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Morning, January 17th, Jaipur
मना प्राथा जोगं जिन्जन मदास्तय
असंशं समक्रं मां जथा गैश्चसीत अश्विर
भगवान संग
भगवत भक्ति जोग
तिस तरह से पालन करना है उस विषय में समझा रहा है
मैं आशक्त मना
भगवान में आशक्ति बरानी चाहिए
अभी आशक्ति हमारा दुनिया में है
धन में जन में
स्त्री में कुटुंबी में देश में
समात में
इस सब विषय में हमारी आशक्ति है
ये आशक्ति
भगवान में लगाना है
उसका नाम है भगवत भक्ति जोग
जोग का अर्थ होता है
कोई चीज से संपर्त अच्छी तरह से बनां
इसका नाम जोग
भगबान से हम लोग का संपर्थ है नित्यकार वेद में कहते हैं नित्या नित्या नाम चेतना चेतना नाम
आनेक नित्य है हम लोग जी भी नित्या और भगबान भी नित्या जी भी चेतन भगबान भी चेतन बघबान मुखरदा नहीं है निराकार नहीं है
जैसे हमारा आकार है आपका आकार है मैं चल फिर सकता हूँ बघबान भी इसे है बघबान भी चल फिर सकता है
बगवान निष्कर्म नहीं है
बगवान का काम बहुत है
हम लोग आप लोग
थोड़ा सा विष्णेस करते हैं
कि आगर कुछ करते हैं
कितना हमारा पास काम रहते है
हमारा प्रुशट नहीं मिलता है
अगर कही बगवान तथा हो ये
तो उनको आने को कुछ शर्त नहीं होता है
और जो भगवान
जो विश्वब्रम्हाना को पालन कर रहे है
उनको कितना काम है
चला समझ दी
बहुत काम
भगवान कहते है
ये जो विश्वब्रम्हाना है
ये जो भोतिक जगत है
एक अंश मात्र है
और जो चित जगत है वो का तो कुछ काई ना काई नहीं बात है
ये एक आंख में समझ लिजिए अनंत कोटी ब्रह्मान्द है
जस्तप्रभाप्रभवतु जगदन्द कोटी
जगदन्द का अर्थ होता है ब्रह्मान्द
एक ब्रह्मान्द जो आप लोग देख रहे है
इसी प्रकार अनन्त कोटी ब्रह्मान्द है
और एक एक ब्रह्मान्द में अनन्त कोटी लोग है
जस्तप्रभाप्रभवतु जगदन्द कोटी
कोटीश्यु असेशभु सुधादि भिभूति भिन्नम
ये भगवान का एक आंश का परिचय है
और तृत्रियांश छीत जगत है
तो भगवान का राज
अनेक लंबा चावड़ा है
काम उनका बहुत है
इसलिए कहते हैं
वेद में कहते हैं
नित्या नित्याना
चीतना चीतनाना
एकव भखुनाम विददाति कामा
एक जो चीतन वस्तु है
नित्य वस्तु भगवान
वो अनेक जो नित्य चीतन है
जीवात्मा
उनको सब भरन पोषण भगवान करते हैं
तो भगवान से
हमलोग का नित्य संपर्क है
परन्तु आभी हमलोग भूल गए
भगवान
इसलिए माया पकड़
श्री चयतनन चीतां में
तो मैं कहता हूँ कि अनादि बहिर्मोग जीव कृष्ण भूली गेला अतये मयातार गौलाय माधिल जो तब से जीव भगवान तो भूल गया है उसका इतिहास मालूम नहीं है
परन्तु बात यही है कि अनादि काल से अनादि काल का अर्थ होता है जब सिष्टि होती है उसको आदी समय कहा जाता है उससे पहले ये सिष्टि का पहले भी जीव जो बद्ध जीव है जो दुनिया में फ़से है वो सिष्टि का पहले से भी भगवान से भिमो
ततो भिमुखो चेत शा पृलाद मारात करते हैं जी भगवान हमारे लिए कोई चिंता नहीं है मैं तो आपको दाश हूँ और आपका स्रमान कीतन में भगन चित्त
नईवत विजे परस दुरत त्रयावैत रन्या तदबिज्य गायना मगन चित्त
