मेरे भक्त जो मेरी प्रेमाभक्ति में लगे रहकर सदैव संतुष्ट रहते हैं, वे मोक्ष के चार सिद्धांत (सालोक्य, सारूप्य, सामीप्य तथा सार्ष्टि) में भी तनिक रुचि नहीं रखते, यद्यपि उनकी सेवा से ये उन्हें स्वतः प्राप्त हो जाते हैं। फिर स्वर्गलोक जाने के नश्वर सुख के विषय में क्या कहा जाए?