श्रील प्रभुपाद के हिंदी में प्रवचन  »  710213LE-GORAKHPUR--Hindi
 
 
 
हरि कथा
गोरखपुर, 13-फरवरी-1971
 
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एट एंगेजमेंट, मॉर्निंग अच्छा 13 चैनल 71, गुरारपूर्ण
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एट एंगेजमेंट, मॉर्निंग अच्छा 13 चैनल 72, गुरारपूर्ण
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मंदिर में जाते हैं
गिर्जा में जाते हैं
क्या और
मॉस्क में जाते हैं
सभी कुछ कामणा ले करके जाते हैं
और आधकल बड़े बड़े वैज्ञानिक लोग
बड़े बड़े दाख्यों करते हैं
जो भी तुमको भौतिक शुक्षाई है
तो तुम मंदिर में और मस्जित में और गिर्जा में जा करके क्या करें
अपना रोती कमाओ अच्छी तरह से आओ पियो मज़ा करो
और ये सब मंदिर अंदर जाने में क्या ज़रूर है
आदमी सिप्ता भी है
रशिया में नाश्टिक करने के लिए
सब दाओं के आगमी का पास जाते हैं
पहले ऐसी क्या था
अभी क्या करता है मानूम नहीं है
पहले से सुना दिया
कि लौरी भर करके
वो रोती ले जाता हूँ
और दाओं के आगमी को
करता था जाओ
गिर्जा में जाकर
यही प्रास्थना करते हैं
यह भगवान हमको हमारा रोटी, दैनी, जो हमको खाने कहा है, उसको दीजिए।
God give us daily bread.
तो मन, आप लोग जानते हैं, जो चर्च में, गिर्जा में रोटी कहा है।
यह लोग कहते हैं, कि तुमको रोटी मिल गया क्या।
तो बोलता है, नहीं साब, अभी तो रोटी नहीं मिला।
प्राच्छना तो जरूर की, जो हमको रोटी दीजिए।
बैकि रोटी अभी तक मिला है।
तो बोलता है, जो हमको प्राच्छना करो, हमारा पास रोटी माँगा।
गवर्मेंट, तुम गाउं के लोग भुलेबाले होते हैं, गवर्मेंट साब हमको रोटी दीजिए।
तुम लोरी भरके रोटी दे जाते हैं, तो लेव रोटी, कितना चाहिए।
कहना का मतलब है, जो आजकाल का की विचार है, जदी रोटी के लिए गिर्जा में जाना, मंदिर में जाना, यह भौतिक शुक्र के लिए।
तो बड़े-बड़े बज्जानी करते हैं, जो आजकाल बज्जानी का आभिस्कार बहुत कुछ हुए हैं, इसमें मेहनत करो, जैसे अमारा देश का गवर्मेंट भी करते हैं।
परन्तु, बात यह है, जो भौतिक शुक्र हमको कितना दिन भोगना है। समझ लीजिए, हम बहुत करमठा है, काम करने वाला है।
एक ही जीवन में, दस बरस में हम दस लाग रुबिया कमाएं। फीक है, दस लाग रुबिया का और दस बरस में और दस लाग, वीच लाग कमा लो। बाकि इधर कितना दिन रहोगे।
जाएगा जाए 50 बरस, 60 बरस, 100 बरस रहोगे। उसका बाद जो कुछ तुम कमाया है, वो तो इधर ही रह जाएगा। और तुम्हारा जो कर्म किया है, पाप, फुन्य, उसको तुम ले करके जाओ।
अभी तुम 20-50 लाग कमा करके कोई बड़ा धनी हो गया। ठीक है। और जदी तुम्हारा काम का जो नीच रहा, तुम्हों तो प्रकीति का नियम अनुसार, तुमको इसी प्रकार नीच जोणी में जाने पड़े।
जंग जंग बापिस मरन लोग के तदर्शन से कले वरम। भगवर्धिता से यह संभाद हमको मिलता है, जब मरने का समय जिस प्रकार तुम्हारा मन का भाव रहेगा, फिर ऐसी शरीर तुमको मिलेगा।
यह प्राकीतिक नियम है। प्रकीते क्यमानानि, गुनयी कर्मानि सर्व। अहंकार विमुरात्मा कप्ता हमिति मन्य। सब प्रकीति का यह नियम है।
