐसे सास्त्रे भी चाहिए, तो पहले तो अपराध्यप्त नाम जरूर होगा, बाकि आश्ते आश्ते, क्षेत्र दर्पर्न मार्जनम, जैसे जैसे क्षित्र दर्पर्न जो है, वो मार्जित होते जाएगा, नाम करने से
वो मार्जित होते जाएगा
नाम करने से
ये पहले शुरू हो जाएगा
चेत धर्पर्ण मार्जनम
वो क्या मार्जित होना है
जो
अहंग बृह्मास में
मैं भृतु गौस्तु
नहीं है
मैं ये शरीर नहीं हूँ
इसका नाम है चेत धर्पर्ण मार्जनम
देहात्म बुद्धी, जश्चात्म बुद्धी, कुनपेति धातु, यह जो तीन धातु के बनाय हुई जो शरीर है, इसको हम समझते मैं हूँ, मैं इंदू है, मैं मुसल्मान है, मैं क्रिष्ट्यन है, मैं इंडियन है, अमेरिकान है,
ये जो उपाधी ये शरीर का है
और क्यों कि हम लोग ये उपाधी में फज गए है
इसलिए तमाम जगडा और दुख और कुछ
और ये कृष्ण कांशा स्ट्रेस मुवमेंट है
इसका असल उद्देश्व है
जो उपाधी सुन्न करना होगा
सर्वपाधी विनिर्मुक्तम
सर्वपाधी से मुक्त करने के लिए
देखिये हमारा इजर ये सोचाइटी में
हिंदु है, मुस्लिम है, ख्रिष्चन है, जूज है, आफिकन है
सब जात है, सब देश का, सब धर्म का
सब धर्म साय हो गया
बागी वो सब बुल गया
उपाधी सुन्न हो गया
इधर कोई भी है
वो अपने को नहीं समझता है जो मैं अमेरिकायन है, हिंदु है, ब्राम्मान है, छत्री है, चमार है, नहीं
उस सब समझते हैं, मैं कृष्णदाश
जो चैतर्नमा आपरों बतायें
जिवेर स्वरूप हाँ नित्त कृष्ण दाश
यही जीव का स्वरूप है
जीव का जिव असल स्वरूप है
वो भग�بान का दाश
बाकी उसको बिमार हो गया
यहां मैं दाश क्यों होगे
मैं मास्टर होगा, मैं मालिक होगा
यही बिमार आया
है
वो दाश होने को नहीं चाते, क्योंकि उसको तो ज्ञान है नहीं, कि भगवान का दाश होने से कितना फायदा है, और क्या चीज़ है। nutaaf
है और क्या चीज है वो तो नहीं, वो समझता जी दुनिया का दाश होने से हमको तो जूता खाने पड़ेगा तो हम दाश नहीं होते, पर उनको बास्तविक जो भगव तत्तक ज्ञान उनको हैं, इसलिए वो दाश होने को नहीं चाहते, वो आखरी में भगवान होने को चाहते
दिल हो जाता है, तब बोलता है आप भगवान होगे, वोई जो बिमार है, मैं दाश नहीं होगे
तो चेतर्न महापूर्प बतायते, नहीं, ये सब छोड़ो, नमन्त एव, ज्ञाने प्रयासं मुदपास
ये जो mental speculation कि मैं भगवान है, this is simply mental speculation
ये भगवान होना साधारन बात है क्या? यहां अमलोग जिसको भगवान मानते हैं
भगवान रामचंद्र को भगवान मानते हैं, कृष्ण को मानते हैं, जो अवतार ले करके इन दुनिया में आया थे
कितना अद्भूत, अलोकिक काम सब किया था, स्वमंदन में वो पुल बना दिया, और पहार बत्थर को वो डूबा नहीं, वो ऐसे ही सिखरा दिया, ये बहुबान, बहुबान कृष्णा साथ बड़े सुम्बन में पहार को उठा लिया, अंगली से,
तो अलोकिक, जो किस, कोई किसी तरह से, कोई बड़े-बड़े जोगी से भी नहीं हो सकता है, ये साधारान मनुष्यों का क्या बात है, अलोकिक, और बहुबान खुद भी कहते है,
मत्तः परतरंग नान्यत किन्ची जस्ती धनन्जय,
तो, असल बात है, जो भगवत तत्तक ज्ञान नहीं होने से, ये सब दुर्बुद्धी होती है,
अब जानन्ति मांगमूर्हा मानुषिन्तु नुवास्तु, जो भगवत तत्त परंभावम जानन्तु,
जो भगवान, सर्वशक्ति मां, कितना बड़ा उनका काम, अलोकिक, ये सब मालूम नहीं होने से,
ये आजकाल सब चीप गौड हो गया है। उसका फल यही हुआ है, ये सब नास्ति हुआ है, यही हुआ है।
यही हुआ है। सब कोई समझते हैं, मैं भगवान हैं। मैं क्या भगवान का मंदिर में
बगवान का मंदिन में जाएंगे, मैं किसको पुजा करूँगा, मैं किसको भक्ति करूँगा, मैं तो खुदी बगवान, और हमारा कुछ पाप नहीं है, मैं जो कुछ कर सकता हूँ, कोई पाप करो, ऐसे बड़े बड़े सामी सब लेक्चर देता है, वो ता तुम पाप से क�
