श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 5: दुर्वासा मुनि को जीवन-दान  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  9.5.25 
 
 
एवं विधानेकगुण: स राजा
परात्मनि ब्रह्मणि वासुदेवे ।
क्रियाकलापै: समुवाह भक्तिं
ययाविरिञ्‍च्यान् निरयांश्चकार ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार अपनी भक्ति के कारण नाना प्रकार के दिव्य गुणों से युक्त महाराज अम्बरीष ब्रह्म, परमात्मा तथा भगवान श्री कृष्ण को भली भाँति जान गये और उसी प्रकार उनकी भक्ति करने लगे। अपनी भक्ति के कारण उन्हें इस भौतिक जगत का सर्वोच्च लोक भी नरक के समान ही प्रतीत होने लगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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