जो नहीं तो क्या। अलग अलग शरीर हमलों को होता है। इधर हम लोग पचास आक्मीं अगर बैठे हैं। पचास आक्मीँ का पचास किसी का शरीर हैं।
और रकम रकम यह क्या होता है कुछ प्रकीदिकार नियम है तभी तो होता है नहीं तो सब एक ही किसी का होता है नहीं
होता है मनुष्य का समात चोड़ दी दिए और जितना चुड़ाशी लाख आश्टी लाख और जो जो नहीं है अलग-अलग शरीर होती यह
शरीर हमको मिलता है कर्मना देवं नस्क्रें नात्य साथ में कहते हैं जैसे-जैसे मैं कर्म किया है और देवों
नस्क्रें नात्य भगवान का वह वकार सबसे भगवान कि वगवान का ह कुबॉर्प उसका अनुसार हमको सरीर मिलता है
हाँ, तो कहने का मतलब है, जो धर्म जाजन करके, जो दुनिया का भोती कुछ लाभ करना, वो धर्म शाक्ष में कहते हैं कोईतव धर्म, चरणा धर्म, वो धर्म नहीं है,
अशल जो धर्म है
वो भगवान का चरण्मे सरनापचित
वो अशल धर्मी
इशलिए
भगवान कहते है
सर्वधर्मान परिक्तज्यो
मामेकंप शरणन
अशल जो धर्म है
भगवान का चरण्मे
शरणापचित
ये सब शास्र का नियों
जिस धर्म से
भगवान से कुछ संपर्क है नहीं है उसको हमारा वैदिक धर्म का अंसार कहते हैं वो छलना धर्म वो छलना धर्म से भागवत धर्म से कोई संपर्क नहीं है
भागवत धर्म कहते हैं वो धर्म सबसे ठीक है सबई पुन्सप्र ओ धर्म जटो भक्ति रधोखती
है जिसमे भगवत भक्ति होओ वो भर मेरी क्योंकि जबतक भगवत भक्ति नहीं होए तब तक आत्मा सूप्रसन्न
नहीं हो सकते हैं जब आप आत्मा को सुपरसन्न करने को चाहते हैं जब आप शांति चाहते हैं तो आपको
भगवत भक्ति एक मात्र उपाय है और कुछ उपाय है इचले भगवान स्याम करते हैं कि भोकतारम
जग्गत वसाम सर्वलोक महेस्तरम सुरीदंग सर्वभूतानाम ज्ञात्तामान शांतिमित तो हर तरह से जिदर से आप जाइए
जदी आप सुखी होने को चाहते हैं तो भगवान को केंदर करके सुखी होई नहीं तो आप बागवत का ही निद्देश है
अतपन विद्धिगत्स्रेष्टा वर्णाश्चम विभागन है
हमारा वैदिक निवम अनुशार वर्णाव आश्चम का विभाजन होई
ब्राम्मान शत्री वैश्चु सुद्र प्रम्मचारी गिरियत्त बानप्रस्थ और सन्याश्च
सात्वकार के आस्त्वम और सात्वकार के सामाजिक विवाज अ सुस्पित हैं � Old
तो हमारा दिन्नर मार्वी के तो मुस्ल्मान कर दिया हुआ नाम है असल में हमार है उसका नाम है
सनातम धर्म बर्णास्त्रम है तो बर्णास्त्रम धर्म खाली भारत में नहीं भारत में अच्छी तरह से उसको मानते हैं और ज़्यादा में और तरह से मानते हैं सब ज़्यादा में बर्णास्त्रम है
ताकि इधर जो बर्णास्त्रम है नियमित है ताकि वो नियम में आजकाल कलिदुर्खा प्रभार से सप्तूर गिया जो कुछ है सास्त्रम में है भगवान खुद कहते हैं कि चातुर बर्णम मया सुष्टम भगवान का बनाया हुआ चीज चूट नहीं सकता है
वो ब्रामण छत्री वैस्त सुद्र चातुर बर्णम में चातुर का छितुढ़ बर्णम है यह भगवान की बनाया जाता है
वो तूर नहीं सकता
तो एक देश और सब देश में है
ऐसा नहीं समझा जाए
कि केबल ब्राह्मन, छत्री, वैश्व, सुद्र
ये केबल भारत परस में है
ऐसी बात नहीं है
सब ज़्यादा में है
जब भगवान का चीज बनाये हुआ ना
वो सब ज़्यादा में है
