तत्प्रसङ्गानुभावेन रन्तिदेवानुवर्तिन: ।
अभवन् योगिन: सर्वे नारायणपरायणा: ॥ १८ ॥
अनुवाद
जो लोग राजा रन्तिदेव के बतायें सिद्धान्तों का अनुसरण किया, उन सबों को उनकी कृपा प्राप्त हुई और वे भगवान् नारायण के शुद्ध भक्त बन गये। इस तरह वे सभी श्रेष्ठ योगी बन गये।