श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 23: ययाति के पुत्रों की वंशावली  »  श्लोक 18-19
 
 
श्लोक  9.23.18-19 
 
 
दुष्मन्त: स पुनर्भेजे स्ववंशं राज्यकामुक: ।
ययातेर्ज्येष्ठपुत्रस्य यदोर्वंशं नरर्षभ ॥ १८ ॥
वर्णयामि महापुण्यं सर्वपापहरं नृणाम् ।
यदोर्वंशं नर: श्रुत्वा सर्वपापै: प्रमुच्यते ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  महाराज दुष्यंत, सिंहासन पर बैठने की इच्छा से अपने मूल वंश (पुरु वंश) में वापस लौट गए, हालाँकि उन्होंने मरुत को अपना पिता स्वीकार कर लिया था। हे महाराज परीक्षित, अब मैं महाराज ययाति के सबसे बड़े पुत्र यदु के वंश का वर्णन करूँगा। यह वर्णन अत्यंत पवित्र है और मानव समाज के सभी पापों के फलों को दूर करने वाला है। इस वर्णन को सुनने से ही मनुष्य सभी पापों के फलों से मुक्त हो जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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