श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 18: राजा ययाति को यौवन की पुन:प्राप्ति  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  9.18.28 
 
 
तथेत्यवस्थिते प्राह देवयानी मनोगतम् ।
पित्रा दत्ता यतो यास्ये सानुगा यातु मामनु ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  शुक्राचार्य के अनुरोध को सुनकर वृषपर्वा ने देवयानी की इच्छा पूरी करने की स्वीकृति दे दी, और उसके वचनों की प्रतीक्षा करने लगा। तत्पश्चात् देवयानी ने अपनी इच्छा इस प्रकार व्यक्त की, "जब भी मैं अपने पिता की आज्ञा से विवाह करूँ तो मेरी सहेली शर्मिष्ठा अपनी सहेलियों के साथ मेरी दासी के रूप में मेरे साथ जाए।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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