यदि आप इसे ट्रांसक्राइब करने की सेवा कर सकते हैं, तो कृपया हमे संपर्क करें या ट्रांसक्रिप्शन्स को यहाँ भेजें - info@vedamrit.in
If you can kindly volunteer to transcribe it, pls contact us or send transcriptions at info@vedamrit.in
भगवार कहाँ जो होता है? यही तो सम भगवार है। यही दरिद्र है, रक्षान है, लेटे हुए है, खाने को नहीं गिरता है। यही दरिद्र नार होता है।
असर जो भगवार है, उसको नहीं मानेंगे। और सब को पहले। यह आशुक्षा है।
नामान्प्रबद्धन्ति भगवार जाता है। बाइदु भगवार, श्रान कृष्ण। कृष्ण तो भगवार जम्म।
विश्वर को परमकृष्ण। सबशास्थ्यों सिर्फ भाग जाते हैं। उसको भगवार नहीं।
और कुछ को मानेंगे, तो जो जीव है, तो भगवार को अंसा है। यह माना जाता है। अब कुछ को भगवार नहीं।
इसलिए भगवान विशेष करते बताते हैं, न मान। कृष्णा उबाच्छा। कृष्णा कहते हैं, मुझको जो नहीं मान। नमान प्रपद्धन्ते।
हमारा चरण में, कृष्णा का चरण में एक प्रपद्धन्ते जाता है। और सब का चरण में जाता है।
तो एक आश्वरी भाग कृष्ण। नमान प्रपद्धन्ते। क्यों? मुढ़ा।
मुढ़ा का अस्तत्व गधा। गधा ने किसी गुद्धी नहीं लेता। कोई यह आदमी गुद्धी हीन होई, तो उसको गधा आता आया।
यह गधा। इसको ले मास्तर, टीचर, कोई लड़का ठीक से पढ़ता नहीं। गधा। तो गधा है उसी को कहा जाता है जो गुद्धी हीन है।
गधा तो बताते है। नदिम्भ को परिष्ठ leere ?" था." बहुत तकलईति जाती।। फर्क्य आपने के लिए नहीं। दृष्ट रकृति के लिए।
दूसरे के लिए, दो भी के लिए, गधा तो परिशन करता है, तो कपड़ा लाता है, ताकि वो आपने के लिए, एक कपड़ा भी उनका देता है, तब दूसरे का, इसलिए गधा था, एग्जाम्पल दे आजा, दारण दे आजा, जो बहुत मूर्ख होता है, तो जो गधा था
जनमान गोवर्तन ते मुढा, और क्यों ऐसे गधा होते हैं, पड़े पड़े लिखे इश्व, गॉलेज में केस भी है, ते गधा कैसा हो गया, ना दुश किसी, ना, वो पड़े लिखे ज़रूर है, परन्तु काम उनका है दुशकार्ण, पापकार्ण, इस सरे से धोका वै
बड़े-बड़े बखील लोग, जो बड़ा बखील कौन है? जो ज्यादा धोकाते हैं वनिवादियों के, कानूल को छिपा करके, कानूल को इधर-उधर करके जो काम बना देता है उसको बड़ा बखील ज़रूर है
तो आजकल का जो विद्वान होते हैं वो उसका काम यह है कि जो बड़े साइंटिस्ट कौन हैं जो अटॉम बॉम बना हैं आपनी को बानने के लिए
मैं तो जुशकृति न इस क्रीति की का आत्र होता है जिसका दिमांग बहुत अच्छा बाद यह दिमांग इसमें लगाता है
दुनिया को अच्छा की उसको कहाएंगे जुशकृति चीज भगवध्भक्ति प्रचार दुनिया का मंगल के लिए
जो आपके भगवानों को भूल गया है इसलिए उनका
हर तरह से तकलीब में होता है कि किस तरह से भगवान धक्ती होई
भगवान से उनसे किस तरह संपर्त होई
भगवान की स्रीमा में किस तरह सुलाई लेनी
इसका नाम है सुकार दुनेया का मंगल की
और आदमी को फसा देना, जो देशा, देजभक्ति फसा दिया, अभी पाकिस्तान, हिंदुस्तान में लड़ाई हुई, लाकों आदमी मर जा गया, देजभक्ति का नाम से देज, मोट, हजारों, लाकों आदमी मर जया से, करोर रुपया लक्षान हो जया,
बाकि वो सब लीडर है, अब वो लीडर को, जो याया खान, उसको वो देशा फासी में चला, पहले तो वो खूज जया, तो थोड़ा एक, वो गर्बर कर दिया, तो उसको फासी में चला, उसको बाद तो छह दिये थी, नाम दी जी, इतना बड़ा बारी, अच्छा आदमी, उ
जुश्कृति, इसलिए, जुश्कृति ना, इसलिए मूड, जगडा, लड़ाई, मात, पीत, भोजावाजी, ये सब सीख होते हैं, इसके कारण आता है जुश्कृति, दिमाग को बहुत सीख है, और दिमाग लगाता है, आज दुश्ले को फ़साने के लिए, दुश्ले को
स्कृति का, सेलेक्षय को दुश्ले, नामः प्रदंते मूड, क्योंकि दुस्कार्ज का नहें, दुश्कृति माना है, कृति का प्रदाव को बड़ा काम करता.