जो गॉडलेशनेस ये दुनिया में, अभी जो भगवान तू रदेवा, मैं जब अमेरिका में पहले गिया था, बोलो उसो कहने था, भगवान तो मर गिया है, आप क्या भगवान का बात बोलने था, ये उनका विचार है, फिर कागज में लिखा,
जो हम लोग समझा था, जो भगवान तो मर गिया है, बाकि सामी जी, कीतन का थ्रू से वो भगवान को ले आया है, इसको माल लिया है, तो बड़ा हम लोग जीवात्मा है,
जीवात्मा जो भगवान का अन्स है वो कभी मरता नहीं ना उसका जन्म होता है अरे भगवान जो अन्सी है वो मर गया वो आए नहीं
ये सब भूल विचार है इसलिए भगवान खुद बता रहे है
जी मय्यासक्त मना प्रार्थ जोगं जुन्जन मधास्रय भगवान का आस्रा जहन करते
ये भगवान का भक्त का आस्रा जहन करते भगवान और भगवान का भक्त
भगवान का भक्त है सेवक भगवान और भगवान खुद है सेव्य भगवान
तो भगवान और भगवान का भक्त क्या है कि वो भगवान जैसे बताते हैं वो भी ऐसे ही बताते हैं उसमें कुछ कारी जरी करके इदर ओदर बात करके भगवान को उरा नहीं देते
ये जो हम लोग भगवत गीता, मैक्मिलन कंपनी हमारा छपता है, भगवत गीता एज इथी, हो बिग्रा है
हाँ, we started in 1968 and from 68 up to now they have got 6 editions
and each edition they are publishing not less than 50,000 copies
और अभी रिसेंटली हम लोग भगवत गीता एन लार्ज एडिशन पब्लिस कर रहा हूँ
जो कि सब, प्रत्येक श्लोप, उसका एक-एक सब्द का अर्थ दिया है, translation, transliteration और परपर्ट
वो भी मैक्मिलन कंपनी अभी छपेगा, आगास्ट बार्स पर निकलेगा
वो बहुत भारी किताब, इगारासो पेज
तो मैक्मिलन कंपनी का ट्रेड्स मैनेजर जो है, उनका रिसेंट रिपोर्ट है
नहीं तो वो तो बिजनेस मैन है, क्यों हमारा किताब छपेगा
वो देखता है जो ये जो भगवत किता एजिटीज, इसका डिमांड बर रहा है
और जितने एडिशन है, वो सब कम होते जाता है
अभी हम सुना है, रिलाइबल, सोर्स है
कि नाम लेने नहीं चाता हो, कोई प्रसिद्ध स्वामी जी
कोई अमीर का
घर में भागवत पाठ करने के लिए
बुलाया गया था
और उनको वो ग्रिहस्थावी बताया
देखिये आपका वेदांत पाठ ना की जी ये सब
जैसे जैसे है वैसे बताया
तो ये हमलोग का प्रचार का कुछ
फल हुआ है
ये जो शास्र लेकर करें
वेदांत का नाम लेकर के उल्टा सीधा समाधना
वैग्र माने शार्दूल
एक आदमी को पुछा गया मास्टरे साथ को
मास्टरे जी वैग्र का क्या अर्थ होता है
वो बोला शार्दूल
बला वो तो वैग्र समाधने नहीं
उसका और एक कठीन सब्द दे दिया शार्दूल
चैतन्य महापुरु
जब सन्नाश लिया था
तो एक शार्वभोम भट्टा चार्य
बहुत भारी नईयाई
लजीशिया
और
मायावादी
तो
चैतन्य महापुरु जब जगरनातपुरी में गए
और भगवान का मंदिर में जा करके
जैसे जगरनात का मूर्थी देखा
उसी बगद मूर्थित हो गया
और उनका सेंस नहीं है
अनकांशस
तो शार्वभोम भट्टा चार्य
राजपंडित
उसमाई उपस्थित है
तो वो तो पंडित है जानते है
कि ये तो साधारन बात नहीं है
ये तो साधारन भग्त नहीं है
जो भगवान को देखते ही मूर्थित हो गया
और वो परग भी क्या
उरुवी भी ले आया
नाख में लगाया पेट भी देखा
शास पर शास चल रहा है
कि जिसको ये समाधी हो जाती है
उसको शास पर शास सब बिल्कुल बंद हो जाए
तो
जब समझ गया जिस साधारन नहीं है
तो नोकर चाकर को बोलो देखो जी
इस काम को हमारा घर में ले चल
तो उनको घर में ले जाए फिर
उनका सब जो पार्शद था वो आये
वो हरी कीर्तन किया
हरी कृष्णा फिर उनका सेंस आया
ये चेतन और महापुर्खी अवस्था ऐसे होती
तो
शार्वों भोट्टा चार्ज जो
उनको बताया
वो तो चोबीश बरस
उनके बच्चे का सुरूप
तो देखो जी तुम तो बड़ा
कम उमर में
शन्नास ले लिया
आह
ये तो तुम्हारे लिए उचीत नहीं है
तुमकी रस्त छोड़ करके
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