श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 20: पूरु का वंश  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  9.20.33 
 
 
स संराड्‍लोकपालाख्यमैश्वर्यमधिराट् श्रियम् ।
चक्रं चास्खलितं प्राणान् मृषेत्युपरराम ह ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  चक्रवर्ती भरत समस्त विश्व के शासक थे और उनके पास एक विशाल साम्राज्य तथा अजेय योद्धाओं की ऐश्वर्यता थी। उनके पुत्र और परिवार को वो अपना जीवन मानते थे। परंतु अंततः उन्होंने इन्हें आध्यात्मिक उन्नति में बाधा के रूप में देखा और इसलिए उन्होंने इनका भोग बन्द कर दिया।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.