तदबिज्य गायना मिर्त मगन चित्त
क्योंकि आपको जो नाम गान रूप लिला परिकर वैशिष्ट है
इस विशय कीतन करने में
जो हमारा आनंद होता है
फिर हमारा कोई और फिकिद नहीं
बाकि हमारा एक फिकिद है
वो क्या है
सोचे ततविमुखचे तसा
माया सुखार्थम भरमद भुतविमुदा
मैं ये मूर्ख लोग के लिए सोच रहा हूँ
जो कि इदर दस बीच
प्रचांच बरस
सह बरस जाधा से जाधा रहेगा
बाकि माया सुख
तापकालिक सुख के लिए
अनेक बस्त है
उसी लिए समाय नस्त करहे है
ये मूर्खल के लिए
मैं सोच रहा हूँ
नहीं तो हमारा लिए कोई सोचने का बात नहीं है
मैं कहें भी बैच जाओंगा और आपका नाम का अंतित्यम करते आनंद भया। यह वैष्णव विचार है। वैष्णव भगवान का आश्रायण है। भगवान उनको रक्षा कर रहे हैं।
भगवान सभी को पालण करते हैं। विशेष करके भक्त को। विशेष करके जानवार सभी का पालक है।
परिंदु विशेष करके उनको जो भक्त है।
जेमान भजनति, पृत्या, प्रीति से, प्रेम से। जो भगवान भजन में है। उनके लिए भगवान का विशेष ख्याल है।
यह शास्त्र शृद्धा है। इसलिए भगवान खुद बताना है।
मही आशक्त मना प्राप्त। जिसकी आशक्ति भगवान का ऊपर हुई है। उसका जीवन सफर।
और नहीं तो माया के आशक्ति में वो फशे हुए हैं और जन्म जन्मान पर अनेक शरीष पलत्ये पलत्ये
कभी शर्ग लोग में, कभी नरक लोग में, तभी ऋधामन, कभी शुद्र भाग में। कभी और कौच, कभी जान्वर।
किसी प्रकार खब्बन कराएं। इसको बण करन के लिए एक ही मात्र उपाय है भगवान भक्ति जोग।
वो भगव धक्ति जो क्या चीज़ है भगवान में आशक्ति बढ़ा जिते है और तुस्तों
मैं आशक्त मना प्राथ जोगंग जुन्जण मदाश्व और वो जोग शादन करने के लिए भगवान का आश्रायद्रंग करने होगा
या तो भगवान की जो भक्त है उनका आश्रायद्रंग करना आप से आप नहीं होगी इसलिए हमारा वर्षन प्रद्धति
है आदो गुधबास्याम आदो पहले ही सत गुरू का आश्रायद्रंग करने के बगबारी खुद भी कहते हैं तद विध्षी
विद्धि प्रनिपातेना परिप्रस्णेना सेवया उपदक्षंति तत् ज्ञानम् ज्ञानिना तत् दर्शिन।
वेद्य अभिज्ञत हैं तत् विज्ञान आठंसा गुरुमेव अभिज्ञत्षेत।
कि वो विज्ञान को समझने के लिए भगवत भक्ति जोग बहुत भारी विज्ञान है।
ऐसा मनमाफित नहीं। यह विज्ञान है। ज्ञानम् सभिज्ञानम् यह सब आगे भगवान बताएंगे।
जैसे विज्ञान scientist आजकाल विज्ञान का बहुत धादर है होना भी चाहिए इसी प्रकार भगवत धक्ति भी एक विज्ञान है जैसे जैसे नियम है उस प्रकार हम लोग आगर पारण करेंगे तो भगवान को मिलना कोई मुश्किल नहीं है जैसे इसी लिए भगवान खोड�
कि हम लोग प्राप्त करेंगे वह सार्थ बगबान खोज समझा रहे हैं नहीं तो हमारी बुद्धि से भगबान को समझना बिल्कुल संभावाएंगे
और भगबान से भगबान को समझना संभावाएंगे
तो दिलूतर आजकार ग्रहान लोग सिमिद्ध ज्ञान से यह भौतिग विज्ञान को भी ठीक-ठीक समझना नहीं करता है
तो भगबान को क्या समझना
इसलिए ब्रह्म संग्यत्र में कहतकर
पन्थात्य कोटी सतवस्तर संप्रघम्य बायु रथापी मनसो मुनिपुंग बाना
बड़े बारे मुनिपुंग साधारन मुनि नहीं स्रेष्ठ मन