श। उसकार्यैश्च चुकार्यो। शूकुर्थ होता है जो जगत का मांगल होता है। इसका नाम शुकृति। शुकृति है दुष्कृति.
�食्षाणों में डुष्खेति का नारांधामा है। नारांधामा। नार माने मनुष्य है।
जानवार नहीं कहता है, नराज, अधम का अध्यम है, अध्यम का नीच, अध्यम, उत्तम, अध्यम, अध्यम, उत्तम, जो बहुत उत्तम कहा जाता है, जो बीच में है, अध्यम, बहुत नीच है, उत्तम, अध्यम, तो नर का अध्यम,
नर, नर शरीर जो है, मनिश्य शरीर जो है, कि ये भगभनः करने के लिए,
मनिश्य शरीर की दिनबाल केवल परिश्वम करके, और इंदिया तो भोग के लिए सारा जीवन को खो डाढना, इसको कहा जाता है न,
परिश्वम करके रोती खाना है.
परिश्वम?
यह तो शुबार भी करते हैं, दिन भर परिश्च्छम करते हैं।
आप शुबार देखे होंगे, गाँ में, दिन भर घूमता है, कहां धूआ है, कहां धूआ है।
इसलिए मना करते हैं, इतना परिश्च्छंग आजकाले ही सिखाया जाता है, इंडस्ट्री, कुछ परिश्च्छंग है।
फैक्टी में जोख, बहुत भारी फैक्टी है, लोहा का कार्खान है, हाग जर्जा है उसमें, क्योंकि तंखाओं को ज्यादा मिले।
यह सब शिखाया जाया, नराध्मा, उसको जो जीवन है, इतना कीमती जीवन है, जो मनुष्य जीवन,
यह जीवन ने भगवान से संपर्थ बना सकता है, उसको लगा दिया फैक्टी, इसलिए दुष्ट की जन्मा, नराध्मा।
वो जानते नहीं, क्योंकि मानते भी नहीं, जो फिर हमारा और जन्म होना अला है, इस जन्म, जैसे मैं काम करूँगा,
कुछी प्रकार और एक जन्म मिलेगा, कर्मना, मैं श्वर नहीं का ऐसे काम करेंगे, तो दुष्ट जन्म काम श्वर बनने पड़ेगा।
यह सब जानता भी नहीं, शिखा भी नहीं जाता है, उसको लगा देते हैं, मुख्षता में, वो भी मुख्ष है, जो इसकी तीन है, कुछ इसको मुख्ष बनाते हैं।
अंधा जथा अंधरी रुपणी यमाना, एक अंधा और दुसरे अंधे को पुछता है, चलो जितंग हम पार करेंगे, हम लीडर करेंगे, दोन और सब कट्ठे होंगे, यहां ताम भी गिर गया, और वो भी उत्तर जरूर, देश भक्त था, वो भी पड़ेंगे, देखिए ह
यहां पड़ेंगे, ऐसी कुछ हो जाएगा, तुम भी कुछ जाओ, यह सब दुष्कृति में है, रमान, यह भगवत भक्ति नहीं है, सब दुष्कृति, नरावन, पिल्कुल, भगवत भक्ति हीन अश्च जाती जपस्तपक्रिया, अप्रान अश्च ही देव अश्च मन्न
