श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 4: दुर्वासा मुनि द्वारा अम्बरीष महाराज का अपमान  »  श्लोक 56
 
 
श्लोक  9.4.56 
 
 
श्रीशङ्कर उवाच
वयं न तात प्रभवाम भूम्नि
यस्मिन् परेऽन्येऽप्यजजीवकोशा: ।
भवन्ति काले न भवन्ति हीद‍ृशा:
सहस्रशो यत्र वयं भ्रमाम: ॥ ५६ ॥
 
अनुवाद
 
  शिवजी ने कहा : हे पुत्र, मैं, ब्रह्माजी और अन्य देवी-देवता, जो इस ब्रह्मांड में अपनी महानता के भ्रम में चक्कर लगाते रहते हैं, भगवान् से होड़ करने की शक्ति नहीं रखते क्योंकि भगवान् के निर्देश मात्र से असंख्य ब्रह्मांड और उनके निवासी उत्पन्न होते हैं और नष्ट हो जाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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