श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 4: दुर्वासा मुनि द्वारा अम्बरीष महाराज का अपमान  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  9.4.45 
 
 
यो मामतिथिमायातमातिथ्येन निमन्‍त्र्य च ।
अदत्त्वा भुक्तवांस्तस्य सद्यस्ते दर्शये फलम् ॥ ४५ ॥
 
अनुवाद
 
  महाराज अम्बरीष, तूने मुझे अतिथि मानकर भोजन के लिए बुलाया, परन्तु खाने के बजाय पहले तूने खूब खा लिया है। तेरे इस बुरे व्यवहार के कारण मैं तुझे इसका दण्ड देना चाहता हूँ।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.