पड़ेंगे, जिसमें लाभ्य है, लोग करेंगे, इसी प्रकार जो मनुष्य जीवन जो है, केबल भगवत भस्म करने की जाएगा, सुवर कर लिए नहीं, ऐसा है, सुवर दिन बढ़, पुरिस्तम खड़े भूखा, बढ़, भूखाने का मतलब क्या है, उसको कोई विचा
सुवर घू खाता होगा, मैं तो मनुष्य है, हमको चाहिए भगवत पुरिशा, भगवान जो खाते है, जज्ञा, शिष्ट, सिनो, संत, मुझ्चनते, सर्वति, मुझ्चनते, जज्ञा, भगवान को भोग लगा जाएगा, इसका नाम है जज्ञ, जज्ञ का अर्थ होता ह
करने की वाला है। देखिए जैशामांदी में होता हैं।
यह इदें भी होई बात है, इदें भी रशेओती है, इदें भी रोटी बना जाता है,
सार्थ बना जाता है, चार्ट बना जाता है कितने।
जुग्यां शिष्ट शिनों संतों मुझ्चनती सद्धुतिम्मी से पाप तो हम पुकरनी पड़ेगा क्योंकि दुनिया जो है आप इच्छा करे और न करे आपको पाप पड़ने पड़े जैसा जैसा रस्ता में चल रहा है आपको इच्छा नहीं है कोई जानवार को मैं मारे
पाप नहीं है नहीं पाप है इसलिए मनुष्य के लिए उचीत है जत्ता है हम शीघ्र हाब रस्ता में चले हैं घृत हम आज रस्ता में चल रहे हैं क्यों नहीं कृष्ण को समझा करते हुए कृष्ण के लिए यह मुझेट में जाना है कृष्ण के लिए फोучट फिर कि स्त
तो जग्ग के लिए तो आप जो वो जो छीवटी आप मारते हैं उसमें आपको पाप नहीं लगेगी
और दुसरे को भुन्यंतेते अभंपापस जेपच्चंति आपमकारना
और जो अपने के लिए बजार में जाते हैं
पच्चंति आपमकारना भगवान के लिए नहीं आपना जीवा के लिए
जो पाप खाते हैं वो कभी सुखी हो सकता है
केवल पाप को भीतर में बढ़ता है वो कभी सुखी नहीं हो सकता है
इसलिए उसको कहा जाता है नराहम
हाँ
रिश्त होगा
पाशी
वो शुवर को बताया जा, तो धी छलो, तुम का फ्रसाद नहीं है, तो भूर माह खू. तु क्या समझेगा? नहीं समझेगा। भुधों शुवर है।
आदमी को समझाया जाता है। आप लोग क्योंकि मनुश्य है। आपको समझाया जा सकता है।
इसलिए जो आग्मी इसको समत नहीं, समझने लिए प्रदद्ध नहीं करता है, वो नराध्म।
मनुष्यके से बहुत लीज।
जो अकृष्णों भक्ति नहीं समझता है, भगवानों को नहीं समझता है
मुढ़ा प्रवद्धन देखना आत्मा, तो अधकने भाग। विद्वान है साब, बड़ा सामी है, बड़ा पंडिता है, केज दिया है, नहीं है, केज भी सब कुछ है, माया, हुलितक ज्ञाना।
ये जो सब ज्ञान लाभ किया है न, वो माया उसपर अपॼहरण कर दिया। क्यों? जो ज्ञान का जो असल बात है, वो समझ आएं, हिदर उन्हर बात तु समझो। वो समझतें क्या फहर हो?
