यत् पृथिव्यां व्रीहियवं हिरण्यं पशव: स्त्रिय: ।
न दुह्यन्ति मन:प्रीतिं पुंस: कामहतस्य ते ॥ १३ ॥
अनुवाद
कामी पुरुष का सदा असंतुष्ट मन कभी नहीं भरता। चाहें उसे संसार की सारी वस्तुओं की प्रचुरता ही क्यों न मिल जाये जैसे कि धान, जौ, अन्य अन्न, सोना, पशु और स्त्रियाँ आदि। उसे किसी भी चीज़ से सन्तोष नहीं होता।