श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 18: राजा ययाति को यौवन की पुन:प्राप्ति  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  9.18.47 
 
 
देवयान्यप्यनुदिनं मनोवाग्देहवस्तुभि: ।
प्रेयस: परमां प्रीतिमुवाह प्रेयसी रह: ॥ ४७ ॥
 
अनुवाद
 
  महाराज ययाति की प्यारी पत्नी देवयानी अपने मन, वाणी, शरीर और विभिन्न सामग्रियों का उपयोग करके हमेशा अपने पति को एकांत में अधिकतम दिव्य आनंद प्रदान करती थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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