जयोंकि कृष्ण को नहीं समझा, भगमान को नहीं समझा, तो उसका घ्याम का कुछ किनती होना है? बिल्कुल।
तो अ हारमें ज्ञान का अर्थ होता है वेंद, वेर का अर्थ होता है घ्याम।
व्वेत्ति भेद और विदक् ज्ञाने है, वेद सब्दौ स्थिति होता है सनस्पेति, उसका अर्थ होता है ज्ञान।
व्वेत्ति भेद और विदक् ज्ञाने। तो वेद का अर्थ होता है ज्ञान।
और भगबान कहते हैं वेद इष्ठ सद्वय अहमेव विहिद्यम। जो वेद पाठ करके, वेदांत पाठ करके, उनको आखिर में क्या घ्यान होना चाहिए।
कृष्ण कहते हैं अहमेव विहिद्यम। मुझे समझना चाहिए कृष्ण क्या चीज है। जब कृष्ण को समझा नहीं, तो पृष्ण क्या घ्यान करुगा। वेद विहिदांत पाठ करने से क्या फायज होगा। कुछ नहीं।
कुछ नहीं इसलिए कृष्ण कहते हैं माया पूरी तक ज्ञाना परिष्ट्रम तो बहुत किया वेद पाठ किया वेदान तो पाठ किया वे आसल में कृष्ण
को पोजी कृष्ण को इसलिए जाने कई समझा नहीं है अगर कृष्ण पर समझा आया जैसे भगवान खुद बताते हैं
कि स्राम्न गम्में दीव्यं ज़िया आधि तथथथथ स्कूल ही जत्ताकति हम क्यों आते हैं क्यों हम देवुविता पुत्र
कहते हैं क्यों मैं आता हूँ, क्यों हम इधर काम करता हूँ, जन्म कर्म होंगे, भगवान पर कर्म भी है, यह कर्मा साधान कर्म नहीं है, दिव्बम है, दिव्बम, साधान नहीं है, भगवान इधर आ करते लड़ाई करते, हम भी लड़ाई करते तो एक हो गया, नहीं, भग
त्रूत है, उपर उपर से नहीं, चुर्च है, और चुर्च समझने के लिए, भगवान चाहता है कि तब विद्धियां, परिपातययां, परिप्रश्चनयां, सेंवयां, वो चुर्च समझने के लिए आपको पहले प्रनिपात करने पड़ता है, परिप्रश्चनयां, परि
और केबल पनिपात और हाथ जोड़ नहीं, सेवया, सेवा, जिससे पूछे, इन्हें गुरु, गुरु को सेवा करो, सेवा करो, पनिपात करो, संतूष्ट करो, फिर पूछो,
आज नहीं किसी को पाँच गया, आप यहां को बता सकते हैं, बताने से क्या तुम समझ गयो, तुमको तो पड़े पड़ी प्रश्न नहीं हुआ, पनिपात नहीं हुआ, सेवा नहीं हुआ, समझोगे कैसा, नहीं समझेगे, इसलिए यह जो अमेरिकान और सारा दुनिया के लि
मर जाओ, कृष्ण सेवा मर जाएगा, यह बात हो जाएगा, जो तत्वदर्शिय है, जो भगवान को ताक्तिक जानते हैं, ऐसी व्यक्ति का पास जा करते हैं, लगते हैं गुरु बना लिया, एक शौक से, चलो जी एक गुरु बना लिया, कैसा कुट्टा पालता है, गुर
बना लिया, तो ऐसा गुरु होना ऐसा काम नहीं चाहिए, गुरु तो ऐसा होना चाहिए, जिसको सामने जा करके आप सिर्फ दुखा सकते हैं, हाँ, ठीक, फिर पंड़स पंड़स हो, फिर उसको पूछे, सेवा कीजिए, सर्वस्माय, टेंटी पोर आउट, देखिए जो स
ब्रिर्मौक्ह, मोख्ख। मोख्ख का अर्थि ज्यादा है? क्यों हमारा जो सर्वूप है, मैं जो जिवात्मा हूं, भगवान का अंस है, हम सर्व हैं, सित हुए हैं
उसका नामाएं मुक्ति. थिज्जाय अनुर्था रूपं स्वरूपेन अवस्थ्ति मुक्ति। इसके नाम मुक्ति है। स्वरूप है।
तो आभी जो है हमारी जो अवस्थ्यार है, ये श्वरुप नहीं है।
कि ५५५ लाँग जोनि में कभी हम देवता है,
कभी हम शुबर है, कभी हम गधा है,
कभी हम आमेरिकन है, कभी हम इंजियन आया,
कभी ब्राह्मन है, कभी शुद्र है,
यह सब सवरूप रहे हैं।
यह जैसा हमको सेटिज मिल जाता है,
उसका परिचाह से एक शरूप मैं उपादी पाइदा करता हूँ, तो विमोख्खायो, विमोख्खायो कहते हैं मोक्षो, मोक्षो कहते हैं यह असल में अपने जो शरूप है उसमें स्थितों, तो शरूप क्या चीज़ है,
शरूप, कि चहीतर रमाः पुरत्वक कहते हैं, की जीद का जो शरूप है वो कृष्ण दान, जीबेल शरूपायँ नित्त पृष्ण दान।
जीद का जो शरूप है वो नित्त कृष्ण दान.