वागर पन्थात्य कोटी सतवस्तर संप्रघम्य बायु रथापी
बायु का रस्ते एरोपने ये मन का रस्ते
अनन्त कोटी बस्त बरस अगर आगे जा रहा है
तो भगवान कहाँ उसको नहीं मिल सकेगा
ऐसे साथमें बहुत ज़्यादा दुश्टाओं पर
भगवान अम्मारा साथोत में है
और नहीं तो भगवान बहुत दूर में हो
जितक भगवान भगवा प्रेम है
प्रेमान्यन छुरित भक्ति विलोचने जिसका प्रेम अन्यम से आख में विठ्रा हुआ
वो व्यक्ति प्रेमान्यन छुरित भक्ति विलोचने भक्ति आख से वो भगबान को सबसमाई देखता है
प्रेमान्यन छुरित भक्ति विलोचने न संत सदाई वरिदे येशु विलोकने संत जो है सबसमाई भगबान को ही दर्शन करता है
और दुसरे जो है पन्त आश्य कोटी सात वक्त संप्रगंभ हजारों वरस अगर चिंतन करते रहें तो तब भी भगबान अविचिंत तक्ष रहेगा
इसलिए भगबान को समर्णने के लिए भक्ति जोग और भगबान में आशक्ति बढ़ानी चाहिए
मैया शत्त मना प्राच्छ योगं जिन जन मद आश्य को जोग शाधन करने के लिए भगबान का तो आस्य करना चाहिए
नहीं तो भगबान का जो प्रिय भक्त है
उनको आस्य करना चाहिए
मद आश्य का अर्थ होता है भगबान से नहीं तो भगबान का प्रिय भक्त
वशक भी इसलिए भगवान का भक्त का विषय शास्त्र में कहते हैं कि शास्त्र भगवानी है परन्तु मायाबादी लोग जैसे कहते हैं मैं भगवान हो गया बगबद भक्त ऐसे कभी नहीं कहेंगे बगबद भक्त जानते हैं कि मैं भगवान का नित्त दाश है
पिन्तु प्रभुज्य प्रिययेवतः ये भगवान को जी दाश है इसलिए गुरु को शास्त्र अनुसार कहते हैं दाश भगवान
आ, भगवान प्रोध, प्रभु, भगवान। और भगवान कुछ जो भक्त है,
जो कि भगवान का तरफ से गुरु का काम करते है, उसको दास भगवान का करूँ,
यानि वह भगवान का दास है, तब उनको भगवान का ऐसे सम्मान देना उचित है।
यह शास्त्र का नियम है। तो मैया शक्तमना प्राश्च जोगं जिन्दन मदार्श्य असंशन समग्रंग मां। यदि भगवान का आश्चय में या तो भगवान का भक्त का आश्चय में भोक्ति जोग हम लोग साधन करेंगे, तो असंशन फिर और कोई संशय नहीं रहेगा�
तो इस तरह से दुनिया में आते है सब बाह असंशन और समग्रंग, समग्रंग तो शंपूर्ण। भगवान हशीम है, भगवान तो शंपूर्ण भगवान ही नहीं जानते। परन्तु जहां तक समग्रम है भगवत ज्ञान, भगवत तप्तज्ञान जदि भगवान का आश
आपे जो करभी, ज्ञानी, योगी... यह सब जितने है ... तो इसमें शंख रहता है
कभी कभी योग लोग कहते है भगबान है कि नही ये
कोई भी एसी कहते है भगबान है नही यह शास्त ये सब जितने बताएं है
इदर उदर का बात बताया आदमी को भर काने के लिए
ये सब का सब है
अज़काल विशेष करते हमारा देश में बड़े बड़े नेता लोग ऐसी करते है
ये भारत वर्ष बगवान बगवान का से जानने में गिया
इसको बगवान भोग इसको शदान करेगा
ये हामारा बड़े बाले विजार का विचार है
इस सब भूल विचार है
बगवात संपर्त नहीं होने से
सास्वे कात है
बगवात भक्ति हीन अश्व जाती जपत सपत प्रिया
अपरानश्व ही देश मननंग लोकरण
बगवात भक्ति हीन हो करके
बड़ी जाति और बगवत भक्ति हीनस्ता जाति जोग और धर्म कर्म
