श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 5: दुर्वासा मुनि को जीवन-दान  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  9.5.27 
 
 
इत्येतत् पुण्यमाख्यानमम्बरीषस्य भूपते ।
सङ्कीर्तयन्ननुध्यायन् भक्तो भगवतो भवेत् ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  जो कोई भी इस कथा का निरंतर पाठ करता है या महाराज अम्बरीष के कार्यकलापों से जुड़ी इस कथा का चिन्तन करता है, निश्चय ही भगवान का अनन्य भक्त बन जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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