वह जो शुरूप में हम जोब सब नहीं जाए हैं, कोई कहते है कि हम शुर है, कोई कहते है कि हम एमेरिकान है,
कोई कहते है हम भगबान है, कोई कहते है वह पोर कोई था और कोई थी तो, सब बिरुगी हैं।
सब जो समझे हुया है, कि मैं भगवान का दाश के सुरूप मूंशी हूं। इस सुरूप, जिमेश्वरूपा, मित्यपृष्णता।
और जो सुरूप को हम भूल जाते हैं, भगवान का दाश को भूल जाते हैं,
तो हमको दाशत्त तो जरूर करने पड़ेगा, दाशत तो जरूर होने पड़ेगा।
कोई देश का दाश हो गया, कोई आपका समाज का दाश हो गया, कोई अपना family का दाश हो गया,
अपने में कोई जाता है कुट्टा का दाश हो गया, वेड़ी का दाश हो गया, गधा का दाश हो गया, दाश तो उनको होनी पड़ता है, बाकि वो दाशत्य जदी भगवान का करे वो शुरूता है, और जितना दाशत्य है सब विरोग, सब विरोग, वो और सब दाशत्य से ज
प्रशिमलता, बाद।तो समस्ता कोण, जो दृष्ठ ब्रह्म-ज्ञान काकौं मुँ ��्ञापुति, ब्रह्मस्ąर्मी
हो गया, तो काम खत्म हो गया, नहीं। वो एक ब्रह्म, ब्रह्म-ज्ञान होने से वो काम होगा, वो एक
वो आशल काम है, वो आशल स्वरुप्त का काम है। और अभी जो काम, ध्याप्त काम, भ्रम्मज्ञान हमारा है दे, जो कुछ हम काम करना है, कुछ हम उपादिक।
आप एक भी कहेंगे, पाकिस्तानी हाँे, मैं हिनुस्थानी आए। मैं ये सरीज को ले करके हम सबमतता है। मैं हिनुस्थानी, आप समझेगे, पाकिस्तानी लोग.
स्वरुप् ज्ञान हो जाने से फिर लड़ाई की होजाया। स्वरुप् ज्ञान चाहिए।
जो स्वरुप ज्ञान में है। तो स्वरुप ज्ञान क्या है।
जो हम लोग समझ जारें हैं। मैं कृष्णदाश हूं। आप भी समझ जारें।
मैं तो भगवान का दाश हूं। खतृख, भगवान का है। तो फिर जगड़ा की।
हम भगवान का जास हैं। तो भगवान से आपको मिलनाई चाहिए।
भगवान देता हुई है। फिर आपसे हमसे झगड़ड़ा- आपको देता है, थेन तक तेन अर्भिन नहीं था।
मह बिद्धा क्रस्त स्ते आप सकते हैं। मैं क्यों लोगा?
आपको पर क्यों मैं आक्रमन करबूधा?
आप महारा पर क्यों आक्रमन करेंगे ?
आपको भगवान के किर्फाओ से मिलता है।
आप खाता है .
। हमको भगवान के किरफाओ से मिलता है।
जगड़ा क्या है? यह स्वरुज्ञात्मा है। तो स्वरुपेन आवस्थिति, इसका नाम मुक्ति है। सभी मुक्तों हो भी आजार। ब्रह्म भूत प्रशन्नात्मा, प्रशन्नात्मा हो या। फिर न सोचती, न खान करती।
यह जो कृष्ण का और कृष्ण भावनात्मूत्ता है, यह स्वरुज्ञात्मा, जीव कौल सब मनुष्य के लिए है। यह गधा के लिए नहीं है। गधा वो इसने नहीं समझेगा। जो वास्तविक मनुष्य है।
तो उसका रामानचार्ज है. इसलिए ति. रामानचार्ज कते हैं। जब भॉगवाद कहते है।
मनुष्यानाम सहस्यसु कृणो॥ मनुष्यकभीतर कोई मनुष्या.
