श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 18: राजा ययाति को यौवन की पुन:प्राप्ति  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  9.18.36 
 
 
शुक्रस्तमाह कुपित: स्त्रीकामानृतपूरुष ।
त्वां जरा विशतां मन्द विरूपकरणी नृणाम् ॥ ३६ ॥
 
अनुवाद
 
  शुक्राचार्य अति क्रुद्ध थे। उन्होंने कहा, "अरे झूठे! मूर्ख! स्त्रीकामी! तूने बड़ा अनर्थ किया है। अतः मैं तुम्हें शाप देता हूँ कि तुम पर बुढ़ापा और लाचारी का आक्रमण होगा जिससे तुम कुरूप हो जाओगे।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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