श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 24: भगवान् श्रीकृष्ण  »  श्लोक 53-55
 
 
श्लोक  9.24.53-55 
 
 
प्रवरश्रुतमुख्यांश्च साक्षाद् धर्मो वसूनिव ।
वसुदेवस्तु देवक्यामष्ट पुत्रानजीजनत् ॥ ५३ ॥
कीर्तिमन्तं सुषेणं च भद्रसेनमुदारधी: ।
ऋजुं सम्मर्दनं भद्रं सङ्कर्षणमहीश्वरम् ॥ ५४ ॥
अष्टमस्तु तयोरासीत् स्वयमेव हरि: किल ।
सुभद्रा च महाभागा तव राजन् पितामही ॥ ५५ ॥
 
अनुवाद
 
  सहदेवा के आठ पुत्र, प्रवर और श्रुत आदि, स्वर्ग के आठ वसुओं के पूर्ण अवतार थे। वसुदेव ने भी देवकी के गर्भ से आठ योग्य पुत्रों को जन्म दिया। इनमें कीर्तिमान, सुषेण, भद्रसेन, ऋजु, सम्मर्दन, भद्र और शेषावतार संकर्षण शामिल हैं। आठवें पुत्र साक्षात् भगवान कृष्ण थे। परम सौभाग्यशाली सुभद्रा, एकमात्र कन्या, तुम्हारी दादी थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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