यह जो मनुष्य, मनुष्या नाम सहस्त्र युद्धि क्यों बताया, तो उसका रामानु चार्ज्या बताते हैं, मनुष्या, शास्त्र, शास्त्र अधिकार जज्ज्ज्या।
मनुष्यों उसी को कहा जाएगा, जिसको शास्त्र में अधिकार हुआ। जब शास्त्र आया मनुष्यों के दिए, यह चैतन महापू चाहता है, अनादि बहिर्मुद जीव कृष्ण भूली गयला।
अनादि। अनादि का अत्मार्य स्थिति को पहले से कि जीव गया है, बहिर्मुद, जबक्त जीव होया है, बहगवान को भूल गया। अनादि बहिर्मुद जीव।
प्रिष्णा भूली गया, प्रिष्णा, भगवाण को भूल गया है, अतरह कृष्णा वेद पुराना तरह है, इसलिए वो भूल गया नहीं,
जैसे भगवद्विता, भगवाण छोड़ गया है, क्यों? हम लोग भगवाण को मारते नहीं, भगवाण को छोड़ दिया,
इसलिए भगवान धिपा करके इदर से जाने को पहले अर्जुन को लक्षत करके भगवान धिता छोड़ जाए।
जो आगे जाकर मनुष्यों उसको पढ़ेंगे, फिर हमको समझेंगे, फिर हमारा पाजानी के लिए कर्षित करेंगे।
इसलिए सास्त्र है।
तो मनुष्य का अर्थ होता है, जो यह जो हमारा वेर विरणांत युद्ध सास्त्र है , इसको ग्रहं करेंगे, इसको शुनें।
इसे फायदा उठाय है। वह मनुष्य है। तो मनुष्य से गदारी से क्या पारच है।
गदा में दिन भर पृष्णम करते हैं मनिष्य भी दिन भर पृष्णम करते हैं खाते,
यह तो तो गदा हमें करते हैं इस वर्वी करते हैं.
मनिष्य कौन है? जो? ख्षास्र अधिकार जःज्ञा। जिसने शास्र अधिकार के जुद्धता है,
जिसको जितना है, उस हिसार से ब्राह्मन, शत्री, वैस्य-शुरूद्र,
जिसको शास्वदिक और ज़्यादा है, संपूर्ण है, उसको ब्राह्मन कहा जाएंगे।
बीद पाठा धवे दिप्रा. बीप्रा. ब्राह्मन तो नहीं है। जो बीद आदि था तो अस्थितरे से पाठ जाएं।
पठन पाठन। खाली पढ़ना नहीं, दुश्ये को सुनाना। दुश्ये को पढ़ना। पठन पाठन। जजन जाजन।
भगवान का सेवा हो जो ब्राह्मन नहीं करें और उसको सिखाएं, जय जन ज्याजन, दान प्रतिग्रह, दुसरे से दान ले और उसका दान करें, यह ब्राह्मन का कार्म है।
तो जिसका जितने अधिकार है साथ में, वो उतना उच्चा हो।
इसे ब्राह्मण हर तरह से... योर आशल ब्राह्मण हैं,
गुण कर्म कदिवाभशल। गुण यह ब्राह्मण का गुण है और कर्म भी है।
इस प्रकार ब्राह्मान, इश्वराज, छत्री, इस प्रकार भैश्व, इस प्रकार शुरुद्र, तो भगवां दीता में बताया, कौन ब्राह्मान हैं?
