श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 16: भगवान् परशुराम द्वारा विश्व के क्षत्रियों का विनाश  »  श्लोक 18-19
 
 
श्लोक  9.16.18-19 
 
 
तद्रक्तेन नदीं घोरामब्रह्मण्यभयावहाम् ।
हेतुं कृत्वा पितृवधं क्षत्रेऽमङ्गलकारिणि ॥ १८ ॥
त्रि:सप्तकृत्व: पृथिवीं कृत्वा नि:क्षत्रियां प्रभु: ।
समन्तपञ्चके चक्रे शोणितोदान् ह्रदान् नव ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  इन पुत्रों के खून से भगवान परशुराम ने एक ऐसी नदी बनाई जिससे उन राजाओं में डर की लहर दौड़ गई जिनमें ब्राह्मण संस्कृति के प्रति सम्मान नहीं था। चूँकि सरकार के अधिकारी, अर्थात क्षत्रिय, पाप कर्म कर रहे थे, इसलिए परशुराम ने अपने पिता की हत्या का बदला लेने के बहाने इक्कीस बार पृथ्वी से सारे क्षत्रियों का सफाया कर दिया। वास्तव में, समंत पंचक नामक स्थान पर उन्होंने उनके खून से नौ झीलें बनाईं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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