जब भगवान का चीज बनाये हुआ सुर्ज नारा की
वो अमेरिका में हुदय होता है
भारत में भी हुदय होता है
ऐसी बात नहीं है
कि केबल भारत में हुदय सुर्ज का दिखा जाता है
आपके दीजिए
जो चोच थी हवा
पिति आप तेज मनुद बम के यह चैनल हुआ है हवा बार भी चलता इधर पानी या आपकी अगनी अगिल की गुणिक खुद है
इसі प्रकार है यह जो शर का नकजा कहता है आप सौ कि मैं रॉसी की है
उस सब जगह में है, अब देखिये, मैं चून-चून के लिया हैं उदर से, सब ब्राह्मन है, इसको मारना चाहिए ये ब्राह्मन, क्योंकि ये ब्राह्मन का गोन, उसको अनुसिलन कर रहा है, आनु कुल्लेन कृष्णा अनुसिलनम,
देखिये सब समय बगवान का नाम जब रहा है, उसको दिखा हुई है, उसका जनोई भी है, बगवान को सेवा करते हैं, सब जैसे-जैसे ब्राह्मन वैश्णव का जैसे नियम है, सब कुछ कर रहे हैं,
फिर आप इसको क्या मानें? इसको मिलेक्ष जवन मानें या वैश्णव मानें? इसलिए शात्री में निर्देश है कि वैश्णव ए जाति बुद्धि, हट्टे शिराधी गुरुषु नरमती वैश्णव ए जाति बुद्धि,
यज़ा भगवान की मूर्षी होता है मंदिर में, सब कोई जानते हैं कि पीतल का मूर्षी है, लगली का मूर्षी है, तो लगली को पूजा करने के लिए कितना आदमी मंदिर में जाते हैं,
करते हैं यह पीतल का कोई पुतली पूजा करने के आवे कोई कोई कहते हैं कि यह पीतल का एक पुतली है कि लोग
मंदिर में जाकर पूजा करते हैं यह भगवान तो सब जगह में है और यह मंदिर में क्यों जाते हैं यह भी कोई-कोई
जाते हैं पर वो विचार ठीक नहीं है भगवान जो भी हफ्थ जगह में है कि मंदिर में भी है और अ
कि अ है इसके शास्मे मना करते हैं जो ना रखी होते हैं वह अच्छे से लाभी भगवान को जैसे पूजन करने के
मूर्ति है अज्जा मूर्ति और अवतार इसको विचार नहीं है कि पीतल का है लकड़ी का है अगर कोई ऐसा माने
यह पीतल का है लकड़ी का है लोहा का है कि पत्थर का है तो अच्छे सिलाधि गुरुशु नर्मते और जो गुरु आकार जो
मुझे तो उसको साधारण जो मनुष्य बुद्धि करते हैं और वैश्णव जाति उठी अजय भगवान को सेवा में निक्तु प्र है वैश्णव
शाक्षण अनुषार वैश्णव है उनको चैदी कोई जाति बुद्धि करें यह कुल से है यह वह फ्लॉम से है अब देखिए
कि का प्रमान प्रदेशिए जैसे उन्हार जो उन्हार ज्योर्सों मनुष्य समाय में जन्मनी जाती बंदर कूल में परदो क्योंकि
कि भगवत भक्त होने का कारण, आज सब हनुबान जी को पूजा सब कोई करते हैं। इसी प्रकार, जो चाहतुर्वर्णक्मयासिष्कमु गुणकर्म विभाग होते हैं।
गुण का अनुसार जो चारवर्ण भगवान सुझन किया है, वो सब जगा महीं है। यह बात नहीं है कbia भरत बर्ज महीं है, नहीं।
यह बात शहरी नहीं। सब जगा महीं है। इजलिए हार लोगको चाहिए
जो दुनिया में सब जगा ब्राम्मन, भरिष्णव कहा है, उनको भगवान को संपर्क दे करके उसको उठाया जाए। ये भारत का उठीत है। जैतन महापुरू यही बात कहते हैं कि भारत भुमिते मनुष्य जन्म होई लो जा, जन्म साथ्य करी करो परोपका।
तो परोपकार क्या चीज़ है? परोपकार यही है, जो मनुष्य जो भगवान का संपर्क भूल दिया है, उसको फिर जगा देना। उत्तिस्थत और जाब्रत और अप्राप्त वरान निवोदन।
