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स्कन्ध 9: मुक्ति
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अध्याय 18: राजा ययाति को यौवन की पुन:प्राप्ति
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श्लोक 39
श्लोक
9.18.39
मातामहकृतां वत्स न तृप्तो विषयेष्वहम् ।
वयसा भवदीयेन रंस्ये कतिपया: समा: ॥ ३९ ॥
अनुवाद
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प्रिय पुत्र, मैं अब तक अपनी काम-इच्छाओं से तृप्त नहीं हो पाया हूँ। लेकिन अगर तुम मेरा भला सोचो तो तुम अपने नाना से मिला बुढ़ापा ले लो और मुझे अपनी जवानी दे दो ताकि मैं कुछ साल और जीवन का आनंद ले सकूँ।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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