दुर्मना भगवान् काव्य: पौरोहित्यं विगर्हयन् ।
स्तुवन् वृत्तिं च कापोतीं दुहित्रा स ययौ पुरात् ॥ २५ ॥
अनुवाद
शुक्राचार्य ने जब देवयानी के साथ हुई घटना सुनी तो मन में अत्यंत दुखी हुए। उन्होंने पुरोहिती वृत्ति की निंदा की और उञ्छवृत्ति (खेत से अन्न बीनने) की प्रशंसा करते हुए अपनी पुत्री को साथ लेकर घर छोड़ दिया।