तो जो सोय हुए हैं, जो भगवान से संपर्क भूल करके, वो समझता मैं एक दुनिया का कोई व्यक्ति है, दुनिया का कोई चीज़ है, मैं अमेरिकन है, मैं इंडियन है, मैं जर्मन है, यह बहुतिक संपर्क बना करके और जच्चात्म बुद्धी, पुनोपी तिधा द�
मात्मियों मानते हैं और भोव इद्यधि और जिस देश में जनम हुआ उसके पूज्य मानते हैं, इस प्रकार व्यक्ति को गधा माना गया है, शास्यदार, सहेव और गोखर, तो यह सब बुद्धी छोड़ करके हैं, सबको समझना चाहिए, जो जीव मात्री भगवान का अ
समझना है, तभी जीवन का साथोक होगा, तभी मनुष्ट्र सुखी हो सकेंगे, और तभी दुनिया का मंगल होगा, इसलिए भागवर्त में कहते हैं, सबई पुंछपरो धर्म, जतो भक्ती रधोख है, अहुई तुकि अप्रतिहता, जयात्मा सुप्रसीदित, सम्प्रसी
धर्म को प्रेचार की दिए, जिसमें भगवर्त भक्ती का अनुभाव होती है, और नई तो, जो कुछ हम लोग धर्म जाजम कर दे हैं, वो तात्कालिक है, और शाक्त्र में उसार, वो असल धर्म नहीं है, नई तो भगवान क्यों कहते हैं, कि सर्वधर्मा अनपरितर का, क
क्यों भगबान कहते हैं सर्वधर्म आनपरिक्तर आप लोग पर समझ दीजिए यानि वह जो भगबान कहते हैं कि
एक मात्रा हमारा चरण में सरजनागत हो कोई धर्म है और सब धर्म नहीं है ने तो भगबान क्यों कहेंगे
कर्मधर्मा आणपरिक्त होता है
तो आप लोग समझ लें
यही धर्मा हम लोग शिकाते है
जिसमें हम लोग
बाहर जाके ऐसे नहीं करते हैं
जो तुम खिरिश्ट्रियन है
तुम हिंदू हो जाओ
यह बोल लें शेव लोग
नहीं लेगा
भगवान का भक्त बनो
भगवान को सिदार करो
भगवान की शेवा करो
यही सब हम लोगों को प्रचार्च विश्वा है
और वो लोग
अचिताय से
सोच करके अचिताय देख करके
यह जो भागवत धर्मा है
कृष्ण स्तु भगवान
संघ भगवान कृष्ण है तो आप जब बाहर में परदेश में इसको सब कोई ले रहे हैं आप लोग को भी चाहिए जो गीता में जैसे-जैसे बतायां उसी प्रकार सबको भगवान का चरण में शरणागती लेनी जाएगी
तो आप लोग जो कि धर्म का जाजन कीजिए धर्म शानु स्थितक पंश विष्चक्षेन कथा सुझा नौतपाताये ज्रति जदिंग समय हुए कीजिए
कोई भी धर्म आप जाजन कीजिए जदिंग वो धर्म का पालन करके भगवान भक्ती की उदय नहीं होता है
तो
तो समझ दीजिए केवल पुरिष्ट्रम नहीं है ये शाक्त्र का निद्देश है और आपके निवेदन है जो वो भगवात भक्ती आपका भीतर में जो है अभी सोय हुए है उसको जगाए और उसको जगाने का एक ही मात्र उपाय है कली जुग में विशेष करते हैं कली ज�
जगानी भक्ती यूग का पृथण शोपान है भगवन ना सबन करना है भगवन नाम ग्रहना दिये तो भगवत नाम ग्रहन कर दिये
हरी कृष्णा, हरी कृष्णा, कृष्ण कृष्णा, कृष्णा,
हरी राम, हरी राम, राम, राम, हैरी राम,
फी राज्ठा से सत तीज आपको मानू हो जाए,
भगबान आपको भीतर में बैठुन ही हैं,
जदी आप भगबान का सर्वज्ञागत हो जाएं और
और बगबाद को नाम जप करते रहिए जिसमें आपाराद नहीं है तो वहां तो आपको भी तरह ही है ओमान फ़ूद खबी कह रहे हैं
थेशान स्थतलुपतानां भंग धान पीवी पूर्ण वयवान वुद्धि जोग डेव हैं यह जो प्रीति наверное भग्वद भैज़म करते
