श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 21: भरत का वंश  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  9.21.16 
 
 
स वै तेभ्यो नमस्कृत्य नि:सङ्गो विगतस्पृह: ।
वासुदेवे भगवति भक्त्या चक्रे मन: परम् ॥ १६ ॥
 
अनुवाद
 
  राजा रन्तिदेव की इच्छा कभी नहीं रही कि वो देवताओं से कोई भी भौतिक लाभ प्राप्त करें। उन्होंने उन्हें प्रणाम तो किया परन्तु चूंकि उनका दिल परमेश्वर विष्णु अथवा वासुदेव के लिए लगा हुआ था, इसलिए उन्होंने अपने मन को पूर्णतया भगवान् विष्णु के कमल चरणों में स्थिर कर लिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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