जो कुछ है ये सब क्या है लोग और अन्यनाम है इसमें
विशेष कुछ लाव नहीं है बगवत भक्ति हीनस्ता जाति जपस
तपक्रिया अप्रानस्य ही देहस्ता उखिस्तरेसे है
जैसे मुर्दा है उसको अगर सजा आ जाए उसमें वो जो आदमी मर गया है उसको अपना भाई बिजदरी वो लोग थोड़ा आनन्द ले सकता है देखो जी हमारा पिताजी मर गया कितना सजा के ले जाए तब उसको सजा ले लाब क्या हो
अप्राण सही देव समन्नन लोकरंजन यह लोकरंजन है इसमें कुछ लाभ बगवत भक्ति विहें वह जीवन उसका सफल
वनुष्ट्र जीवन इसलिए मिला मिल रहा है हमको मिला है कि इसलिए वह भगबान से संपत्र बना करते जीवन सफल करते
बाकि यह काम जो नहीं करता है उसके लिए भगबान बताते हैं कि नमां दुष्टितना मुढ़ा प्रपद्धनते नराधम वह नराधम
मनुष्ट्र जीवन उनको मिला परंतु वह भगवत भजन नहीं किया भगबान से संपत्र नहीं बनाया भगबान क्या चीज है
संज्ञान है तो वह नराधम यह जो मनुष्ट्र मिला मनुष्ट्र शरीर मिला बाकि वह अधाम पुषु से भी नीच इस प्रकार भगबान करते हैं यह शास्त्र का विचार
है इसलिए भगबान में हमारी आशक्ति बढ़ाने चाहिए और उसके लिए भक्ति जोगी एक मांत्र कार्यक्रम भक्ति आमान विजाना और दूसरे
और किसी प्रकार से भगवान को कोई नहीं समझ पाए भगवान खुद कहते है भगवान कहते है भक्तियामान विजान भक्तित्वाराय हमको समझ पाए भगवान कभी नहीं बताया कि ज्ञान से भगवान को समझ पाए जोग से भगवान को समझ पाए कर्म से भगवान को समझ �
है भगवान से हमारा क्या संपर्क है दुनिया क्या चीज है तस्मीन विज्ञाते सर्वमित आदो शुद्ध्या तत्व शादु संग सुद्ध्या को बढ़ाने के लिए साधु का संग करना चाहिए साधु कौन है साधु जो भगवत भजन करता है उसका नाम है साधु अप
शादु अब कोई मैं भगवत भजन नहीं करता है वह शादु नहीं है कि भगवत भरनहीं कर cabbin जो करता है उसको कहा जाधु भुत कहता है कि आसुरी भाव मां पता उसके ओपी का यह दुनियां में दूरी प्रकार के लिए हंति हैं एक अशुर है और एक देवता है Ages नु
देव जो भगवांत भक्त है विष्णु तत्त कृष्णा राम विष्णु भगवांत यह सब विष्णु भक्त भवेद देव आशुरस्त विपर्वु और अशुर कौन है जो भगवत भक्त है
बर्वरे आप लोग जानते हैं अशुर जैसे रामन हिरम्न कृष्ण कौन सब यह सब बड़े विद्वान थे परेशने थे और कोई शीवदी का भक्त है कोई बर्मादी का भक्त है बर्वरे भक्त है बाकि शास्र इनको अशुर बताया क्यों यह भगवत वस्ति से विरोध ज
जाता हाई अशुर कहा जाता है आज आज तक भी आप लोग राम लिला शकत ने आप लोग जानते हैं जी रामन को कितना अफ्रमाण किया जाता है यही सास्त्र का स्वीधानता है
जो जिसको भगवत भक्ति हैं नहीं उसका कोई गुण का आदर नहीं हाराव भक्तस्य पित तो महद गुणा, भगवत भक्ति जिसका पास हैं नहीं, उसका कोई महद गुण होई नहीं सकता और उसका कोई महद गुण का आदर भी नहीं है शार्ज होरात, ये सब विचाल
यह सब विचार है। इसलिए भगवान शायं कहते हैं, महियाशक्तमनाप्राश्व योगम जुन्यन्मदाश्य असंशर।
