श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 20: पूरु का वंश  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  9.20.29 
 
 
भरतस्य महत् कर्म न पूर्वे नापरे नृपा: ।
नैवापुर्नैव प्राप्स्यन्ति बाहुभ्यां त्रिदिवं यथा ॥ २९ ॥
 
अनुवाद
 
  जैसे कि कोई मनुष्य अपने बाहुबल के सहारे स्वर्गलोक तक नहीं पहुँच सकता (क्योंकि कोई अपने हाथों से स्वर्गलोक को कैसे छू सकता है?), उसी प्रकार कोई मनुष्य महाराज भरत के श्रेष्ठ कार्यों की नकल नहीं कर सकता। ना तो कोई पहले के काल में ऐसे कार्य कर पाया है, ना ही कोई भविष्य में ऐसे कार्य कर पायेगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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