स इत्थं भक्तियोगेन तपोयुक्तेन पार्थिव: ।
स्वधर्मेण हरिं प्रीणन् सर्वान् कामान्शनैर्जहौ ॥ २६ ॥
अनुवाद
इस प्रकार, इस लोक के राजा महाराज अम्बरीष ने भगवान की भक्ति की और इस प्रयास में उन्होंने कठोर तपस्या की। अपने कर्तव्य कर्मों द्वारा भगवान को सदैव प्रसन्न करते हुए उन्होंने धीरे-धीरे सारी भौतिक इच्छाओं का त्याग कर दिया।