शुक्राचार्य के अनुरोध को सुनकर वृषपर्वा ने देवयानी की इच्छा पूरी करने की स्वीकृति दे दी, और उसके वचनों की प्रतीक्षा करने लगा। तत्पश्चात् देवयानी ने अपनी इच्छा इस प्रकार व्यक्त की, "जब भी मैं अपने पिता की आज्ञा से विवाह करूँ तो मेरी सहेली शर्मिष्ठा अपनी सहेलियों के साथ मेरी दासी के रूप में मेरे साथ जाए।"