श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 18: राजा ययाति को यौवन की पुन:प्राप्ति  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  9.18.27 
 
 
क्षणार्धमन्युर्भगवान् शिष्यं व्याचष्ट भार्गव: ।
कामोऽस्या: क्रियतां राजन् नैनां त्यक्तुमिहोत्सहे ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  बली शुक्राचार्य कुछ समय के लिए क्रोधित हुए, किंतु प्रसन्न होकर उन्होंने वृषपर्वा से कहा: हे राजन, देवयानी की इच्छा पूर्ण कीजिए क्योंकि वह मेरी पुत्री है और मैं इस संसार में न तो उसे छोड़ सकता हूँ और न ही उसकी उपेक्षा कर सकता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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