श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 18: राजा ययाति को यौवन की पुन:प्राप्ति  »  श्लोक 50
 
 
श्लोक  9.18.50 
 
 
तमेव हृदि विन्यस्य वासुदेवं गुहाशयम् ।
नारायणमणीयांसं निराशीरयजत् प्रभुम् ॥ ५० ॥
 
अनुवाद
 
  महाराज ययाति ने निष्काम भाव के साथ भगवान की आराधना की जो हर एक के दिल में नारायण के रूप में मौजूद हैं। भगवान सर्वव्यापी हैं परंतु वे भौतिक आंखों से नहीं देखे जा सकते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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