श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 4: दुर्वासा मुनि द्वारा अम्बरीष महाराज का अपमान  »  श्लोक 55
 
 
श्लोक  9.4.55 
 
 
प्रत्याख्यातो विरिञ्चेन विष्णुचक्रोपतापित: ।
दुर्वास: शरणं यात: शर्वं कैलासवासिनम् ॥ ५५ ॥
 
अनुवाद
 
  जब सुदर्शन चक्र की ज्वलंत अग्नि से संतप्त दुर्वासा को ब्रह्माजी ने इस प्रकार अस्वीकार कर दिया, तो उन्होंने कैलाश लोक में सदा निवास करने वाले भगवान शिव की शरण ग्रहण करने का प्रयास किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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