न नूनं कार्तवीर्यस्य गतिं यास्यन्ति पार्थिवा: ।
यज्ञदानतपोयोगै: श्रुतवीर्यदयादिभि: ॥ २५ ॥
अनुवाद
इस संसार का कोई अन्य राजा न यज्ञ में, न दान में, न तपस्या में, न योगशक्ति में, न शिक्षा में, न बल में और न दया भाव में कार्तवीर्यार्जुन के समान नहीं हो सकता था।