बुद्धिज्योग दारा है ये बुद्धिज्योग के अर्थ होता है भक्तिज्योग कहो कि भगवान कойти से जेनव-सतव-पुज्ञान से
जिसके द्वारा हमारा पेशवात है
तो भगवान के पास जाने के लिए एक ही मात्र उपय है, भक्त्या-माम-विज्ञान आए
एक मात्र भक्ति है, कौनमक ज्ञान जोप से भगवान प्राप्ति नहीं हो।
कुछ बहार का, भवति कुछ सत्ती ज्ञान लाब हो सकेगा।
परन्तु जदी आप भगवान को लाब करने को चाहते हैं, तो वो भगवान जैसे कर दे हैं।
भक्तियाम भिजाना तीजाबान जत्यामी तत्ततः
जो भगवत भजम करने वाला है
जो भक्ति जोग को ग्रहंकिया है
वो हमको ताक्तिक जानते हैं
और सब आगमे और जितने है ग्यानी जोगी
वो भगवान को नहीं समझ सकते हैं
ये सास्त्रता भी जाता है, इजलिये मनुष्य जीवन का उतीत है, क्योंकि ये मनुष्य जीवन चले जाने से हम नहीं जानते हैं क्या जीवन हम तो मिलेगा, हमारा कर्मन का अनुसार।
अगर हमको मनुष्य इतर जन्म मिल गया, जलो जानव लक्षानी, सावडा लक्षा मिनशती, जीवन आती लाख जनी जो है, उसमें मैं आता है फिर चला गया, तो ये जो हमको मौका मिला था मनुष्य जीवन में, इसको हम मिस्ट गया, इसका भूल गया, और इसको व्यवहार �
ब्राम है, और इसको जान भूत, नहीं भूत करके, नहीं जान करके चल जाते, कुट्टा शियाल का ऐसा मर जाते हैं, वो क्रिपन है, क्रिपन क्यों कहा जाता है, जो उसको मौका मिला था, कैसे एक आदमी को लाख रुपया मिला है, उसको व्यवहार ठीक से किया है, उसको �
ब्राम्बन का अर्थ होता है, कि ये जिवन को अच्छी तरह से उपजोग करके, इसको व्यवहार करके, परम लाभ को उठा ले, और क्रिपन जो होता है, केवल खाया, पिया, सोया, बच्चा पाया, रख्यार, कुट्टा शियाल का ऐसा मर जाता है, तो उसको क्रिपन कहा ज
जो रिकार है, चार्तुद क्पन्याँ माया सिष्ट्रम, ब्राम्मन का गुण लीजीए, ये ब्राम्मन का गुण है, तो चार्पका जो पाप जाये, उसको पहले छोड़ देते हैं
ये चात्रका का पाप विशेष करके ब्राह्मान राजा और जो आध्यात्मिक है उसको छोड़ देना चाहिए
ये चात्र का नियम है राजा अगर पापी होगा तो प्रजा सब मर जाने जैसे आजकल हो रहा है
इसी प्रकार ब्राह्मन यदि आप एक पाप काज़े कहें तो इसको ब्राह्मन अकाउशी बाक पतन हो जाया है
वो शुद्र हो जाया है जब शुद्र हो जाया कोई छत्री नहीं है सभी शुद्र हो जाया
तो फिर कैसा राज चलेगा शुकी कैसे होगा
और कलेजुग में यही बात हाँ कलौग शुद्रahnわかहा इसलिए चिधर होते हुए जदा कोई व्रामन होने को चाहते हैं
जदा कोई ठीक उत्तर स्थार में जाने को चाहते हैं उसको मौका देना चाहिए यह भारत पितार
तब है चेतन्य महापुर कहते हैं भारत भुमिते मनुष्य जन्म हरिलज्जा जन्म शार्षक करी करो परो बोलों यह भारतिया
मिशन है और यह हम लोग जो इंटरनेशन सोसाइटी फर्कृष्ण कांसर्स में चालू किया है तो यही उद्देश है सबको
उन्नत अस्तार में ब्राह्मण वर्ष्णप बनाने के लिए प्रयास है आप लोग सब भारतिया है आप लोग भी इसको लीजिए और इस प्रजतन
जिससे आगे बड़े उसके लिए प्रजतन आप लोग भी कीजिए यही हम लोग करने के लिए धन्यवाद थैंक यू बहुत है अरे दीजिए
कर दो
 
 
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