कि आप दुष्पेश दुष्पेश बस को देव नहीं कहा जाए
जेसे राबंध, राबंध सिव जी का बहुत भवत भक्त था। आपने सब जानते हैं। बगिश्टो राःःक्ष बताया गया।
युण्यक शीवु ब्रह्मा जी का भवत था। बेगिश्टो राःख्ष दावी। क्यों? बिश्णु भक्त नहीं था।
इतनी है सात्र्मों कहते हैं। भ्रम्मा, विश्वु, महस्तृ है। भ्रम्मा, विश्वु और सीत।
तो विश्वु भक्त भ क्ववेद प्राीब Food'ा॥ जो भगवान विश्व का भक्त है, वो देवता, वो देवता है।
जेख्षाति भक्ति भगवति अतिमिक्रण। सर्वई गुणयितत्त्र समास्यते शुराः।
शास्त्रम कहते हैं, जो जिसनों भगवान में भक्ति हैं, भगवति, भगवान का अर्थ होता है, विश्णौ, सुर्ष्णा, राम, भगवान।
राम आदि-मुद्ध्यश कॉलानियमेव कृष्णौ कृष्ण सामु समववद्ध परमुख्यवर्ण। भगवान की अउतार है, राम आदि-मुद्ध्य।
कृष्णश भी भगवान स्वामय।
तकृष्ण-भक्त, विष्ण-भक्त हैं वह दैवों, और वह विष्ण-भक्त है जिसका गुन है
वह दैव संपथ। इसलिए भ Навार्था मिलते हैं, एक दैवी संपथ दिमक्खाय ओर।
दैवी संपथ अकाई थोड़, तो मुक्त है। दैवी संपथ दिमक्खाय ओर।
निबंधाय औु आशुरी मता। निबंधाय औु बंधाय का कारण किसका होता है, तो आशुरीमता
जो अशुर है, जो बगवान को नहीं मानता। इतना एक फर्क है। जो बगवान को नहीं मानता है। दैव आशुरी।
पूतार्टी होते. विष्णभक्त भवित-देवा आशिरस्त विपर्व, जो भगवान का भऩ्य नहीं है, जो अशूर नहीं चाहिए, जैसे हिरनक्रसित को अशूर बते।
जाएगा कंश को शुरू बताएगा है यह रावन को शुरू बताएगा है उनके सब गुण था आप जानते हैं कि रावन मिटीरियली बहुत
एक्वांस था सोना का लंका बनाया जाता है सब सोना का इधर तो पट्टन से होता है तो सोना का बनाएगा कितना
था फायद पले छोड़ अघित बरेटर ने खाया जाए घाटा था अवी प्लेक्टिकरेंट अंत में खाते हैं तो चहान
मैं सोना का बाफ़न नहीं सोना कैसा कि भनाएंगा सा पीड़ी यह क्या आजे मैंको ऊपर आमुर्सन हैम देख रहे हैं
बड़े-बड़े मकान वो लकड़ी का, चोड़ा का बात कुछ चाहिए, इसलिए कोई भी शाहर में जाएगे,
सबसे समय डम-टल ढूमता है, टंक-टंक-टंक-टंक-टंक-टंक, सबसे समय, आग कहीं न कहीं लग जाता है, लकड़ी का, नहीं है,
कहीं लेक्षिक सुराई इधर हो गया, आग लग जाता है, और खप्रे का, बेवर्ली हील्स,
लौता में इसलिए एक क्वार्टर है, बेवर्ली हील्स, तो उदर देखते हैं, यह शॉक्स है, वो लोग, खप्रे का मकान पलते हैं, खप्रे हैं,
तो हम बोलते हैं यह तो हमारा देश में जब गरीव है, कप्रे का मकाद है। यह सबसे बाद आप प्रस्करते नहीं है।
शॉक्स है, खप्रे का मकाद हूँ, बेवर्ली वीथ में हैं, लिग जाता हैं, तो अपनापना शॉक्स है,
तो ये जो रावन था, वो खप्रे का भी नहीं, और पत्थर का भी नहीं, सोना का मतलब है। इतना भारी एडवांस मिस्टियरी। तदी उसको कहा गया क्या, उपादी, राखस। आज तक आप लोग जानते हैं, राम लिला होता है, वो राखस तो अपमान चल जाता है। क्यो
लिया। लक्ष्मी को लिया। राम तो छोड़ो। ये ही रावन आशुरी मत है। जो भगवान तो छोड़ो। और भगवान के जितना धन संपत्ति है।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