श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 15: भगवान् का योद्धा अवतार, परशुराम  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  9.15.8 
 
 
स ऋषि: प्रार्थित: पत्‍न्या श्वश्र्वा चापत्यकाम्यया ।
श्रपयित्वोभयैर्मन्त्रैश्चरुं स्‍नातुं गतो मुनि: ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात में, ऋचीक मुनि की पत्नी व सास दोनों ही पुत्र की इच्छा करके मुनि से प्रार्थना की कि वे चरु (आहुति) तैयार करें। तब मुनि ने अपनी पत्नी के लिए ब्राह्मण मंत्र से एक चरु तथा अपनी सास के लिए क्षत्रिय मंत्र से एक अन्य चरु बनाया। फिर वे स्नान करने चले गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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