संदेव, कुछ संदेव नहीं रखते। चंपूर्ण संशर। भगवान, कृष्णस्ति भगवान संशर। यह शास्त्र का स्विध्धान है।
येते चांशकल आपुंसौ कृष्णस्ति भगवान संशर। इश्वर परमा कृष्ण, परमेश्वर जो कहा जाता है, कौन है, वह भगवान संखृष्ण? इश्वर परमा कृष्णत्यि भगवान संशर।
वह नीराकार नहीं। भगवान, संथी भावन तो भगवान।
यह जो हम लोग का विग्रह है, आपका शरीर, हमारा शरीर जो अभी है, यह भौतिक शरीर है. भगवान का शरीर भौतिक नहीं, यह जानते हैं, जो भगवत भक्त नहीं है, वो समझते नहीं।
क्योंकि भगवान को मनुस्य समझता है, क्योंकि कृष्ण और राम को यह भगवान मनुस्य लेते हो. जब भगवान मनुस्य जो हमारा भरतिक स्वरीद है, उन्हें चेérie या भगवान के स्वरीद अगानी नहीं है Hetahariya. क्योंने भगवान से जब भरती भूलता है जब भगव
ग्यानमाय सत्चीत आनंदम ये भगबान का विज्ञा है singing
इसलिए भगबान जब प्रकत होते उनका सब लीला आनंदम आयी विदार्त सुत्र में गलते, आनंदमय अभ्यासादा में विदार्त सुत्र में गहते, आनंदमय अभ्यासाद
भगवान अभ्यास से साभाविक तौर से आनंदम है।
विशेष करके भगवान प्रिधि कृष्ण रो ये आनंदम है।
तो मनुष्य जुबन का यही उतित है।
इसलिए भगवान खुद आते है।
शिखाने के लिए।
आकर्षण करने के लिए।
बिन्नामन लिलाष आकर्षण करने के लिए।
हमारा सामनी लिलाष देखाते हैं।
इसको अच्छी तरह से समझना और भगवान में आशक्ति भरानी चाहिए।
किस तरह से आशक्ति भरती है।
उसको भी प्रत्यिया गोष्यारे लोग बताये।
दोस्तों कारण है कि आदव सुध्या।
ये सुध्या, भगवत कथा पते सुनने के लिए।
सुध्या। भगवत भक्त से,
मिन्ना, जुन्ना।
आदव सुध्या। तवों सादु संघ।
सादु संघ करने से।
संघ का अर्थ होता है जो भगवत भजन करने वाला है। देखिए ये सब American European लोग ये भगवत भजन कर रहे हैं और कहीं भी जाता है सारा दुनिया में इनको व्यवहार देख करके सब आदमी से आकर्षित होता है और आस्तास्ते वो सब भगवत भक्ति में सब लगते हैं। य
ये चालू है सब ज्यादा में अभी इधर से जाकर मैं आफ्रीका में जाओंगा। आफ्रीका में उदर African लोग भी बहुत भजन हुआ है। ये साथ आप लोग सुनके सुखिया के। सब ज्यादा में हरी कीतन का प्रचार हो रहा है। और आप लोग भी आपका तो भाई है �
जंगन में जाकर के यह मूत्री से आई यह एक ऐसी मोर्टी हम यह अपनी आप एक नाय-अरॉबी में हमारा मंदिर हो रहा
है और यह मोर्टी कि मिलिया उन्हें जाए ने मूत्री हाई सोची है अब यह मोर्टी पर प्रतिष्टित जाएगा कि हम
का बहुत भारी मंदिर है, 200 भक्त सब समय उदर मित्यकाल रहते हैं, इसी प्रकार पूजा, पाठ, कीतन, सब लगेंगे, उसका नमुना आप लोग सब देख रहे हैं, कि यही भगबत भक्ति दुनिया में प्रचार करनी चाहिए, तभी आदमी को सुख हो रहा है, जब आदमी
सब यही समझ जाएंगे, एक मात्र भक्ता कृष्णा, और सब भगबान के भृत्य है, इस प्रकार जब समझ जाएंगे, तभी वो सांति उसको मिल सकेगी, अभी तो दश बल गया, आप लोगों को ज़्यादा देर होगा, फिर कल बलेंगे आपको, शाम को भी बलेंगे भा
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