तं त्वामहं ज्ञानघनं स्वभाव-
प्रध्वस्तमायागुणभेदमोहै: ।
सनन्दनाद्यैर्मुनिभिर्विभाव्यं
कथं विमूढ: परिभावयामि ॥ २३ ॥
अनुवाद
हे प्रभु, प्रकृति के तीनों गुणों के प्रभाव से मुक्त हुए साधुपुरुष, यथा चारों कुमार (सनत्, सनक, सनन्दन तथा सनातन) ही ज्ञान के पुंज आपके विषय में सोच सकते हैं। पर मैं ऐसा अज्ञानी हूँ कि आपके विषय में क्या सोच सकता हूँ?