श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 24: भगवान् श्रीकृष्ण  »  श्लोक 63-64
 
 
श्लोक  9.24.63-64 
 
 
भोजवृष्ण्यन्धकमधुशूरसेनदशार्हकै: ।
श्लाघनीयेहित: शश्वत् कुरुसृञ्जयपाण्डुभि: ॥ ६३ ॥
स्‍निग्धस्मितेक्षितोदारैर्वाक्यैर्विक्रमलीलया ।
नृलोकं रमयामास मूर्त्या सर्वाङ्गरम्यया ॥ ६४ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान कृष्ण ने भोज, वृष्णि, अन्धक, मधु, शूरसेन, दशार्ह, कुरु, सृञ्जय और पाण्डु के वंशजों के सहयोग से अनेक कार्य संपन्न किए। अपनी मनमोहक मुस्कान, अपने स्नेहमयी व्यवहार, अपने उपदेशों और गोवर्धन पर्वत को उठाने जैसी अद्भुत लीलाओं के द्वारा भगवान ने अपने दिव्य शरीर में प्रकट होकर पूरे मानव समाज को प्रसन्न किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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