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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 9: मुक्ति
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अध्याय 18: राजा ययाति को यौवन की पुन:प्राप्ति
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श्लोक 45
श्लोक
9.18.45
इति प्रमुदित: पूरु: प्रत्यगृह्णाज्जरां पितु: ।
सोऽपि तद्वयसा कामान् यथावज्जुजुषे नृप ॥ ४५ ॥
अनुवाद
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शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे महाराज परीक्षित, पूरु अपने पिता ययाति की वृद्धावस्था को ग्रहण करके बहुत खुश था। पिता ने अपने पुत्र की जवानी ग्रहण कर ली और इस तरह अपनी इच्छा के अनुसार भौतिक सुखों का उपभोग किया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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