श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 18: राजा ययाति को यौवन की पुन:प्राप्ति  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  9.18.37 
 
 
श्रीययातिरुवाच
अतृप्तोऽस्म्यद्य कामानां ब्रह्मन् दुहितरि स्म ते ।
व्यत्यस्यतां यथाकामं वयसा योऽभिधास्यति ॥ ३७ ॥
 
अनुवाद
 
  राजा ययाति ने कहा: "हे विद्वान और पूजनीय ब्राह्मण, अभी भी तुम्हारी पुत्री के साथ मेरी वासना पूरी नहीं हुई है।" तब शुक्राचार्य ने जवाब दिया, "तुम चाहो तो अपने बुढ़ापे को किसी ऐसे व्यक्ति से बदल दो जो तुम्हें अपनी जवानी देने के लिए सहमत हो।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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