सत्यं सारं धृतिं दृष्ट्वा सभार्यस्य च भूपते: ।
विश्वामित्रो भृशं प्रीतो ददावविहतां गतिम् ॥ २४ ॥
अनुवाद
महर्षि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चन्द्र और उनकी पत्नी में अपार सत्यनिष्ठा, सहनशीलता और दृढ़ता देखी। इस प्रकार उन्होंने उन्हें मानव ध्येय की प्राप्ति के लिए अमूल्य ज्ञान प्रदान किया।